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SC का बड़ा फैसला, संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को हटाने वाली याचिका खारिज की - SUPREME COURT PREAMBLE SOCIALIST

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को आपातकाल के दौरान संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को शामिल करने के खिलाफ याचिका को खारिज कर दिया.

SC rejects pleas against inclusion of socialist
सुप्रीम कोर्ट (IANS)
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By Sumit Saxena

Published : Nov 25, 2024, 2:13 PM IST

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़ने वाले 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता नहीं है. पीठ ने पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर 22 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस याचिका में संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी.

सीजेआई ने कहा कि दो अभिव्यक्तियां 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' 1976 में संशोधन के जरिए बनाई गई थी और यह तथ्य कि संविधान 1949 में अपनाया गया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. सीजेआई ने कहा, 'पूर्वव्यापी तर्क, अगर स्वीकार किए जाते हैं तो सभी संशोधनों पर लागू होंगे.'

22 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि आपातकाल के दौरान संसद ने जो कुछ भी किया वह सब निरर्थक था. साथ ही कहा कि संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्दों को जोड़ने वाला 1976 का संशोधन न्यायिक समीक्षा से गुजर चुका है.

'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्दों को 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था. भारत में आपातकाल की घोषणा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. यह 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच रहा. इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत के वर्णन को 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' से बदलकर 'संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'विषय संशोधन (42वां संशोधन) इस न्यायालय द्वारा कुछ हद तक न्यायिक समीक्षा के अधीन रहा है. संसद ने हस्तक्षेप किया है. हम यह नहीं कह सकते कि उस समय (आपातकाल) संसद ने जो कुछ भी किया सब कुछ निरर्थक था.'

पीठ ने कहा कि भारत में समाजवाद को जिस तरह से समझा जाता है वह अन्य देशों से बहुत अलग है और भारतीय संदर्भ में समाजवाद का मुख्य अर्थ कल्याणकारी राज्य है. पीठ ने कहा, 'इसने निजी क्षेत्र को कभी नहीं रोका जो अच्छी तरह से फल-फूल रहा है. हम सभी को इससे लाभ हुआ है.' पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एस आर बोम्मई मामले में 'धर्मनिरपेक्षता' को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना था.

ये भी पढ़ें- ज्ञानवापी मस्जिद मामला: 'शिवलिंग' पाए जाने वाले क्षेत्र का ASI सर्वे कराने की याचिका, मुस्लिम पक्ष को सुप्रीम कोर्ट का नोटिस

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' जैसे शब्द जोड़ने वाले 1976 के संशोधन को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया.

भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि याचिकाओं पर विस्तृत सुनवाई की आवश्यकता नहीं है. पीठ ने पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और अन्य द्वारा दायर याचिकाओं पर 22 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इस याचिका में संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' शब्दों को शामिल किए जाने को चुनौती दी गई थी.

सीजेआई ने कहा कि दो अभिव्यक्तियां 'समाजवादी' और 'धर्मनिरपेक्ष' 1976 में संशोधन के जरिए बनाई गई थी और यह तथ्य कि संविधान 1949 में अपनाया गया था, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. सीजेआई ने कहा, 'पूर्वव्यापी तर्क, अगर स्वीकार किए जाते हैं तो सभी संशोधनों पर लागू होंगे.'

22 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि आपातकाल के दौरान संसद ने जो कुछ भी किया वह सब निरर्थक था. साथ ही कहा कि संविधान की प्रस्तावना में 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्दों को जोड़ने वाला 1976 का संशोधन न्यायिक समीक्षा से गुजर चुका है.

'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष' और 'अखंडता' शब्दों को 1976 में इंदिरा गांधी सरकार द्वारा पेश किए गए 42वें संविधान संशोधन के तहत संविधान की प्रस्तावना में शामिल किया गया था. भारत में आपातकाल की घोषणा दिवंगत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने की थी. यह 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच रहा. इस संशोधन ने प्रस्तावना में भारत के वर्णन को 'संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य' से बदलकर 'संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य' कर दिया.

सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'विषय संशोधन (42वां संशोधन) इस न्यायालय द्वारा कुछ हद तक न्यायिक समीक्षा के अधीन रहा है. संसद ने हस्तक्षेप किया है. हम यह नहीं कह सकते कि उस समय (आपातकाल) संसद ने जो कुछ भी किया सब कुछ निरर्थक था.'

पीठ ने कहा कि भारत में समाजवाद को जिस तरह से समझा जाता है वह अन्य देशों से बहुत अलग है और भारतीय संदर्भ में समाजवाद का मुख्य अर्थ कल्याणकारी राज्य है. पीठ ने कहा, 'इसने निजी क्षेत्र को कभी नहीं रोका जो अच्छी तरह से फल-फूल रहा है. हम सभी को इससे लाभ हुआ है.' पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने 1994 के एस आर बोम्मई मामले में 'धर्मनिरपेक्षता' को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना था.

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