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रूस-यूक्रेन संघर्ष से 'हार्ड पावर' की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई : सेनाध्यक्ष पांडे - Chief of Army Staff Manoj Pandey

पीएचडीसीसीआई डिफेंस एक्स टेक इंडिया-2023 को संबोधित करते हुए थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने भारत की 'विवादित सीमा की विरासत' के प्रति आगाह किया.

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Published : Mar 23, 2023, 6:37 PM IST

नई दिल्ली : थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा है कि रूस-यूक्रेन से भविष्य की लड़ाई छोटी और तेज होने की धारणा गलत साबित हुई है और 'हार्ड पावर' की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है. उन्होंने इसके साथ ही रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर दिया. 'हार्ड पावर' का अभिप्राय राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति से है जिसका इस्तेमाल प्रभावित करने के लिए किया जाता है. यहां आयोजित 'पीएचडीसीसीआई डिफेंस एक्स टेक इंडिया-2023' को संबोधित करते हुए जनरल पांडे ने भारत की 'विवादित सीमा की विरासत' के प्रति आगाह किया और 'ग्रे जोन आक्रमकता' के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि यह संघर्ष समाधान के लिए सबसे अधिक अपनाई जाने वाली रणनीति बनती जा रही है.

'ग्रे जोन आक्रमकता' सहयोग व सैन्य संघर्ष की बीच की स्थिति है जिसमें में राज्य और गैर राज्यीय शक्तियां मिलकर कार्रवाई करती हैं जो पूर्ण सैन्य कार्रवाई से नीचे का क्रम है. जनरल पांडे ने कहा, "मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष कुछ मूल्यवान सीख देता है. हार्ड पावर की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि जमीन युद्ध का निर्णायक स्थान है और विजय का भाव भूमि केंद्रित है." उन्होंने कहा, "युद्ध की अवधि को लेकर बनी धारणा पर मुझे लगता है कि पुन: मूल्यांकन करने की जरूरत है. कुछ समय पहले जो हम छोटी और तेज गति से होने वाले युद्ध की बात कर रहे थे लगता है कि गलत धारणा साबित हुई है और हमें लंबी अवधि के लिए पूर्ण संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है."

सेनाध्यक्ष ने कहा कि प्रमुख बातों में से एक यह है कि भारत को आयात पर निर्भरता से दूर रहने की जरूरत है. जनरल पांडे ने कहा, "हमारी युद्ध लड़ने वाली प्रणाली में प्रौद्योगिकी को शामिल करने का प्रयास वास्तव में एक स्थायी प्रयास है." जनरल पांडे ने कहा कि लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों ने साबित कर दिया कि दूरी सुरक्षा की गांरटी नहीं है और आसमान में अब केवल पायलट युक्त लड़ाकू विमानों का ही प्रभुत्व नहीं रहा. उन्होंने कहा, "ड्रोन, मार्ग बदलने वाले हथियार, कंधे पर रख कर हवा में रक्षा के लिए दागी जाने वाली मिसाइलें, मानवरहित प्रणाली से हवाई सुरक्षा में विविधता आई है." उन्होंने रूसी नौसेना की पिछले साल अप्रैल में डूबे क्रूजर मोस्कावा का भी उल्लेख किया.

जनरल पांडेय ने कहा, "केवल दो पोत रोधी मिसाइलों के हमले से डूबे मोस्कावा ने रेखांकित कि समुद्री क्षेत्र में भी हथियार मंच (पोत)यहां तक कम लागत वाली रक्षा प्रणाली से भी असुरक्षित हैं." उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि प्रौद्योगिकी भू राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नए रणनीति मंच के तौर पर उभरा है." जनरल पांडे ने कहा, "इससे हम जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वह यह है कि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता और अनुसंधान एवं विकास में निवेश एक आवश्यक रणनीतिक जरूरत है. देशों की सुरक्षा 'आउटसोर्स' नहीं की जा सकती और न ही इस मामले में अन्य राष्ट्रों पर निर्भर हुआ जा सकता है."

आधुनिकीकरण पर सेनाध्यक्ष ने कहा कि भारतीय सेना ने अपने इस्तेमाल के लिए 47 विशेष प्रौद्योगिकी की पहचान की है, लेकिन साथ ही पुराने और नए में संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में भारतीय सेना के 47 प्रतिशत उपकरण पुराने हैं, 41 प्रतिशत मौजूदा समय के हैं जबकि 12 प्रतिशत अत्याधुनिक है. जनरल पांडे ने कहा, "वर्ष 2030 तक हमारे पास केवल 20 प्रतिशत पुराने उपकरण होंगे, 35 प्रतिशत मौजूदा समयानुकूल होंगे जबकि 40 से 45 प्रतिशत अत्याधुनिक उपकरण (हथियार) होंगे और इसमें भारतीय उद्योग का योगदान महत्वपूर्ण होगा."

