मुंबई : शिवसेना ने अपने 'मुखपत्र' सामना में केंद्र की मोदी सरकार को तेल की कीमतों को लेकर घेरा है. मुखपत्र सामना में शिवसेना ने लिखा कि उधर केंद्र की भाजपा सरकार 'सोनार बंगला' बनाने के लिए कोलकाता में ताल ठोंककर बैठी है और देश को पेट्रोल-डीजल की दर वृद्धि में उलझाकर रख दिया है. इस महंगाई पर सरकार का दल चुप्पी साधे बैठा है.
![petrol hike and modi Govt](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/49-mh-mhc10078_22022021065949_2202f_1613957389_108.jpg)
अमूमन महाराष्ट्र में कई मामलों पर आंदोलन करनेवाला भाजपा नामक विरोधी दल पेट्रोल-डीजल की दर वृद्धि पर चुप क्यों है? पेट्रोल दर वृद्धि पर लोगों का विनोदी दिमाग सक्रिय हो गया है. कोल्हापुर के पेट्रोल पंप पर मालिक ने एक जगमगाता फलक लगाया है, जिस पर लिखा है- पेट्रोल दर अपनी जिम्मेदारी पर देखें. दर देखने के बाद झटका लगने पर मालिक जिम्मेदार नहीं है. झटका लगने लायक माहौल ही है. पेट्रोल की शतकपूर्ति का उत्सव भाजपाइयों को मनाना चाहिए, लेकिन इस 'शतकपूर्ति' का श्रेय प्रिय मोदी जी कांग्रेस को देने के लिए तैयार हो गए हैं.
सामना में लिखा है कि मोदी का वक्तव्य ऐसा है कि उन्हें साष्टांग दंडवत ही करना चाहिए, जिसमें उन्होंने कहा कि पहले की सरकारों ने देश के तेल आयात पर नियंत्रण किया होता तो मध्यमवर्गीय लोगों पर महंगाई का भार नहीं पड़ता. पहले की सरकारों ने इंडियन ऑइल, ओएनजीसी, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्थान पेट्रोलियम और मुंबई हाई जैसे सार्वजनिक उपक्रम शुरू किए. समुद्र में से तेल के कुएं ढूंढें. मोदी इन सारे सार्वजनिक उपक्रमों को बेचने की योजना बनाई और अब ईंधन दर वृद्धि का ठीकरा पहले की सरकार पर फोड़कर वैचारिक दीवालियापन प्रदर्शित कर रहे हैं.
अप्रैल 2014 में अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल का भाव 108 डॉलर्स प्रति बैरल था. तब पेट्रोल 71 रुपए और डीजल 58 रुपए में मिलता था. आज फरवरी 2021 में क्रूड ऑइल की दर 62 डॉलर्स प्रति बैरल है, लेकिन आज पेट्रोल 'शतक' मार चुका है और डीजल 90 तक पहुंच गया है. क्रूड ऑइल की दर गिरने का फायदा हिंदुस्थान की जनता को क्यों नहीं मिलना चाहिए? इसका संतोषजनक उत्तर जनता को मिलेगा क्या? लेकिन इस मामले पर जो बोलेगा उसे देशद्रोही कहा जाता है.
2014 से पहले अक्षय कुमार से लेकर अमिताभ बच्चन तक कई अभिनेताओं और महानायकों ने पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि पर अपने विचार प्रकट किए थे. उन्होंने सोशल मीडिया के माध्यम से सवाल किया था कि लोग वैसे जिएंगे और क्या करेंगे? लेकिन अब पेट्रोल के 'शतक' पार करने के बावजूद सारे सेलिब्रिटी चुप क्यों हैं? इस पर विरोधियों की टीका-टिप्पणी शुरू है. वे चुप हैं क्योंकि उन्हें चुप कराया गया है. इसका दूसरा मजबूत अर्थ ये है कि 2014 के पहले देश में विचार व्यक्त करने और टिप्पणी करने की स्वतंत्रता थी. पहले सरकारी नीतियों पर उंगली उठाए जाने पर किसी को देशद्रोह की धारा के अंतर्गत जेल में नहीं ठूंसा जाता था.
आज पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि पर संताप व्यक्त करने की आजादी भी हमने गवां दी है इसलिए अक्षय कुमार और अमिताभ बच्चन को दोष क्यों देते हो? भयानक कृषि कानून के बुलडोजर के नीचे तनावग्रस्त किसान आंदोलन कर रहे हैं. उस आंदोलन का समर्थन करने की स्वतंत्रता जहां नहीं है, वहां पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि के खिलाफ देश के सेलेब्रिटी आवाज उठाएंगे, ऐसी अपेक्षा क्यों करते हो? देश महंगाई की आग में जल रहा है, उस आग के चटके सहन करना मात्र ही लोगों के हाथ में बचा है. महंगाई और विशेष रूप से पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि को देश की गंभीर समस्या के रूप में नहीं देखा जा रहा होगा तो सारी समस्याएं समाप्त हो गई हैं, एक बार ऐसा घोषित कर डालो.
हिंदुस्थान में बने कोरोना के टीके आपने ब्राजील को दिए. ब्राजील ने इसके लिए मोदी का आभार माना. इन सबसे देश के मध्यमवर्गीय लोगों को क्या फायदा? कुवैत के राजपुत्र ने हिंदुस्थानी प्रतिनिधिमंडल से प्रधानमंत्री मोदी की वाहवाही की और अब कोरोना काल में दी गई मदद का आभार मानने का ढिंढोरा पीटा जा रहा है. इसके बदले मोदी को दो-चार तेल के कुएं जनता के लिए लौटाए होते तो जनता खुश हो गई होती. कांग्रेस शासन में जब पेट्रोल-डीजल की दर वृद्धि हुई तब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री मोदी ने कांग्रेस को लुटेरा कहते हुए फटकार लगाई थी. मोदी का कहना था कि यदि कांग्रेस पेट्रोल-डीजल की दर नियंत्रित नहीं कर सकती तो वो सत्ता छोड़ दे. आज मोदी या उनकी सरकार के बारे में कोई ऐसा बोल दे तो उसे देशद्रोही साबित करके जेल में सड़ा दिया जाएगा.
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पेट्रोल-डीजल दर वृद्धि को जो हंसते-हंसते सहन करेगा, वह देशभक्त और जो इस दर वृद्धि के विरोध में बोलेगा वो हरामखोर और देश का गद्दार ऐसा तय किया जा चुका है. पेट्रोल की दर पढ़कर जिसको झटका नहीं लगेगा, वो शूरवीर और जिसे पसीना छूटने लगे वो कमजोर मन का है, हमारे देश में फिलहाल जो ऐसा माना जाने लगा है यह मनोवृत्ति खतरनाक है. लोगों को जीने का अधिकार है और उसमें भी जीवनावश्यक वस्तुओं की दर नियंत्रित रखना सरकार का कर्तव्य है. केंद्र की सरकार अपना कर्तव्य भूल गई होगी तो जनता को उन्हें यह याद दिलाना चाहिए. राम मंदिर के लिए ‘चंदा वसूली’ की बजाय चांद को छूने जा रही पेट्रोल-डीजल की दर को नीचे लाओ. इससे रामभक्तों के चूल्हे जलेंगे और श्रीराम भी खुश होंगे. लोगों ने अपने काम-धंधे की सुविधा के लिए वाहन खरीदे. एक दिन लोगों को इन वाहनों को सड़कों पर छोड़कर घर जाना होगा. फिर चिल्लाते बैठना!