चंडीगढ़ : पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने फिर स्पष्ट किया है कि संरक्षण याचिकाओं में 'विवाह की वैधता' से जुड़े सवाल कपल के जीवन और स्वतंत्रता के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकते हैं.
जस्टिस जसगुरप्रीत सिंह पुरी की सिंगल बेंच ने कहा, 'वर्तमान याचिका का दायरा केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के संबंध में है, इसलिए विवाह की वैधता इस तरह के संरक्षण से इनकार करने का आधार नहीं हो सकती है.'
एक 21 साल की युवती और 22 साल के युवक ने याचिका दाखिल की थी, जिस पर हाई कोर्ट में सुनवाई चल रही थी. युगल का कहना था कि उन्होंने अपनी स्वतंत्र सहमति से एक-दूसरे से शादी की थी. उन्होंने बताया कि महिला मुस्लिम धर्म से संबंध रखती थी, लेकिन बाद में उसने हिंदू धर्म अपना लिया और उसके बाद उसने शादी कर ली.
याचिका में यह बताया कि उनके परिजनों ने शादी का विरोध किया था और ऐसे में उन्हें अब जान का खतरा है.
उन्होंने तर्क दिया कि भले ही उनकी शादी वैध नहीं है, परंतु भारत के संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के अधिकार की गारंटी सभी को दी गई है.
हाई कोर्ट ने मामले पर विचार कर पंजाब सरकार को आदेश दिया कि याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करें. साथ ही हाई कोर्ट ने कहा कि 'यह स्पष्ट किया जाता है कि वर्तमान निर्देश केवल याचिकाकर्ताओं के जीवन और स्वतंत्रता की सुरक्षा के उद्देश्य से जारी किया जा रहा है और इसका विवाह की वैधता पर कोई भी प्रभाव नहीं होगा.'
सरकार ने कोर्ट को बताया उठा रहे कारगर कदम
वहीं. इस मामले में पंजाब सरकार ने अदालत को सूचित किया कि एक ऐसी व्यवस्था बनाने का प्रस्ताव है जिसके तहत ऐसे जोड़ों की शिकायत के समाधान के लिए 24 घंटे के भीतर उपायुक्त को भेज दिया जाए. उपायुक्त समिति या संबंधित एसएसपी की मदद से 48 घंटों के भीतर खतरे की आशंका का आकलन कर लें और उसके तुरंत बाद आवश्यक कार्रवाई की जा सके.
सरकार ने यह भी उल्लेख किया कि एक राज्य स्तरीय शिकायत निवारण पोर्टल पहले से मौजूद है. उसी में सुरक्षा चाहने वाले जोड़ों की सहायता के लिए विशेष रूप से एक नया टैब बनाया जाएगा.
हाई कोर्ट ने दिया सुझाव
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट के समक्ष प्रतिदिन बड़ी संख्या में संरक्षण याचिकाएं दायर की जाती हैं. इस प्रकार एकल पीठ ने सुझाव दिया है कि इन मामलों की सुनवाई अधीनस्थ अदालतों में की जाए, ताकि हाई कोर्ट पर बोझ कम हो.
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हाल ही में, हाई कोर्ट की एक और एकल पीठ ने कार्यकारी अधिकारियों से ऐसे जोड़ों के जीवन को सुरक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी लेने का आह्वान किया था ताकि न्यायालयों पर बोझ कम हो.