ऋषिकेश (उत्तराखंड): परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती के 72वें वर्ष में प्रवेश के अवसर पर परमार्थ निकेतन में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत (Mohan Bhagwat) और कई संत पहुंचे. साथ ही देश-विदेश के अनेक भक्तों, श्रद्धालुओं, पूज्य संतों, राजनेताओं और अभिनेताओं के वीडियो संदेश, लिखित संदेश से भी शुभकामनाएं प्राप्त हुई. इस अवसर पर परमार्थ परिवार की ओर से पर्यावरण और मानव सेवा की अनेक पहलों का शुभारंभ किया गया.
आरएसएस प्रमुख ने पर्यावरण और धर्म पर रखी बात: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि 142 करोड़ लोग भारत की रीढ़ की हड्डी हैं. मोहन भागवत ने कहा कि हमें धर्म के साथ संस्कृति को आचरण में लाना जरूरी है. कहा कि हमारी संस्कृति श्रेष्ठ है, लेकिन भारतीय संस्कृति के उत्थान के लिए प्रयत्न करना होगा. सनातन धर्म पर हमारी सृष्टि है, धर्म नहीं तो सृष्टि नहीं है. उन्होंने आगे कहा कि आज पूरे विश्व में पर्यावरण पर चर्चा हो रही है, जिसके लिए हम कार्य कर रहे हैं. हम छह हजार वर्षों से खेती कर रहे हैं और आज भी कर रहे हैं, हमारी भूमि में सब कुछ है. जो बातें विज्ञान की उपयोगी है वह हमारे वेदों में उपलब्ध हैं. हमारे पास पहले से ही ज्ञान भी है और विज्ञान भी है.
सनातन धर्म अपना काम करता है, सनातन धर्म अपने विधि-विधान के अनुसार अपना कार्य करेगा उसे पहचानकर हमें उन संस्कारों को स्वीकार कर चलना होगा तो हम सुखी रहेंगे. मोहन भागवत ने कहा कि संतों के आचरण में धर्म रहता है, धर्म सर्वत्र कार्य करता है. साथ ही कहा कि धर्मो रक्षति रक्षितः हमें अंतिम लक्ष्य तक पहुंचना है. यही संकल्प लेकर यहां से जाए. उन्होंने कहा कि धर्म को हमारी जरूरत नहीं है, लेकिन हमें धर्म की जरूरत है.
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स्वामी चिदानंद ने किया अभिनंदन: स्वामी चिदानंद सरस्वती ने जगद्गुरु शंकराचार्य से लेकर महामंडलेश्वर स्वामी असंगानन्द महाराज की परम्परा को प्रणाम करते हुए सभी संतों का अभिनंदन करते हुए कहा कि गंगा के इस पावन तट और हिमालय की पवित्र वादियों से एक आह्वान करने का समय आ गया है. भारत के ऊर्जावान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत का मान पूरे विश्व में बढ़ा रहे हैं. उन्हें यह संस्कृति और संस्कार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से मिले हैं, क्योंकि यह व्यक्ति की नहीं वैश्विक संस्था है. उन्होंने कहा कि भारत ही पूरे विश्व को शांति का मंत्र दे सकता है.
क्योंकि भारत एक जमीन का टुकड़ा नहीं बल्कि शांति की भूमि है. भारत का मंत्र ही है वसुधैव कुटुम्बकम्, यज्ञ तो बहुत लोग करते है परन्तु माननीय मोहन भागवत ने अपने जीवन को ही यज्ञ बना दिया है. यहां बात सत्ता की नहीं सत्य की है. समय-समय पर सनातन के सूर्य को ढ़कने के लिये बादल आते रहे हैं, परन्तु कोई ढ़क नहीं पाया. हम संकल्प ले की इस मातृभूमि के मान को सदैव बनाये रखेंगे. हम विकास और विरासत को साथ-साथ लेकर चले.
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स्वामी अवधेशानंद गिरि ने पौधारोपण का दिया संदेश: जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि महाराज ने कहा कि विगत कुछ वर्षों में योग, आयुर्वेद और भारत की विभिन्न विधाओं से पूरा विश्व रूबरू हुआ है. पूरे विश्व में तेजी से सकारात्मक रूप से प्रसारित होने वाली संस्कृति भारत की संस्कृति है. स्वास्थ्य, सौंदर्य, समाधान और आनन्द देने वाली संस्कृति भारत की संस्कृति है. भारत की संस्कृति हमें भय की ओर नहीं बल्कि भाव व स्वभाव की ओर ले जाती है. उन्होंने कहा कि वृक्ष धरा का श्रृंगार है, इसलिये इनकी रक्षा करें.उन्होंने इस अवसर पर सभी को पौधारोपण का संदेश दिया. इस मौके पर कई वक्ताओं ने अपने विचार रखे.