शिमला: आजादी के अमृतकाल में हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला किन्नौर में महिलाओं को उनका हक दिलाने की गुहार अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष लगाई जाएगी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू राष्ट्रपति बनने के बाद पहली दफा शिमला आ रही हैं. वे यहां देश के राष्ट्रपति के ग्रीष्मकालीन निवास स्थान रिट्रीट में ठहरेंगी. इस दौरान किन्नौर की महिलाओं का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिलने के लिए प्रयास करेगा. जनजातीय जिला किन्नौर में महिलाओं को पैतृक संपत्ति में हक नहीं मिलता. वहां अभी भी राजस्व कानून के तहत वाजिब उल अर्ज की व्यवस्था लागू है. इस व्यवस्था को हटाने के लिए रतन मंजरी के संघर्ष की गाथा सभी को मालूम है. रतन मंजरी ने महिला कल्याण परिषद के बैनर तले इस कानून के खिलाफ लंबी लड़ाई लड़ी है.
अब महिला कल्याण परिषद की प्रमुख रतन मंजरी ने ईटीवी से बातचीत में बताया कि प्रतिनिधिमंडल में किन्नौर व लाहौल-स्पीति की पांच महिलाओं ने राष्ट्रपति से मिलने के लिए समय मांगा है. पहले रतन मंजरी ने 18 महिलाओं के प्रतिनिधिमंडल की अनुमति मांगी थी. तब राष्ट्रपति सचिवालय से कहा गया कि संख्या अधिक है. फिर 13 महिलाओं के लिए अनुमति मांगी तो कहा गया कि पांच महिलाओं का प्रतिनिधिमंडल दिया जाए. अब पांच महिलाओं के नाम भेजे गए हैं. रतन मंजरी ने कहा कि राष्ट्रपति से मिलने के बाद वे सीएम सुखविंदर सिंह सुक्खू व जनजातीय जिला किन्नौर से आने वाले कैबिनेट मंत्री जगत सिंह नेगी को भी ज्ञापन सौंपेंगी.
वहीं, महिला कल्याण परिषद की सदस्य और उरनी पंचायत की पूर्व प्रधान गीता ज्ञानी का कहना है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के समक्ष अपने हक के लिए गुहार लगाई जाएगी. महिला कल्याण परिषद की तरफ से इस सिलसिले में राष्ट्रपति से मिलकर गुहार लगाई जाएगी कि उन्हें हक दिलवाया जाए.
रतन मंजरी ने महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए लंबा संघर्ष किया है. एक प्रतिष्ठित परिवार से संबंध रखने वाली रतन मंजरी ने इस आंदोलन की खातिर विवाह तक नहीं किया. वर्ष 1952 में किन्नौर में कर्नल पीएन नेगी के घर जन्म लेने वाली रतन मंजरी ने महिला कल्याण परिषद का गठन किया. इस परिषद ने निरंतर संघर्ष किया. वहीं, चंबा के पांगी जनजातीय इलाके से संबंधित एक मामले में हाईकोर्ट से उनके हक में फैसला भी आया था. परिषद ने किन्नौर जिला में जागरुकता अभियान भी चलाया और अपने हक की पैरवी की. वहीं, नाम न छापने की शर्त पर जनजातीय जिला किन्नौर के कुछ लोगों का कहना है कि ये कस्टमरी लॉ सोच-समझ कर बनाए गए हैं. इनमें छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए.
दरअसल, वर्ष 1926 के राजस्व कानून के तहत वाजिब उल अर्ज यह कहता है कि पैतृक संपत्ति में बेटियों को हक नहीं है. यदि कोई बेटी विवाह नहीं करती है तो पैतृक संपत्ति में उसका कोई हक नहीं रहता है. परिवार के मुखिया की मौत के बाद वो संपत्ति भाइयों के हिस्से आती है. यदि परिवार में बेटी हो और बेटा न हो तो मुखिया की मौत के बाद वो संपत्ति ताऊ-चाचा के बेटों के हिस्से में चली जाएगी. वाजिब उल अर्ज कानून को लेकर रतन मंजरी ने युवावस्था से ही संघर्ष करना शुरू कर दिया था. यदि परिवार में एक से अधिक बेटियां हों और बेटा न हो तो भी संपत्ति चाचा, ताऊ के बेटों को चली जाएगी. यानी कुल मिलाकर बात ये है कि बेटी चाहे विवाहित हो या अविवाहित, उसका पैतृक संपत्ति में कोई हक नहीं है. ये व्यवस्था वाजिब उल अर्ज कानून के तहत किन्नौर के अलावा लाहौल-स्पीति में अभी भी चली आ रही है.
हाईकोर्ट दे चुका है हक में फैसला- हालांकि वर्ष 2015 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट इस मामले में महिलाओं को हक में फैसला दिया था. हाईकोर्ट के न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजीव शर्मा ने तब अपने फैसले में कहा था कि कबायली जिला की बेटियों को पैतृक संपत्ति में हक मिलना चाहिए. उसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और वहां इस फैसले पर स्टे लग गया. सुप्रीम कोर्ट पहुंची महिला कल्याण परिषद को तब सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि आप पहले हाईकोर्ट जाएं. अब हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई चल रही है. अभी छह हफ्ते बाद सुनवाई का समय है.
ये भी पढ़ें: हिमाचल प्रदेश: यहां केक काटने, सेहरा बांधने, मेहंदी लगाने और जूते छिपाने की रस्म पर लगी पाबंदी, जानिए वजह