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पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात पर जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बीजिंग में लगभग दो वर्षों के बाद मुलाकात (Putin Jinping meeting) पर दुनियाभर की निगाहें लगी रहीं. एक्सपर्ट से जानिए इस मुलाकात के क्या हैं मायने. ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा की रिपोर्ट.

Putin Jinping meeting
पुतिन-जिनपिंग की मुलाकात
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Published : Feb 4, 2022, 8:52 PM IST

नई दिल्ली : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगभग दो वर्षों के बाद बीजिंग में मिले. यह बैठक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत समेत कई देशों ने बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार किया है. अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड के कारण इन खेलों का राजनयिक बहिष्कार किया है.
रूस के राष्ट्रपति पुतिन (Russian President Putin) ने ऐसे समय में बीजिंग के साथ मास्को के अभूतपूर्व संबंधों की सराहना की, जब रूस को 'यूक्रेन में और उसके आसपास' अपने कार्यों के लिए पश्चिम की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

एक संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की विदेश नीति के लिए अपना अपार समर्थन व्यक्त किया, जहां रूस ने ताइवान पर अपनी एक-चीन नीति के लिए बीजिंग को अपना गहरा समर्थन व्यक्त किया और व्यापक सुरक्षा मुद्दों पर भी सहमति व्यक्त की. दोनों पक्षों ने संयुक्त रूप से सैन्य गठबंधन ऑकस (AUKUS) पर भी अपनी चिंता व्यक्त की जिसमें ऑस्ट्रेलिया, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं.

नई दिल्ली के दृष्टिकोण से AUKUS का उल्लेख और QUAD का नहीं होना AUKUS की तुलना में QUAD की प्रासंगिकता के बारे में कुछ प्रश्न उठा सकता है, जबकि भारत की विदेश नीति ने कभी किसी सैन्य गठबंधन का समर्थन या सहायता नहीं की है. क्वाड चार देशों का समूह है जिसमें भारत के साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है.
जेएनयू के प्रोफेसर ने कही ये बात
'ईटीवी भारत' से बात करते हुए जेएनयू में कूटनीति और निरस्त्रीकरण के प्रो. सिंह ने कहा कि 'यह क्वाड से औकस में अचानक बदलाव को प्रदर्शित करता है. शुरुआत में चीन और रूस दोनों क्वाड के खिलाफ थे, लेकिन AUKUS जो अमेरिका के नेतृत्व में मुख्य रूप से एशिया प्रशांत में एक सुरक्षा/सैन्य गठबंधन है, रूस और चीन दोनों इसके दुश्मन बन गए.'

प्रो. सिंह ने कहा कि अब AUKUS Plus की भी चर्चा है जिसमें दक्षिण कोरिया और जापान को AUKUS के दायरे में शामिल करने की संभावना है जो चीन और यहां तक ​​कि रूस और अमेरिका के साथ उनके संबंधों के लिए और अधिक समस्याएं पैदा कर सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या इस बात की संभावना हो सकती है कि यूक्रेन पर यूएनएससी में नई दिल्ली की अनुपस्थिति ने रूस को इस संयुक्त बयान में क्वाड या भारत के बारे में एक शब्द नहीं उठाने के लिए प्रेरित किया है. प्रो सिंह ने जवाब दिया कि हां, ये एक संभावना है, ऐसा हो सकता है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने दोनों पक्षों के संयुक्त बयान को प्रकाशित किया जिसमें कहा गया था कि 'अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कुछ ताकतें एकतरफावाद को बढ़ावा देने, सत्ता की राजनीति को अपनाने, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं. ये अन्य देशों के वैध अधिकारों और हितों को कमजोर करते हैं. टकराव पैदा करते हैं और मानव जाति के विकास और प्रगति में बाधा डालते हैं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे स्वीकार नहीं करेगा.'

पढ़ें- चीन की आक्रामकता के खिलाफ अमेरिका ने भारत के प्रति व्यक्त की एकजुटता

यूक्रेन पर अपने कार्यों के लिए और 'शीत-युद्ध मानसिकता को पुनर्जीवित करने के लिए अमेरिका की आलोचना करते हुए, बयान में कहा गया है कि चीन और रूस दोनों नाटो के किसी भी प्रकार के विस्तार का विरोध करते हैं. यूक्रेनी और बेलारूस सीमा के आसपास 100,000 से अधिक रूसी सैनिकों की तैनाती के बाद से अमेरिका लगातार यूरोपीय संघ, नाटो और रूस के पक्षों को शामिल करते हुए शीर्ष राजनयिक स्तर की बैठकें कर रहा है.

यूक्रेन पर विवाद ने अमेरिका-चीन के बीच आग में ईंधन का काम किया है. अब चीन यूक्रेन पर नाटो शक्तियों के साथ अपने विवाद में रूस का समर्थन करने में अधिक मुखर हो गया है.

