नई दिल्ली : कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कोरोना महामारी से होने वाली मौतों के आंकड़ों को लेकर एक बार फिर मोदी सरकार पर सवाल उठाए हैं. प्रियंका गांधी ने इस संबंध में लंबा-चौड़ा पोस्ट लिखा है और सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.
पोस्ट में प्रियंका गांधी लिखती हैं, कोरोना महामारी में लोगों ने सरकार से आंकड़ों की पारदर्शिता की आवश्यकता स्पष्ट की थी. ऐसा इसलिए जरूरी है कि आंकड़ों से ही पता लगता है- बीमारी का फैलाव क्या है, संक्रमण ज्यादा कहां है, किन जगहों को सील करना चाहिए या फिर कहां टेस्टिंग बढ़ानी चाहिए. लेकिन इस पर अमल नहीं हुआ.'
उन्होंने कहा, विशेषज्ञों का मानना है कि कोरोना महामारी की पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था. जागरुकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बना डाला.
कांग्रेस महासचिव ने पोस्ट में लिखा-
- सरकार ने शुरू से ही कोरोना वायरस से हुई मौतों एवं कोरोना संक्रमण की संख्या को आबादी के अनुपात में दिखाया, मगर टेस्टिंग के आंकड़ों की टोटल संख्या बताई.
- आज भी वैक्सीनेशन के आंकड़ों की टोटल संख्या दी जा रही है, आबादी का अनुपात नहीं. और उसमें पहली व दूसरी डोज को एक में ही जोड़कर बताया जा रहा है. ये आंकड़ों की बाजीगरी है.
- कोरोना वायरस से जुड़े तमाम आंकड़ों को केवल सरकारी चैम्बरों में कैद रखा गया एवं वैज्ञानिकों द्वारा पत्र लिखकर इन आकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग के बावजूद भी ये नहीं किया गया.
टेस्टिंग के आंकड़ों में भारी हेरफेर
प्रियंका गांधी ने आरोप लगाया कि उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों ने टेस्टिंग के आंकड़ों में भारी हेरफेर की. सरकार ने कुल टेस्ट की संख्या में RT-PCR एवं एंटीजन टेस्ट के आंकड़ों को अलग-अलग करके नहीं बताया. इसके चलते टोटल संख्या में तो टेस्ट ज्यादा दिखे लेकिन वायरस का पता लगाने की एंटीजन टेस्ट की सीमित क्षमता के चलते वायरस से संक्रमित लोगों की संख्या का सही अंदाजा नहीं लग सका.
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कांग्रेस नेता ने सवाल किया कि क्या सरकार आंकड़ों को बाजीगरी का माध्यम बनाना चाहती है या कोरोना को शिकस्त देने का एक अहम हथियार?
प्रियंका ने कहा, सरकार से सवाल पूछा जाना जरूरी है कि आखिर क्यों वैज्ञानिकों द्वारा बार-बार मांगने के बावजूद कोरोना वायरस के बर्ताव एवं बारीक अध्ययन से जुड़े आंकड़ों को सार्वजनिक नहीं किया गया? जबकि इन आंकड़ों को सार्वजनिक करने से वायरस की गति और फैलाव की जानकारी ठीक तरह से होती और हज़ारों जानें बच सकती थीं?