लुधियाना : पंजाब के सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों ने हाल के दिनों में कई इस्तीफे दिए हैं जो बिलकुल भी अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती. वहीं पीसीएमएस और आईएमए ने एक बयान जारी कर कहा कि अभी और भी डॉक्टर इस्तीफा देने को तैयार हैं. कहा जा रहा है कि डॉक्टर पंजाब सरकार के साथ काम नहीं करना चाहते हैं. साथ ही आरोप है कि पंजाब की नवगठित आम आदमी पार्टी की सरकार का व्यवहार बिल्कुल भी अच्छा नहीं है.
दरअसल बाबा फरीद विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. राज बहादुर के साथ बदसलूकी के बाद से चिकित्सकों में खासा खासा रोष है. इस घटना के बाद सरकारी अस्पतालों में तैनात डॉक्टर स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति की मांग कर रहे हैं. पूर्व सीएम चरणजीत सिंह चन्नी की भाभी और खरड़ अस्पताल के एसएमओ डॉ. मनिंदर कौर ने भी वीआरएस की मांग की है. बताया जाता है कि स्वास्थ्य मंत्री ने उन्हें भी फटकार लगाई थी और उनका तबादला बरनाला के धनुला में कर दिया गया था.
पीसीएमएस एसोसिएशन और आईएमए (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) के प्रमुखों ने दावा किया है कि अभी और डॉक्टर इस्तीफा देंगे, क्योंकि पंजाब में जो हालात बन रहे हैं, वे किसी से छिपे नहीं हैं. पीसीएमएस मुखिया डॉ. अखिल सरीन का कहना है कि पंजाब के अस्पतालों में 4 हजार डॉक्टरों की जरूरत है. ऐसे में डॉक्टरों को धमकाया जा रहा है. वे इन हालात में काम करने को तैयार नहीं हैं. उन्होंने कहा कि लोगों को सरकार से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन बुनियादी ढांचे और बजट की भारी कमी है. उन्होंने कहा कि अस्पताल में दवा नहीं पहुंच रही है. इसके अलावा विशेषज्ञ डॉक्टरों और सहयोगी स्टाफ की भारी कमी है. उन्होंने कहा कि एक डॉक्टर 4 डॉक्टरों का काम कर रहा है.
डॉ. अखिल ने कहा कि ऐसे हालात में काम करना बेहद मुश्किल है. उन्होंने कहा कि सरकार को स्वास्थ्य बजट बढ़ाना चाहिए. वहीं, आईएमए मुखिया डॉ. बिमल कनिश ने कहा कि यहां स्थिति बल्कि पहले से ही खराब थी. लेकिन अब नई सरकार बनने के बाद जिस तरह से डॉक्टरों के साथ व्यवहार किया जा रहा है स्वाभाविक है कि डॉक्टर नौकरी छोड़ देंगे. उन्होंने कहा कि पिछले 4 महीनों में करीब 40 डॉक्टरों ने इस्तीफा दे दिया है और अन्य डॉक्टर भी इस्तीफे की तैयारी में हैं.
पंजाब में डॉक्टरों की भारी कमी : पंजाब में पहले से ही डॉक्टरों की भारी कमी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन की गाइडलाइंस के मुताबिक किसी भी राज्य या देश के लिए हर 1000 व्यक्ति पर 1 डॉक्टर का होना बहुत जरूरी है. डॉ. सरीन के मुताबिक पंजाब में आखिरी सर्वे 1991 में किया गया था, 30 साल हो गए हैं, सर्वे की अभी तक समीक्षा नहीं हुई है. सरकार अपनी अक्षमताओं को छिपाने के लिए आंकड़े नहीं बनाती. पंजाब के लगभग सभी सरकारी अस्पतालों में स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की भी भारी कमी है. डॉक्टरों के रिक्त पद लंबे समय से नहीं भरे गए हैं. यहां तक कि डॉ. सरीन ने कहा कि पैरामेडिकल स्टाफ की भी भारी कमी है. उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार द्वारा डॉक्टरों का वॉक-इन इंटरव्यू कब कराया गया, इसकी कोई जानकारी नहीं है.
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सरकार का जवाब: इस संबंध में जब आम आदमी पार्टी की विधायक सरबजीत कौर मनुके से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मेरी जानकारी के अनुसार जिन डॉक्टरों ने इस्तीफा दिया है, उन्होंने अपनी घरेलू समस्याओं के कारण ऐसा किया था. उन्होंने यह भी कहा कि सरकारी अस्पतालों के डॉक्टरों का मोहल्ला क्लीनिक से कोई लेना-देना नहीं है. उनके लिए सरकार द्वारा अलग से नियुक्तियां की जानी हैं. उन्होंने कहा कि हम दवाओं की कमी नहीं होने देंगे.