रायपुर: छत्तीसगढ़ की पहचान आदिवासी राज्य के रूप में हैं. ऐसा बोला जाता है कि बस्तर या कहें आदिवासी ही सत्ता की चाभी पार्टियों को सौंपते हैं. आदिवासी सीटें सबसे ज्यादा जो पार्टी जीतती है, वही राज्य में सरकार बनाती है. इस बार राज्य में माहौल कुछ अलग नजर आ रहा है. अगर आदिवासी समाज के लोग चुनाव में खड़े हुए, तो हो सकता है कि इस बार त्रिकोणीय मुकाबल देखने को मिले. 2018 में आदिवासियों ने सत्ता परिवर्तन जिस मकसद से किया था, क्या वो पूरा हुआ है, उससे राहत मिली या नहीं ? क्या कांग्रेस के प्रति आदिवासी लोगों में नाराजगी है. अगर है तो इसकी क्या वजह है?
छत्तीसगढ़ में आदिवासी सीटों का क्या है ट्रेंड ?: छत्तीसगढ़ की 90 विधानसभा सीटों में से 29 सीटें अनुसूचित जनजाति (ST) की हैं. ये सीटें बस्तर और सरगुजा में ज्यादा हैं. 2003 में इनकी संख्या 34 थी. परिसीमन के बाद सीटें कम हुईं और 29 रह गईं. 2003 से 2013 के चुनाव तक आदिवासियों ने बीजेपी का साथ दिया. 15 साल तक विधानसभा में आधे से ज्यादा एसटी सीटों पर बीजेपी जीतती थी. आदिवासियों की बदौलत बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में 15 साल राज किया. रमन सिंह सीएम बनें. 2018 के चुनाव में आदिवासियों का बीजेपी से मोहभंग हो गया. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस की तरफ देखा. कांग्रेस को जमकर सपोर्ट किया. 29 सीटों में से 25 सीटें कांग्रेस के खाते में आईं. बाद में दो सीटें और बढ़ गईं. उस समय कांग्रेस ने वो सारे वादे किए, जो बीजेपी 15 साल में पूरे नहीं कर पाई थी. हालांकि सरकार बदलने के बाद भी आदिवासियों को राहत नहीं मिली.
आदिवासियों की परेशानियां जस की तस: विश्व आदिवासी दिवस यानी 9 अगस्त को रायपुर में सम्मेलन हुआ. इसमें ईटीवी भारत से आदिवासी महिलाओं ने बातचीत की. इन महिलाओं ने कहा कि जिन नेताओं को चुनकर भेजा जाता है, वो पार्टी के हो जाते हैं. वो हमारे नेता नहीं हैं. अगर महिलाओं को चुनाव लड़ने का मौका मिलता है, तो वे चुनाव लड़ेंगी. उनका मानना था कि आदिवासी इलाकों में अभी भी जल, जंगल और जमीन पर, वहां के रहने वालों का हक नहीं है. जमीन से जो निकलता है. जंगल में जो पैदा हो रहा है, उस पर आदिवासियों का हक नहीं है.
छत्तीसगढ़ में सर्व आदिवासी समाज की तैयारी क्या है ?: सर्व आदिवासी समाज ने भी इस बार चुनाव लड़ने का ऐलान किया है. यह समाज उन विधानसभा सीटों से चुनाव लड़ेगा, जो आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं. साथ ही वहां भी प्रत्याशी खड़े किए जाएंगे जहां आदिवासी वोटर्स ज्यादा है. एक अनुमान के मुताबिक लगभग 50 से 55 सीटों पर सर्व आदिवासी समाज चुनाव लड़ने की तैयारी में है. सर्व आदिवासी समाज के प्रदेश अध्यक्ष अरविंद नेताम ने कहा, 'उद्देश्य तो पूरा हुआ नहीं, बल्कि उल्टा यह देखने को मिला है, जो आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए पेसा कानून लाया गया था, उसे सरकार ने खत्म कर दिया है. जल जंगल जमीन से अधिकार को खत्म कर दिया. इसकी वजह से समाज को यह चिंता सताने लगी है कि अब हमारा अस्तित्व बचा रहेगा या नहीं.'
पूर्वर्ती सरकार हो या वर्तमान सरकार दोनों ने ही हमें अनसुना किया है. हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया. हमारे अधिकारों को लेकर गंभीर नहीं रहीं. यही वजह है कि अब हम आगामी विधानसभा चुनाव लड़ने जा रहे हैं. -अरविंद नेताम, प्रदेश अध्यक्ष, सर्व आदिवासी समाज छत्तीसगढ़
आदिवासियों की नाराजगी के बड़े कारण: आदिवासी समाज की सरकार से नाराजगी की कुछ वजहें हैं. अरविंद नेताम ने कहा कि पहला-जल जंगल जमीन पर जो अधिकार समाज का था, उसे खत्म कर दिया गया. दूसरा जो आदिवासियों का संवैधानिक अधिकार है, उसका पालन नहीं किया जा रहा है. तीसरा आदिवासी इलाकों में हो रहे आंदोलन, जिस पर सरकार का ध्यान नहीं है. कानून के खिलाफ होकर खुद सरकार खनन कार्य करा रही. बस्तर के 20-25 गांव में साल भर से आंदोलन हो रहे हैं. सिलगेर में ढाई साल से आंदोलन हो रहा है. अबूझमाड़ जैसे इलाके में आंदोलन हो रहे हैं. यह आंदोलन आखिर क्यों हो रहे हैं, यह आदिवासी समाज और सरकार के लिए चिंता का विषय है.
चिंता के कारण कांग्रेस-बीजेपी ने लगाए आरोप: भाजपा प्रदेश प्रवक्ता देवलाल ठाकुर ने कहा,'कांग्रेस सरकार ने आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित किया है. भाजपा के 15 साल के कार्यकाल में आदिवासियों के उत्थान के लिए जो योजनाएं चलाई जा रही थीं, वो बंद कर दी गई हैं. वहीं इस पूरे मामले में सीएम भूपेश बघेल कहते हैं, 'बीजेपी आदिवासियों की हमेशा विरोधी रही है. उन्होंने आदिवासियों को नक्सली बताकर जेल में ठूंसा, उनके साथ मारपीट की, फर्जी एनकाउंटर किए, गोलियां चलाकर उनकी जमीनें छीनीं. अधिकार छीनने का काम बीजेपी ने 15 साल में किया है.'
छत्तीसगढ़ में आबादी और वोटर्स का समीकरण: प्रदेश में लगभग 32 फीसदी आबादी आदिवासी की है. करीब 13 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जाति और 47 प्रतिशत जनसंख्या अन्य पिछड़ा वर्ग के लोगों की है. अन्य पिछड़ा वर्ग में करीब 95 से अधिक जातियां शामिल हैं. जानकारों के अनुसार प्रदेश में आदिवासी लोगों की जनसंख्या लगभग 80 लाख है. इन 80 लाख में से करीब 70 लाख लोग बस्तर और सरगुजा में रहते हैं. बाकी 10 लाख लोग मैदानी क्षेत्रों में हैं. 80 लाख आदिवासी आबादी में 54 लाख मतदाता हैं. 2018 में इन 54 लाख में से लगभग 40 लाख वोटर्स ने अपना वोट दिया. कांग्रेस ने इनमें से करीब 24 लाख वोट हासिल किए. वहीं भाजपा को 14 लाख और जोगी कांग्रेस को 2 लाख तक आदिवासी वोट्स गए.