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'DM साहब मैं जिंदा हूं! ये लोग पैसे के लिए कागज पर मुझे मुर्दा बता रहे'

मोतिहारी में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी एक महिला चिकित्सक को मृत घोषित कर उसके सेवान्त लाभ का गबन करने के प्रयास का भंडाफोड़ हुआ है. चिकित्सक ने अपने जिंदा होने का प्रमाण देते हुए कई अधिकारियों को मैसेज करके इसकी जानकारी दी है. इसके बाद स्वास्थ्य महकमे में हड़कंप मच गया है. देखें रिपोर्ट...

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Published : Jun 5, 2021, 5:55 PM IST

मोतिहारी: पूर्वी चंपारण का स्वास्थ्य महकमा एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गया है. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी जिला में पदस्थापित रही एक महिला चिकित्सक अमृता जायसवाल को मृत घोषित कर उनके सेवान्त लाभ का गबन करने के प्रयास का भंडाफोड़ हुआ है. खुद महिला चिकित्सक ने अपने जिंदा होने का सबूत दिया है. साथ ही, डीएम और सिविल सर्जन समेत कई अधिकारियों को व्हाट्सएप मैसेज कर स्वास्थ्य विभाग के कारनामों की जानकारी दी है.

सिविल सर्जन ने दी सफाई
मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की गई. जबकि, सीएस का कहना है कि उन्होंने कभी भी अपने हस्ताक्षर से अमृता जायसवाल को मृत घोषित वाला एक भी पत्र जारी नहीं किया है.

क्या है पूरा मामला?
सिविल सर्जन डॉ. अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि डॉ. अमृता जायसवाल छौड़ादानो प्रखंड स्थित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेला बाजार में पदस्थापित थी. उन्होंने वर्ष 2013 में स्वैच्छिक सेवानिवृति ली थी. लेकिन उन्होंने सेवान्त लाभ नहीं लिया था.

सिविल सर्जन, डॉ. अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा, डॉ. अमृता जायसवाल के सेवान्त लाभ के फाइल पर धोखा से उनके स्टेनो मनोज शाही ने हस्ताक्षर ले लिया. लेकिन, जब मुझे स्टेनो पर शक हुआ तो इसकी तहकीकात शुरू की. तीन सदस्यीय जांच टीम बनाई गई है. जो अपनी जांच रिपोर्ट डीएम को सौंपेगी.

पढ़ें :- मृत व्यक्ति हुआ जिंदा, कहा- साहेब जिंदा हूं मैं

वर्ष 2002 में जिला में किया था योगदान
बता दें कि डॉ. अमृता चौरसिया ने अविभाजित बिहार के स्वास्थ्य विभाग में 13 नवंबर 1990 को अपना योगदान दिया था. उनकी पहली पोस्टिंग हजारीबाग में हुई थी. उसके बाद कई जगह उनकी पोस्टिंग हुई. 8 जुलाई 2002 को उन्होंने पूर्वी चंपारण के स्वास्थ्य विभाग में अपना योगदान दिया और 7 जुलाई 2003 को छौड़ादानो प्रखंड के एपीएचसी बेला बाजार में प्रभारी चिकित्सा प्रभारी के रूप में पदस्थापना हुई. बेला एपीएचसी में पदस्थापना के दौरान हीं उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी लगाई और सरकार ने उन्हें वीआरएस की अनुमति दे दी.

स्वास्थ्य महकमा ने चिकित्सक को मृत घोषित किया
डॉ. अमृता जायसवाल ने 18 मार्च 2013 को वीआरएस ले लिया और वह ओमान चली चली. लेकिन उन्हें एलआईसी और जीपीएफ का सेवान्त लाभ नहीं मिला. इधर स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से डॉ. अमृता जायसवाल को मृत घोषित करके उनकी सेवान्त लाभ की राशि के गबन का प्रयास किया गया. जिस पर सिविल सर्जन अखिलेश्वर प्रसाद सिंह के हस्ताक्षर भी हो गए है. इस बात की जानकारी जब डॉ. अमृता जायसवाल को लगी तो उन्होंने इस संबंध में डीएम शीर्षत कपिल अशोक, सिविल सर्जन अखिलेश्वर प्रसाद सिंह समेत कई अधिकारियों को व्हाट्सएप मैसेज भेजकर खुद को जीवित बताते हुए सारे मामले की जानकारी दी.

