गोरखपुरः जिले में रहने वाले रिटायर्ड बैंक अधिकारी रवि द्विवेदी ने बोनसाई पौधों की एक ऐसी बगिया तैयार की है, जो अपने आप ही लोगों को आकर्षित कर लेती है. उन्हें पौधे लगाने और उनके रखरखाव में काफी रूचि है. इनके पास बोनसाई पौधों का विशाल संग्रह है. इस वजह से लोग प्रेम से उन्हें 'बोनसाई बाबा' के नाम से भी पुकारते हैं. इनके बगिया में 43 साल पुराना बरगद और 27 साल पुराना पीपल का भी पेड़ संरक्षित है. रुद्राक्ष से लेकर 400 तरह के पौधे हैं यहां, जिनमें जड़ी बूटियों से लेकर फल, फूल शामिल हैं.
इनकी देखभाल यह खुद एक माली की तरह करते हैं. समय और ऋतु के हिसाब से यह पौधों में खाद डालना नहीं भूलते. इनकी बगिया के पौधे राजभवन से लेकर मुख्यमंत्री आवास तक पहुंचे हैं, लेकिन अगर नहीं पहुंची है तो इनकी बोनसाई को स्थापित करने के लिए एक बगिया के लिए छोटे से जमीन के टुकड़े की मांग. जो ऐसे पौधों के विशाल संग्रह का एक बेहतरीन प्रदर्शन केंद्र साबित हो सकता है.
पौधे लगाने की प्रेरणा 16 वर्ष की उम्र में इन्हें अपने एक रिश्तेदार से मिली थी. इसके बाद यह बैंक में नौकरी करते हुए एक-एक अनमोल पौधों को रोपते चले गए, जो आज उनके घर के लॉन में बोनसाई पौधों की सुंदर बगिया के रूप में नजर आते हैं. इनकी बगिया में 43 साल का पुराना बरगद और 27 साल का पाकड़ का पेड़ की मजबूती के साथ खड़ा है. उसके जड़ और तने के साथ पत्तियों की हरियाली को देखकर के आपको इन पौधों से प्रेम हो जाएगा. रवि द्विवेदी के हुनर के आप कायल भी हो जाएंगे.
बोनसाई बाबा रवि द्विवेदी ने बताया कि किसी भी प्रकार का कोई पौधरोपण से संबंधित प्रशिक्षण नहीं होने के बाद भी बैंककर्मी की एक व्यस्त जीवनशैली को जीते हुए उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को लेकर बोनसाई जैसी वाटिका को तैयार करने जैसा कठिन कार्य किया है. रवि द्विवेदी न तो अपने युवा काल में इससे पीछे हटे और नहीं आज रिटायर होने के बाद. वर्ष 2019 में वह सेवामुक्त हो गए फिर भी पौधों की निराई, गुड़ाई, खाद पानी और हर समय कुछ नए प्रकार के पौधों को रोपित करने का सिलसिला इनका आज भी जारी है.
इनके खास पेड़ों में पीपल, पकड़, बरगद, जामुन और गूलर का भी पेड़ है, जो कि छोटे से गमले में फल देता है. अनार, अंजीर, नारियल, तेज पत्ता, चाय, कॉफी, इलायची, करौदा, शहतूत, गुड़हल, रुद्राक्ष, शमी ,आडू, चीकू, तेजपत्ता और पनियाला जैसा पौधा भी गमले में ही मिल जाएगा. सबका स्वरुप बोनसाई जैसा ही होगा और इसमें समय के साथ फल भी लगता रहता है. पौधों की प्रगति हो इसलिए हर सीजन में रवि द्विवेदी मिट्टी बदल देते हैं. मिट्टी में सुर्खी, कोयला, नीम की खली, जिंक, फास्फोरस के साथ हड्डी का चूरा भी मिलाते हैं.
वह बताते हैं कि फ्रूट्स के प्लांट में हड्डी का चूरा अधिक डालना चाहिए और पौधों को समय-समय पर काटते चाहते रहना चाहिए. पौधे में पानी डालने का भी खास ख्याल रखना चाहिए, क्योंकि कुछ पौधे ऐसे होते हैं जिसमें 10 से 15 दिन में सिर्फ एक बार पानी की जरूरत होती है. इनकी बोनसाई वाटिका को देखने के लिए वनस्पति शास्त्र के ज्ञाता प्रोफेसर द्विवेदी समेत कई बड़ी हस्तियों का आगमन हुआ और सभी ने सराहा. कुछ लोगों को इन्होंने अपने बोनसाई के पौधों को उपहार भी दिया, लेकिन अब यह किसी को देना नहीं चाहते. क्योंकि जिनके पास पहुंच गए वह उसका रखरखाव अच्छा नहीं कर रहे, यह देखकर इन्हें आज बहुत कष्ट होता है. हालांकि यह चाहते हैं कि उनकी यह कृति और उनका यह हुनर एक बड़े वाटिका का स्वरूप लेता, लेकिन इसके लिए उन्हें जगह की आवश्यकता है जो सरकारी पहल से मिल जाती तो यह वाटिका लोगों के आकर्षण का केंद्र बन जाती.
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