हरिद्वारः केदारनाथ धाम मंदिर के गर्भ गृह में सोने की परत चढ़ाए जाने का अब साधु संतों ने भी विरोध (Tampering in the sanctum sanctorum of Kedarnath temple) किया है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष श्रीमहंत रविंद्र पुरी (Shri Mahant Ravindra Puri) का कहना है कि केदारनाथ के पुरोहितों को वहां की भौगोलिक स्थिति का ज्ञान है. ऐसे में अगर पुरोहित आपत्ति जता रहे हैं तो मंदिर प्रबंधन समिति को उसका निराकरण करना चाहिए. मंदिर में सोना लगाना कोई गलत नहीं है, लेकिन केदारनाथ इको सेंसिटिव जोन है.
उनका कहना है कि केदारनाथ मंदिर की संरचना प्राचीन काल की है. इसमें सीमेंट और लोहा का इस्तेमाल नहीं किया गया है. इसलिए मंदिर में मशीनों का कम से कम प्रयोग किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि केदारनाथ के गर्भगृह में चांदी की परत लगी है. सोना की परत लगाने के मामले को मंदिर प्रबंधन समिति द्वारा निराकरण किया जाना चाहिए.
उन्होंने भगवान केदारनाथ का इतिहास बताते हुए कहा कि शिव का प्राचीन और स्वयंभू शिवलिंग आदि गुरु जगतगुरु शंकराचार्य भगवान के द्वारा ही स्थापित कर केदारनाथ का मंदिर बनाया गया है. मंदिर के पीछे ही शंकराचार्य जी की समाधि बनी है. इसलिए संन्यासियों के लिए यह विशेष श्रद्धा का स्थान है. संन्यासियों की परंपराओं का ध्यान अवश्य रखना चाहिए.
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हर की पैड़ी तीर्थ पुरोहितों ने किया विरोधः वहीं, हर की पैड़ी के तीर्थ पुरोहित ने धार्मिक मान्यताओं का हवाला देते हुए भगवान भोलेनाथ को स्वर्ण की बजाय भस्म पसंद होने की बात कही है. केदारनाथ गर्भगृह में स्वर्ण परत लगाने को गलत बताया है. उन्होंने कहा कि भगवान शिव भूतनाथ हैं. उनको भस्म प्रिय है. रजत और स्वर्ण अन्य देवी-देवताओं के लिए प्रिय हो सकते हैं लेकिन भगवान शिव उससे इतर हैं.
उदाहरण के तौर पर हर की पैड़ी के तीर्थ पुरोहित उज्ज्वल पंडित (Teerth Purohit Ujjwal Pandit) ने बताया कि समुद्र मंथन के समय जब विभिन्न रत्न एवं द्रव्य और विष निकला तो भगवान शिव ने विष को स्वीकार किया. उन्होंने बताया कि स्वर्ण भगवान विष्णु व अन्य देवी देवताओं को पसंद है. ऐसे में इन विषयों को भी ध्यान में रखने की आवश्यकता है. भगवान शिव के प्राचीन मंदिर की पौराणिकता भव्यता बनी रहनी चाहिए.
बीकेटीसी ने विरोध से किया इनकारः वहीं, दूसरी तरफ श्री बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय का कहना है कि केदारनाथ मंदिर का समय-समय पर नवीनीकरण और सौंदर्यीकरण एक सामान्य प्रथा है. हम स्थानीय लोगों के संपर्क में हैं, अब कोई इसका विरोध नहीं कर रहा है. वहीं, सौंदर्यीकरण का काम रात में होता है, जिससे तीर्थयात्रियों को परेशानी न हो.