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रेपो दर में 30-50 आधार अंकों की वृद्धि की उम्मीद

सोमवार को मुंबई में शुरू हुई तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुधवार को समाप्त होने की उम्मीद है. तमाम विश्लेषकों को मौजूदा समीक्षा बैठक में भी एक और वृद्धि किए जाने की उम्मीद है. ऐसी चर्चायें हैं कि आरबीआई रेपो दर में 0.35 प्रतिशत से 0.40 प्रतिशत की एक और वृद्धि कर सकता है. फिलहाल रेपो दर 4.40 प्रतिशत पर है.

रेपो दर में 30-50 आधार अंकों की वृद्धि की उम्मीद
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Published : Jun 7, 2022, 1:04 PM IST

Updated : Jun 7, 2022, 4:18 PM IST

नई दिल्ली: भारत की थोक मुद्रास्फीति (WPI) एक वर्ष से अधिक समय से दोहरे अंकों में है, अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के रूप में मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति केंद्र सरकार द्वारा रिजर्व बैंक के लिए निर्धारित ऊपरी सीमा से दो प्रतिशत अधिक थी. सोमवार को मुंबई में शुरू हुई तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुधवार को समाप्त होने की उम्मीद है. तमाम विश्लेषकों को मौजूदा समीक्षा बैठक में भी एक और वृद्धि किए जाने की उम्मीद है. ऐसी चर्चायें हैं कि आरबीआई रेपो दर में 0.35 प्रतिशत से 0.40 प्रतिशत की एक और वृद्धि कर सकता है. फिलहाल रेपो दर 4.40 प्रतिशत पर है.

बहरहाल कुछ बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्रास्फीति के अप्रैल में आठ साल के शीर्ष स्तर पर पहुंच जाने के बाद रिजर्व बैंक बुधवार को रेपो दर में 0.40 प्रतिशत से भी ज्यादा की बढ़ोतरी कर सकता है. आरबीआई का मुद्रास्फीति के लिए संतोषजनक स्तर छह प्रतिशत का है लेकिन अब यह आठ प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है. मुद्रास्फीति में इस बढ़ोतरी के लिए जिंसों एवं ईंधन के दामों में हुई वृद्धि को जिम्मेदार माना जा रहा है. खासकर फरवरी के अंत में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से मुद्रास्फीति में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

पढ़ें: विशेषज्ञों की राय, मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपो दर में एक और वृद्धि करेगा RBI

थोक-मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 13 माह से दहाई अंक में बनी हुई है और अप्रैल, 2022 में यह रिकॉर्ड 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गई. ऐसे हालात में केंद्रीय बैंक के पास ब्याज दर बढ़ाने के मोर्चे पर विकल्प बहुत सीमित ही रह गए हैं. कोटक महिंद्रा बैंक की समूह अध्यक्ष (उपभोक्ता बैंकिंग) शांति एकंबरम का कहना है कि बढ़ती मुद्रास्फीति के दौर में एमपीसी जून की बैठक में 0.35-5.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम एवं जिंस उत्पादों की कीमतों को देखते हुए रेपो दर में कुल एक से 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि होने का अनुमान है.

मई में अनिर्धारित रेपो दर वृद्धि : बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के कारण आरबीआई ने पिछले महीने एक अनिर्धारित बैठक बुलाकर रिवर्स रेपो दर में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की घोषणा की थी. ताकि इसे 4.4% तक ले जाया जा सके. हालांकि अर्थशास्त्री और उद्योग आरबीआई के अचानक कदम से हैरान थे क्योंकि यह डूबती अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जरूरी ऋण प्रवाह को प्रभावित कर सकता है. हालांकि, कई लोगों ने इसे कदम माना और कहा कि महंगाई पर लगाम ना लगने की स्थिति में आर्थिक सुधार के प्रयास पटरी से उतर सकते हैं.

