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वाराणसी में संघ प्रमुख मोहन भागवत बोले, सामाजिक अहंकार और हीनभाव दोनों समाप्त होने चाहिए - mohan bhagwat says in varanasi

अपने 5 दिवसीय काशी प्रवास के पहले दिन भागवत ने प्रांत स्तर के संगठन श्रेणी व जागरण श्रेणी के कार्यकर्ताओं के बीच विभिन्न विषयों पर चर्चा की. इस दौरान स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन एवं पर्यावरण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाए.

mohan bhagwat varanasi tour
वाराणसी में मोहन भागवत
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Published : Mar 27, 2022, 11:12 AM IST

वाराणसी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कार्यकर्ता विकास, सामाजिक सद्भाव, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन एवं पर्यावरण विषय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि पर्यावरण को संतुलित बनाना हम सभी का मौलिक दायित्व है. गौरतलब है कि सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का प्रत्येक वर्ष नियमित प्रवास संपूर्ण देश में होता रहता है. इसी क्रम में भागवत का 5 दिवसीय प्रवास काशी प्रांत में चल रहा है.

दरअसल, शनिवार को अपने 5 दिवसीय काशी प्रवास के पहले दिन भागवत ने प्रांत स्तर के संगठन श्रेणी व जागरण श्रेणी के कार्यकर्ताओं के बीच विभिन्न विषयों पर चर्चा की. इस दौरान स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन एवं पर्यावरण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाए. साथ ही पर्यावरण विषय पर विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने पर्यावरण के असंतुलन व दुष्प्रभावों को भी रेखांकित किया.

भागवत ने कहा कि पर्यावरण को संतुलित बनाना हम सभी का मौलिक दायित्व है. स्वस्थ जीवन के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में साफ-सफाई अत्यंत आवश्यक है. समाज में जागरूकता फैलाकर हमें पर्यावरण को संतुलित बनाने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने युवा कार्यकर्ता विकास सहित कृषि कार्य, ग्राम विकास व श्रमिकों के बीच कार्य पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि शाखा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का निराकरण कर हमें सतत प्रयत्नशील रहना होगा. स्वयंसेवकों की सादगी, मितव्ययिता और सेवा कार्य समाज के लिए अनुकरणीय है.

यह भी पढ़ें-समाज की इकाई कुटुम्ब है, व्यक्ति नहीं: मोहन भागवत

इस दौरान सरसंघचालक ने सामाजिक समरसता विषय पर अपनी बातें रखते हुए कहा कि, 'पूरे समाज में आपसी भेदभाव को दूर करने का कार्य ही स्वयंसेवक का गुण है. हमें समाज को सभी विकारों से मुक्त करके समरसता भाव वाले सामाजिक परिवेश को तैयार करना है. समाज में फैली विकृति और लंबे समय से समाज-तोड़क संवादों को दूर करके ही सामाजिक समरसता को बनाया जा सकता है. उन्होंने सामाजिक सद्भाव विषय पर बोलते हुए कहा कि, 'कुछ विकृतियों के कारण समाज का ताना-बाना टूटा है. जाति-पाति, विषमता, अस्पृश्यता जैसे सामाजिक विकार जितनी जल्दी हो सके, खत्म होने चाहिए और समाज का मन बदलना चाहिए. सामाजिक अहंकार और हीनभाव दोनों समाप्त होने चाहिए.

वाराणसी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने कार्यकर्ता विकास, सामाजिक सद्भाव, सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन एवं पर्यावरण विषय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि पर्यावरण को संतुलित बनाना हम सभी का मौलिक दायित्व है. गौरतलब है कि सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत और सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले का प्रत्येक वर्ष नियमित प्रवास संपूर्ण देश में होता रहता है. इसी क्रम में भागवत का 5 दिवसीय प्रवास काशी प्रांत में चल रहा है.

दरअसल, शनिवार को अपने 5 दिवसीय काशी प्रवास के पहले दिन भागवत ने प्रांत स्तर के संगठन श्रेणी व जागरण श्रेणी के कार्यकर्ताओं के बीच विभिन्न विषयों पर चर्चा की. इस दौरान स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए उन्होंने आह्वान किया कि सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन एवं पर्यावरण को अपने जीवन का अभिन्न अंग बनाए. साथ ही पर्यावरण विषय पर विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने पर्यावरण के असंतुलन व दुष्प्रभावों को भी रेखांकित किया.

भागवत ने कहा कि पर्यावरण को संतुलित बनाना हम सभी का मौलिक दायित्व है. स्वस्थ जीवन के लिए ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में साफ-सफाई अत्यंत आवश्यक है. समाज में जागरूकता फैलाकर हमें पर्यावरण को संतुलित बनाने का प्रयास करना चाहिए. उन्होंने युवा कार्यकर्ता विकास सहित कृषि कार्य, ग्राम विकास व श्रमिकों के बीच कार्य पर विशेष बल दिया. उन्होंने कहा कि शाखा के माध्यम से सामाजिक समस्याओं का निराकरण कर हमें सतत प्रयत्नशील रहना होगा. स्वयंसेवकों की सादगी, मितव्ययिता और सेवा कार्य समाज के लिए अनुकरणीय है.

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इस दौरान सरसंघचालक ने सामाजिक समरसता विषय पर अपनी बातें रखते हुए कहा कि, 'पूरे समाज में आपसी भेदभाव को दूर करने का कार्य ही स्वयंसेवक का गुण है. हमें समाज को सभी विकारों से मुक्त करके समरसता भाव वाले सामाजिक परिवेश को तैयार करना है. समाज में फैली विकृति और लंबे समय से समाज-तोड़क संवादों को दूर करके ही सामाजिक समरसता को बनाया जा सकता है. उन्होंने सामाजिक सद्भाव विषय पर बोलते हुए कहा कि, 'कुछ विकृतियों के कारण समाज का ताना-बाना टूटा है. जाति-पाति, विषमता, अस्पृश्यता जैसे सामाजिक विकार जितनी जल्दी हो सके, खत्म होने चाहिए और समाज का मन बदलना चाहिए. सामाजिक अहंकार और हीनभाव दोनों समाप्त होने चाहिए.

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