नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें सरोगेसी (किराए की कोख) के जरिए संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपतियों को दाता युग्मक पर रोक लगाने संबंधी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नियम को चुनौती दी गई थी. युग्मक प्रजनन कोशिकाएं होती हैं. जीवों में नर युग्मक स्पर्म होते हैं तथा मादा युग्मक डिंब अथवा अंडाणु कोशिकाएं होती हैं.
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने 14 मार्च 2023 को सामान्य वैधानिक नियम (जीएसआर) 179 (ई) जारी किया था जिसमें कहा गया गया था: (1) सरोगेसी की प्रक्रिया से गुजर रहे दंपति के पास इच्छुक दंपति के दोनों युग्मक होने चाहिए और उन्हें दाता युग्मक की मंजूरी नहीं होगी (2) सरोगेसी का विकल्प चुनने वाली अकेली महिला (विधवा अथवा तलाकशुदा) को खुद के अंडाणु तथा दाता स्पर्म का इस्तेमाल करना होगा.
सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनीयमन) अधिनियम 2021 की धारा 2(एच) में 'युग्मक दाता' को ऐसे व्यक्ति के तौर पर परिभाषित किया गया है जो निसंतान दंपति अथवा महिला को संतान प्राप्ति के लिए स्पर्म अथवा डिंबाणुजन कोशिकाएं देते हैं. न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी तथा न्यायमूर्ति प्रशांत कुमार मिश्रा की अवकाश पीठ ने कहा कि अधिसूचना को पहले ही चुनौती दी गई है. पीठ ने कहा कि हमें इस याचिका पर क्यों सुनवाई करनी चाहिए? क्या आप केवल प्रचार पाने के लिए यह याचिका दाखिल कर रहे हैं?
पीठ की अनिच्छा को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका वापस ले ली और इस प्रकार मामले का निस्तारण हो गया. नलिन त्रिपाठी की ओर से दाखिल याचिका में इस आधार पर नियमों को चुनौती दी गई थी कि यह सरोगेसी (विनियमन) अधिनियम 2021 के प्रावधानों के विरुध है, जिससे निसंतान दंपति को मातृत्व का अधिकार मिलता है.
(पीटीआई-भाषा)