नई दिल्ली : थल सेनाध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने कहा है कि रूस-यूक्रेन से भविष्य की लड़ाई छोटी और तेज होने की धारणा गलत साबित हुई है और 'हार्ड पावर' की प्रासंगिकता की पुष्टि हुई है. उन्होंने इसके साथ ही रक्षा उत्पादन के स्वदेशीकरण और प्रौद्योगिकी के विकास पर जोर दिया. 'हार्ड पावर' का अभिप्राय राजनीतिक, सैन्य और आर्थिक शक्ति से है जिसका इस्तेमाल प्रभावित करने के लिए किया जाता है. यहां आयोजित 'पीएचडीसीसीआई डिफेंस एक्स टेक इंडिया-2023' को संबोधित करते हुए जनरल पांडे ने भारत की 'विवादित सीमा की विरासत' के प्रति आगाह किया और 'ग्रे जोन आक्रमकता' के सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि यह संघर्ष समाधान के लिए सबसे अधिक अपनाई जाने वाली रणनीति बनती जा रही है.

'ग्रे जोन आक्रमकता' सहयोग व सैन्य संघर्ष की बीच की स्थिति है जिसमें में राज्य और गैर राज्यीय शक्तियां मिलकर कार्रवाई करती हैं जो पूर्ण सैन्य कार्रवाई से नीचे का क्रम है. जनरल पांडे ने कहा, "मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष कुछ मूल्यवान सीख देता है. हार्ड पावर की प्रासंगिकता अब भी बनी हुई है क्योंकि जमीन युद्ध का निर्णायक स्थान है और विजय का भाव भूमि केंद्रित है." उन्होंने कहा, "युद्ध की अवधि को लेकर बनी धारणा पर मुझे लगता है कि पुन: मूल्यांकन करने की जरूरत है. कुछ समय पहले जो हम छोटी और तेज गति से होने वाले युद्ध की बात कर रहे थे लगता है कि गलत धारणा साबित हुई है और हमें लंबी अवधि के लिए पूर्ण संघर्ष के लिए खुद को तैयार करने की जरूरत है."

सेनाध्यक्ष ने कहा कि प्रमुख बातों में से एक यह है कि भारत को आयात पर निर्भरता से दूर रहने की जरूरत है. जनरल पांडे ने कहा, "हमारी युद्ध लड़ने वाली प्रणाली में प्रौद्योगिकी को शामिल करने का प्रयास वास्तव में एक स्थायी प्रयास है." जनरल पांडे ने कहा कि लंबी दूरी तक मार करने वाले हथियारों ने साबित कर दिया कि दूरी सुरक्षा की गांरटी नहीं है और आसमान में अब केवल पायलट युक्त लड़ाकू विमानों का ही प्रभुत्व नहीं रहा. उन्होंने कहा, "ड्रोन, मार्ग बदलने वाले हथियार, कंधे पर रख कर हवा में रक्षा के लिए दागी जाने वाली मिसाइलें, मानवरहित प्रणाली से हवाई सुरक्षा में विविधता आई है." उन्होंने रूसी नौसेना की पिछले साल अप्रैल में डूबे क्रूजर मोस्कावा का भी उल्लेख किया.

जनरल पांडेय ने कहा, "केवल दो पोत रोधी मिसाइलों के हमले से डूबे मोस्कावा ने रेखांकित कि समुद्री क्षेत्र में भी हथियार मंच (पोत)यहां तक कम लागत वाली रक्षा प्रणाली से भी असुरक्षित हैं." उन्होंने कहा, "मेरा मानना है कि प्रौद्योगिकी भू राजनीतिक प्रतिस्पर्धा में नए रणनीति मंच के तौर पर उभरा है." जनरल पांडे ने कहा, "इससे हम जो निष्कर्ष निकाल सकते हैं, वह यह है कि महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता और अनुसंधान एवं विकास में निवेश एक आवश्यक रणनीतिक जरूरत है. देशों की सुरक्षा 'आउटसोर्स' नहीं की जा सकती और न ही इस मामले में अन्य राष्ट्रों पर निर्भर हुआ जा सकता है."

आधुनिकीकरण पर सेनाध्यक्ष ने कहा कि भारतीय सेना ने अपने इस्तेमाल के लिए 47 विशेष प्रौद्योगिकी की पहचान की है, लेकिन साथ ही पुराने और नए में संतुलन स्थापित करने पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में भारतीय सेना के 47 प्रतिशत उपकरण पुराने हैं, 41 प्रतिशत मौजूदा समय के हैं जबकि 12 प्रतिशत अत्याधुनिक है. जनरल पांडे ने कहा, "वर्ष 2030 तक हमारे पास केवल 20 प्रतिशत पुराने उपकरण होंगे, 35 प्रतिशत मौजूदा समयानुकूल होंगे जबकि 40 से 45 प्रतिशत अत्याधुनिक उपकरण (हथियार) होंगे और इसमें भारतीय उद्योग का योगदान महत्वपूर्ण होगा."

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