पढ़ें: रेपो रेट में लगातार 11वीं बार बदलाव नहीं, रेपो दर 4% पर बरकरार, महंगाई बढ़ी

अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि रेपो दर में और 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गुंजाइश है जो इसे 5% के करीब ले जाएगी. रेपो दर में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी के तीन हफ्ते बाद, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी 23 मई को स्पष्ट किया कि जून की बैठक में दरों में और बढ़ोतरी की जा सकती है. दास ने एक साक्षात्कार में कहा था कि दरों में वृद्धि की उम्मीद है, कुछ बढ़ोतरी होगी लेकिन कितनी बढ़ोतरी होगी यह मैं अभी नहीं बता पाऊंगा.

आरबीआई के फैसले का क्या होगा असर? : रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अधिकांश उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में रिकॉर्ड मुद्रास्फीति दर्ज की जा रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति 40 साल के उच्च स्तर पर है, तुर्की जैसे कई यूरोपीय और भूमध्यसागरीय देशों में भी मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर है. कुछ पूर्वानुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतें कम से कम अगले दो महीनों के लिए 120 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने की उम्मीद है. भारत एक शुद्ध ऊर्जा आयातक होने के नाते अत्यधिक दबाव में है.

दूसरे, कोरोना के कारण ओमिक्रॉन संस्करण के कारण आपूर्ति पक्ष में व्यवधान अभी भी बना हुआ है. क्योंकि महामारी का प्रक्षेपवक्र अभी भी अनिश्चित है. इसके साथ ही मंकी पॉक्स के बढ़ते मामलों का भी मौद्रिक नीति पर असर देखा जायेगा.इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपये की विनिमय दर अगली तीन तिमाहियों के लिए 76-78 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर के दायरे में रहने की उम्मीद है. जिससे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति पर दबाव पड़ रहा है.

नई दिल्ली: भारत की थोक मुद्रास्फीति (WPI) एक वर्ष से अधिक समय से दोहरे अंकों में है, अप्रैल में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) के रूप में मापी गई खुदरा मुद्रास्फीति केंद्र सरकार द्वारा रिजर्व बैंक के लिए निर्धारित ऊपरी सीमा से दो प्रतिशत अधिक थी. सोमवार को मुंबई में शुरू हुई तीन दिवसीय मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुधवार को समाप्त होने की उम्मीद है. तमाम विश्लेषकों को मौजूदा समीक्षा बैठक में भी एक और वृद्धि किए जाने की उम्मीद है. ऐसी चर्चायें हैं कि आरबीआई रेपो दर में 0.35 प्रतिशत से 0.40 प्रतिशत की एक और वृद्धि कर सकता है. फिलहाल रेपो दर 4.40 प्रतिशत पर है.

बहरहाल कुछ बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि मुद्रास्फीति के अप्रैल में आठ साल के शीर्ष स्तर पर पहुंच जाने के बाद रिजर्व बैंक बुधवार को रेपो दर में 0.40 प्रतिशत से भी ज्यादा की बढ़ोतरी कर सकता है. आरबीआई का मुद्रास्फीति के लिए संतोषजनक स्तर छह प्रतिशत का है लेकिन अब यह आठ प्रतिशत के आसपास पहुंच गई है. मुद्रास्फीति में इस बढ़ोतरी के लिए जिंसों एवं ईंधन के दामों में हुई वृद्धि को जिम्मेदार माना जा रहा है. खासकर फरवरी के अंत में रूस और यूक्रेन के बीच युद्ध शुरू होने के बाद से मुद्रास्फीति में तेजी से बढ़ोतरी हुई है.