मोतिहारी: पूर्वी चंपारण का स्वास्थ्य महकमा एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गया है. स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति ले चुकी जिला में पदस्थापित रही एक महिला चिकित्सक अमृता जायसवाल को मृत घोषित कर उनके सेवान्त लाभ का गबन करने के प्रयास का भंडाफोड़ हुआ है. खुद महिला चिकित्सक ने अपने जिंदा होने का सबूत दिया है. साथ ही, डीएम और सिविल सर्जन समेत कई अधिकारियों को व्हाट्सएप मैसेज कर स्वास्थ्य विभाग के कारनामों की जानकारी दी है.

सिविल सर्जन ने दी सफाई
मामला सामने आने के बाद स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मच गया. आनन-फानन में तीन सदस्यीय जांच टीम गठित की गई. जबकि, सीएस का कहना है कि उन्होंने कभी भी अपने हस्ताक्षर से अमृता जायसवाल को मृत घोषित वाला एक भी पत्र जारी नहीं किया है.

क्या है पूरा मामला?
सिविल सर्जन डॉ. अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने बताया कि डॉ. अमृता जायसवाल छौड़ादानो प्रखंड स्थित अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र बेला बाजार में पदस्थापित थी. उन्होंने वर्ष 2013 में स्वैच्छिक सेवानिवृति ली थी. लेकिन उन्होंने सेवान्त लाभ नहीं लिया था.

सिविल सर्जन, डॉ. अखिलेश्वर प्रसाद सिंह ने कहा, डॉ. अमृता जायसवाल के सेवान्त लाभ के फाइल पर धोखा से उनके स्टेनो मनोज शाही ने हस्ताक्षर ले लिया. लेकिन, जब मुझे स्टेनो पर शक हुआ तो इसकी तहकीकात शुरू की. तीन सदस्यीय जांच टीम बनाई गई है. जो अपनी जांच रिपोर्ट डीएम को सौंपेगी.

पढ़ें :- मृत व्यक्ति हुआ जिंदा, कहा- साहेब जिंदा हूं मैं

वर्ष 2002 में जिला में किया था योगदान
बता दें कि डॉ. अमृता चौरसिया ने अविभाजित बिहार के स्वास्थ्य विभाग में 13 नवंबर 1990 को अपना योगदान दिया था. उनकी पहली पोस्टिंग हजारीबाग में हुई थी. उसके बाद कई जगह उनकी पोस्टिंग हुई. 8 जुलाई 2002 को उन्होंने पूर्वी चंपारण के स्वास्थ्य विभाग में अपना योगदान दिया और 7 जुलाई 2003 को छौड़ादानो प्रखंड के एपीएचसी बेला बाजार में प्रभारी चिकित्सा प्रभारी के रूप में पदस्थापना हुई. बेला एपीएचसी में पदस्थापना के दौरान हीं उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति की अर्जी लगाई और सरकार ने उन्हें वीआरएस की अनुमति दे दी.

स्वास्थ्य महकमा ने चिकित्सक को मृत घोषित किया
डॉ. अमृता जायसवाल ने 18 मार्च 2013 को वीआरएस ले लिया और वह ओमान चली चली. लेकिन उन्हें एलआईसी और जीपीएफ का सेवान्त लाभ नहीं मिला. इधर स्वास्थ्य विभाग के कुछ कर्मियों की मिलीभगत से डॉ. अमृता जायसवाल को मृत घोषित करके उनकी सेवान्त लाभ की राशि के गबन का प्रयास किया गया. जिस पर सिविल सर्जन अखिलेश्वर प्रसाद सिंह के हस्ताक्षर भी हो गए है. इस बात की जानकारी जब डॉ. अमृता जायसवाल को लगी तो उन्होंने इस संबंध में डीएम शीर्षत कपिल अशोक, सिविल सर्जन अखिलेश्वर प्रसाद सिंह समेत कई अधिकारियों को व्हाट्सएप मैसेज भेजकर खुद को जीवित बताते हुए सारे मामले की जानकारी दी.

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