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राजस्थान: शनि शिंगणापुर की तरह, बीकानेर में कोडमदेसर भैरव मंदिर में भी नहीं है छत

आज भैरवाष्टमी है भगवान रुद्र और विष्णु के अवतार के रूप में भगवान भैरवनाथ (Bikaner Kodamdesar Bhairav Temple) की पूजा होती है. महाराष्ट्र में शनि शिंगणापुर की तर्ज पर बीकानेर में भी भगवान भैरव नाथ का मंदिर है जिस पर कोई छत नहीं है और खुले आसमान के नीचे भगवान भैरवनाथ की पूजा अर्चना होती है. बीकानेर की स्थापना से पूर्व स्थापित इस भैरव मंदिर की स्थापना को लेकर ये रिपोर्ट.

Bikaner Kodamdesar Bhairav Temple
कोडमदेसर भैरव मंदिर
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Published : Nov 16, 2022, 1:41 PM IST

बीकानेर. बीकानेर को छोटी काशी कहा जाता है. कहा यह भी जाता है कि बीकानेर में जितनी गलियां हैं उतने ही मंदिर हैं (Bikaner Kodamdesar Bhairav Temple). यहां के कई मंदिरों की स्थापना से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य हैं. इन्हीं में से एक मंदिर है कोडमदेसर भैरव मंदिर. जिससे जुड़ी कई मान्यताएं और किंवदंतियां हैं.

रोचक प्रसंग: भगवान भैरवनाथ को काशी का कोतवाल कहा जाता है. बीकानेर की कोडमदेसर भैरव मंदिर की स्थापना से जुड़े तथ्यों पर आधारित एक पुस्तक के अनुसार जोधपुर के मंडोर में भगवान भैरवनाथ का काशी के बाद दूसरा मंदिर स्थापित हुआ था. यहां उनके दो भक्तों सूरोजी और देदो जी माली हुआ करते थे और किसी प्रसंगवश उन्होंने मंडोर को छोड़ दिया.

बीकानेर में कोडमदेसर भैरव मंदिर में भी नहीं है छत

उन्होंने अपने इष्टदेव भगवान भैरवनाथ को भी साथ चलने के लिए कहा. जिस पर भगवान भैरवनाथ ने उन्हें साथ चलने की हामी भरते हुए कहा कि जहां भी तुम पीछे मुड़कर मुझे देखोगे मैं वहीं रुक जाऊंगा. बताया जाता है कि बीकानेर में वर्तमान कोडमदेसर के पास एकबारगी दोनों ने पीछे मुड़कर देखा कि बाबा भैरवनाथ साथ चल रहे हैं या नहीं. बस उनके पीछे मुड़कर देखने के बाद भगवान भैरवनाथ वहीं स्थापित हो गए और तब से उनकी पूजा-अर्चना वही शुरू हो गई. बताया जाता है कि यह मंदिर बीकानेर स्थापना से पूर्व का है.

ये भी पढ़ें-भैरवाष्टमी आज: रुद्र और विष्णु के हैं अवतार, जानें समस्याओं से मुक्ति के उपाय

कोडमदेसर नाम पड़ा: सूरज जी पुष्करणा ब्राह्मण समाज के सूरदासानी पुरोहित जाति के थे और इन्हीं के वंशज रोड़ा महाराज कहते हैं कि कोडमदेसर नाम क्षत्रिय राजकुमारी कोडमदे के नाम पर पड़ा. वो नियमित रूप से भैरवजी की पूजा अर्चना करती थीं. वर्तमान मंदिर में देदो जी माली के वंशज पूजा अर्चना करते हैं. बीकानेर राजपरिवार की भी मंदिर में गहरी आस्था है और रियासत काल से ही राज परिवार के सदस्य यहां पूजा अर्चना करने आते हैं.