पढ़ें: विशेषज्ञों की राय, मौद्रिक समीक्षा बैठक में रेपो दर में एक और वृद्धि करेगा RBI

थोक-मूल्य सूचकांक आधारित मुद्रास्फीति 13 माह से दहाई अंक में बनी हुई है और अप्रैल, 2022 में यह रिकॉर्ड 15.08 प्रतिशत पर पहुंच गई. ऐसे हालात में केंद्रीय बैंक के पास ब्याज दर बढ़ाने के मोर्चे पर विकल्प बहुत सीमित ही रह गए हैं. कोटक महिंद्रा बैंक की समूह अध्यक्ष (उपभोक्ता बैंकिंग) शांति एकंबरम का कहना है कि बढ़ती मुद्रास्फीति के दौर में एमपीसी जून की बैठक में 0.35-5.0 प्रतिशत की बढ़ोतरी कर सकती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि पेट्रोलियम एवं जिंस उत्पादों की कीमतों को देखते हुए रेपो दर में कुल एक से 1.5 प्रतिशत तक की वृद्धि होने का अनुमान है.

मई में अनिर्धारित रेपो दर वृद्धि : बढ़ी हुई मुद्रास्फीति के कारण आरबीआई ने पिछले महीने एक अनिर्धारित बैठक बुलाकर रिवर्स रेपो दर में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी की घोषणा की थी. ताकि इसे 4.4% तक ले जाया जा सके. हालांकि अर्थशास्त्री और उद्योग आरबीआई के अचानक कदम से हैरान थे क्योंकि यह डूबती अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए जरूरी ऋण प्रवाह को प्रभावित कर सकता है. हालांकि, कई लोगों ने इसे कदम माना और कहा कि महंगाई पर लगाम ना लगने की स्थिति में आर्थिक सुधार के प्रयास पटरी से उतर सकते हैं.

पढ़ें: रेपो रेट में लगातार 11वीं बार बदलाव नहीं, रेपो दर 4% पर बरकरार, महंगाई बढ़ी

अर्थशास्त्रियों का यह भी मानना है कि रेपो दर में और 50 आधार अंकों की बढ़ोतरी की गुंजाइश है जो इसे 5% के करीब ले जाएगी. रेपो दर में 40 आधार अंकों की बढ़ोतरी के तीन हफ्ते बाद, आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी 23 मई को स्पष्ट किया कि जून की बैठक में दरों में और बढ़ोतरी की जा सकती है. दास ने एक साक्षात्कार में कहा था कि दरों में वृद्धि की उम्मीद है, कुछ बढ़ोतरी होगी लेकिन कितनी बढ़ोतरी होगी यह मैं अभी नहीं बता पाऊंगा.

आरबीआई के फैसले का क्या होगा असर? : रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण अधिकांश उन्नत और उभरती अर्थव्यवस्थाओं में रिकॉर्ड मुद्रास्फीति दर्ज की जा रही है. संयुक्त राज्य अमेरिका में मुद्रास्फीति 40 साल के उच्च स्तर पर है, तुर्की जैसे कई यूरोपीय और भूमध्यसागरीय देशों में भी मुद्रास्फीति उच्च स्तर पर है. कुछ पूर्वानुमानों के अनुसार, कच्चे तेल की कीमतें कम से कम अगले दो महीनों के लिए 120 डॉलर प्रति बैरल के दायरे में रहने की उम्मीद है. भारत एक शुद्ध ऊर्जा आयातक होने के नाते अत्यधिक दबाव में है.

दूसरे, कोरोना के कारण ओमिक्रॉन संस्करण के कारण आपूर्ति पक्ष में व्यवधान अभी भी बना हुआ है. क्योंकि महामारी का प्रक्षेपवक्र अभी भी अनिश्चित है. इसके साथ ही मंकी पॉक्स के बढ़ते मामलों का भी मौद्रिक नीति पर असर देखा जायेगा.इसके अलावा, अमेरिकी डॉलर और भारतीय रुपये की विनिमय दर अगली तीन तिमाहियों के लिए 76-78 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर के दायरे में रहने की उम्मीद है. जिससे देश के भुगतान संतुलन की स्थिति पर दबाव पड़ रहा है.

Last Updated : Jun 7, 2022, 4:18 PM IST
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