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सेनारी हत्याकांड में HC के फैसले के खिलाफ बिहार सरकार की अपील SC में स्वीकार - राज्य सरकार

उच्चतम न्यायालय बिहार के दो दशक पुराने सेनारी नरसंहार कांड में 14 लोगों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया.

पटना उच्च न्यायालय
पटना उच्च न्यायालय
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Published : Jul 12, 2021, 5:35 PM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय बिहार के दो दशक पुराने सेनारी नरसंहार कांड में 14 लोगों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया. जहानाबाद जिले के सेनारी गांव में माओवादी संगठनों ने इस घटना में 34 लोगों की हत्या कर दी थी.

न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले में बरी किए गए सभी लोगों को राज्य सरकार की अपील पर नोटिस जारी किए हैं. बिहार सरकार ने अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी के मार्फत उच्च न्यायालय के 21 मई के आदेश को चुनौती दी है. राज्य सरकार ने अपील में कहा है कि प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही पर विचार नहीं किया गया.

अपील में कहा गया है अभियोजन के मामले को कुल 23 गवाहों का समर्थन मिला था. जिनमें तीन 13 प्रत्यक्षदर्शी थे, जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था. इन 13 में तीन घायल प्रत्यक्षदर्शी थे. यह जिक्र करना जरूरी है कि किसी भी आरोपी ने तारीख, समय, स्थान या वहां मौजूदगी के तरीके का विरोध नहीं किया था. लेकिन कानून और साक्ष्य का गलत अर्थ निकाले जाने के आधार पर वे अब तक निर्दोष हैं. कहा गया है कि उच्च न्यालयय का निष्कर्ष साक्ष्यों के और शीर्ष अदालत द्वारा विभिन्न सिद्धातों पर घोषित कानून के विपरीत था.

अपील में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का आदेश सरकार की दलील और आरेापियों को दोषी साबित करने के निचली अदालत के फैसले पर विचार करने में नाकाम रहा था. गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा नवंबर 2016 में आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के फैसले के खिलाफ अपील स्वीकार की थी. निचली अदालत ने दोषियों को विभिन्न अवधि की कैद की सजा सुनाई थी.

इसे भी पढ़े- पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 1999 सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषी बरी

इस मामले में सत्र अदालत ने दुखन राम कहार, बचेश कुमार सिंह, बूधन यादव, गोपाल साव, बुटई यादव, सतेन्द्र दास, लल्लन पासी, द्वारिक पासवान, करीमन पासवान, गोराय पासवान, उमा पासवान को मौत की सजा और मुंगेश्वर यादव, विनय पासवान और अरविन्द पासवान को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

इस नरसंहार में सवर्ण जाति के 34 व्यक्तियों की 19 मार्च 1999 को प्रतिबंधित माओवादी कम्युनिस्ट सेन्टर के सदस्यों ने एक गांव में हत्या कर दी थी. जो पहले जहानाबाद जिले का हिस्सा था, लेकिन अब यह अरवल में पड़ता है.

(पीटीआईःभाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय बिहार के दो दशक पुराने सेनारी नरसंहार कांड में 14 लोगों को बरी करने के पटना उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ राज्य सरकार की अपील पर सुनवाई करने के लिए सोमवार को सहमत हो गया. जहानाबाद जिले के सेनारी गांव में माओवादी संगठनों ने इस घटना में 34 लोगों की हत्या कर दी थी.

न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने मामले में बरी किए गए सभी लोगों को राज्य सरकार की अपील पर नोटिस जारी किए हैं. बिहार सरकार ने अधिवक्ता अभिनव मुखर्जी के मार्फत उच्च न्यायालय के 21 मई के आदेश को चुनौती दी है. राज्य सरकार ने अपील में कहा है कि प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही पर विचार नहीं किया गया.

अपील में कहा गया है अभियोजन के मामले को कुल 23 गवाहों का समर्थन मिला था. जिनमें तीन 13 प्रत्यक्षदर्शी थे, जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को खो दिया था. इन 13 में तीन घायल प्रत्यक्षदर्शी थे. यह जिक्र करना जरूरी है कि किसी भी आरोपी ने तारीख, समय, स्थान या वहां मौजूदगी के तरीके का विरोध नहीं किया था. लेकिन कानून और साक्ष्य का गलत अर्थ निकाले जाने के आधार पर वे अब तक निर्दोष हैं. कहा गया है कि उच्च न्यालयय का निष्कर्ष साक्ष्यों के और शीर्ष अदालत द्वारा विभिन्न सिद्धातों पर घोषित कानून के विपरीत था.

अपील में कहा गया है कि उच्च न्यायालय का आदेश सरकार की दलील और आरेापियों को दोषी साबित करने के निचली अदालत के फैसले पर विचार करने में नाकाम रहा था. गौरतलब है कि उच्च न्यायालय ने निचली अदालत द्वारा नवंबर 2016 में आरोपियों को दोषी करार दिए जाने के फैसले के खिलाफ अपील स्वीकार की थी. निचली अदालत ने दोषियों को विभिन्न अवधि की कैद की सजा सुनाई थी.

इसे भी पढ़े- पटना हाईकोर्ट का बड़ा फैसला, 1999 सेनारी नरसंहार के सभी 13 दोषी बरी

इस मामले में सत्र अदालत ने दुखन राम कहार, बचेश कुमार सिंह, बूधन यादव, गोपाल साव, बुटई यादव, सतेन्द्र दास, लल्लन पासी, द्वारिक पासवान, करीमन पासवान, गोराय पासवान, उमा पासवान को मौत की सजा और मुंगेश्वर यादव, विनय पासवान और अरविन्द पासवान को उम्र कैद की सजा सुनाई थी.

इस नरसंहार में सवर्ण जाति के 34 व्यक्तियों की 19 मार्च 1999 को प्रतिबंधित माओवादी कम्युनिस्ट सेन्टर के सदस्यों ने एक गांव में हत्या कर दी थी. जो पहले जहानाबाद जिले का हिस्सा था, लेकिन अब यह अरवल में पड़ता है.

(पीटीआईःभाषा)

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