खुले में विराजते हैं बाबा भैरवनाथ: मंदिर काफी ऊंचाई पर है. पूरा संगमरमर का बना हुआ है लेकिन मंदिर पर छत नहीं है. महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में भी भगवान मुक्ताकाश के नीचे विराजे हैं. यहां भी ऐसा ही है. मंदिर में वैसे तो हर रोज पूजा-अर्चना होती है लेकिन अपनी मन्नत पूरा होने पर अष्टमी चतुर्दशी और अमावस्या को भी लोग यहां पूजा अर्चना और विशेष श्रृंगार करने के लिए दूर-दूर से आते हैं.

बीकानेर. बीकानेर को छोटी काशी कहा जाता है. कहा यह भी जाता है कि बीकानेर में जितनी गलियां हैं उतने ही मंदिर हैं (Bikaner Kodamdesar Bhairav Temple). यहां के कई मंदिरों की स्थापना से जुड़े कई ऐतिहासिक तथ्य हैं. इन्हीं में से एक मंदिर है कोडमदेसर भैरव मंदिर. जिससे जुड़ी कई मान्यताएं और किंवदंतियां हैं.

रोचक प्रसंग: भगवान भैरवनाथ को काशी का कोतवाल कहा जाता है. बीकानेर की कोडमदेसर भैरव मंदिर की स्थापना से जुड़े तथ्यों पर आधारित एक पुस्तक के अनुसार जोधपुर के मंडोर में भगवान भैरवनाथ का काशी के बाद दूसरा मंदिर स्थापित हुआ था. यहां उनके दो भक्तों सूरोजी और देदो जी माली हुआ करते थे और किसी प्रसंगवश उन्होंने मंडोर को छोड़ दिया.

बीकानेर में कोडमदेसर भैरव मंदिर में भी नहीं है छत

उन्होंने अपने इष्टदेव भगवान भैरवनाथ को भी साथ चलने के लिए कहा. जिस पर भगवान भैरवनाथ ने उन्हें साथ चलने की हामी भरते हुए कहा कि जहां भी तुम पीछे मुड़कर मुझे देखोगे मैं वहीं रुक जाऊंगा. बताया जाता है कि बीकानेर में वर्तमान कोडमदेसर के पास एकबारगी दोनों ने पीछे मुड़कर देखा कि बाबा भैरवनाथ साथ चल रहे हैं या नहीं. बस उनके पीछे मुड़कर देखने के बाद भगवान भैरवनाथ वहीं स्थापित हो गए और तब से उनकी पूजा-अर्चना वही शुरू हो गई. बताया जाता है कि यह मंदिर बीकानेर स्थापना से पूर्व का है.

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कोडमदेसर नाम पड़ा: सूरज जी पुष्करणा ब्राह्मण समाज के सूरदासानी पुरोहित जाति के थे और इन्हीं के वंशज रोड़ा महाराज कहते हैं कि कोडमदेसर नाम क्षत्रिय राजकुमारी कोडमदे के नाम पर पड़ा. वो नियमित रूप से भैरवजी की पूजा अर्चना करती थीं. वर्तमान मंदिर में देदो जी माली के वंशज पूजा अर्चना करते हैं. बीकानेर राजपरिवार की भी मंदिर में गहरी आस्था है और रियासत काल से ही राज परिवार के सदस्य यहां पूजा अर्चना करने आते हैं.

खुले में विराजते हैं बाबा भैरवनाथ: मंदिर काफी ऊंचाई पर है. पूरा संगमरमर का बना हुआ है लेकिन मंदिर पर छत नहीं है. महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर में भी भगवान मुक्ताकाश के नीचे विराजे हैं. यहां भी ऐसा ही है. मंदिर में वैसे तो हर रोज पूजा-अर्चना होती है लेकिन अपनी मन्नत पूरा होने पर अष्टमी चतुर्दशी और अमावस्या को भी लोग यहां पूजा अर्चना और विशेष श्रृंगार करने के लिए दूर-दूर से आते हैं.

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