नई दिल्ली : चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लगभग दो वर्षों के बाद बीजिंग में मिले. यह बैठक महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत समेत कई देशों ने बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों का कूटनीतिक रूप से बहिष्कार किया है. अमेरिका और ब्रिटेन ने चीन के खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड के कारण इन खेलों का राजनयिक बहिष्कार किया है.
रूस के राष्ट्रपति पुतिन (Russian President Putin) ने ऐसे समय में बीजिंग के साथ मास्को के अभूतपूर्व संबंधों की सराहना की, जब रूस को 'यूक्रेन में और उसके आसपास' अपने कार्यों के लिए पश्चिम की आलोचना का सामना करना पड़ रहा है.

एक संयुक्त बयान में दोनों नेताओं ने एक-दूसरे की विदेश नीति के लिए अपना अपार समर्थन व्यक्त किया, जहां रूस ने ताइवान पर अपनी एक-चीन नीति के लिए बीजिंग को अपना गहरा समर्थन व्यक्त किया और व्यापक सुरक्षा मुद्दों पर भी सहमति व्यक्त की. दोनों पक्षों ने संयुक्त रूप से सैन्य गठबंधन ऑकस (AUKUS) पर भी अपनी चिंता व्यक्त की जिसमें ऑस्ट्रेलिया, यूके और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं.

नई दिल्ली के दृष्टिकोण से AUKUS का उल्लेख और QUAD का नहीं होना AUKUS की तुलना में QUAD की प्रासंगिकता के बारे में कुछ प्रश्न उठा सकता है, जबकि भारत की विदेश नीति ने कभी किसी सैन्य गठबंधन का समर्थन या सहायता नहीं की है. क्वाड चार देशों का समूह है जिसमें भारत के साथ अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान है.
जेएनयू के प्रोफेसर ने कही ये बात
'ईटीवी भारत' से बात करते हुए जेएनयू में कूटनीति और निरस्त्रीकरण के प्रो. सिंह ने कहा कि 'यह क्वाड से औकस में अचानक बदलाव को प्रदर्शित करता है. शुरुआत में चीन और रूस दोनों क्वाड के खिलाफ थे, लेकिन AUKUS जो अमेरिका के नेतृत्व में मुख्य रूप से एशिया प्रशांत में एक सुरक्षा/सैन्य गठबंधन है, रूस और चीन दोनों इसके दुश्मन बन गए.'

प्रो. सिंह ने कहा कि अब AUKUS Plus की भी चर्चा है जिसमें दक्षिण कोरिया और जापान को AUKUS के दायरे में शामिल करने की संभावना है जो चीन और यहां तक ​​कि रूस और अमेरिका के साथ उनके संबंधों के लिए और अधिक समस्याएं पैदा कर सकता है. यह पूछे जाने पर कि क्या इस बात की संभावना हो सकती है कि यूक्रेन पर यूएनएससी में नई दिल्ली की अनुपस्थिति ने रूस को इस संयुक्त बयान में क्वाड या भारत के बारे में एक शब्द नहीं उठाने के लिए प्रेरित किया है. प्रो सिंह ने जवाब दिया कि हां, ये एक संभावना है, ऐसा हो सकता है.

चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के मुखपत्र 'ग्लोबल टाइम्स' ने दोनों पक्षों के संयुक्त बयान को प्रकाशित किया जिसमें कहा गया था कि 'अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कुछ ताकतें एकतरफावाद को बढ़ावा देने, सत्ता की राजनीति को अपनाने, आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रही हैं. ये अन्य देशों के वैध अधिकारों और हितों को कमजोर करते हैं. टकराव पैदा करते हैं और मानव जाति के विकास और प्रगति में बाधा डालते हैं, अंतरराष्ट्रीय समुदाय इसे स्वीकार नहीं करेगा.'

पढ़ें- चीन की आक्रामकता के खिलाफ अमेरिका ने भारत के प्रति व्यक्त की एकजुटता

यूक्रेन पर अपने कार्यों के लिए और 'शीत-युद्ध मानसिकता को पुनर्जीवित करने के लिए अमेरिका की आलोचना करते हुए, बयान में कहा गया है कि चीन और रूस दोनों नाटो के किसी भी प्रकार के विस्तार का विरोध करते हैं. यूक्रेनी और बेलारूस सीमा के आसपास 100,000 से अधिक रूसी सैनिकों की तैनाती के बाद से अमेरिका लगातार यूरोपीय संघ, नाटो और रूस के पक्षों को शामिल करते हुए शीर्ष राजनयिक स्तर की बैठकें कर रहा है.

यूक्रेन पर विवाद ने अमेरिका-चीन के बीच आग में ईंधन का काम किया है. अब चीन यूक्रेन पर नाटो शक्तियों के साथ अपने विवाद में रूस का समर्थन करने में अधिक मुखर हो गया है.

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