लखनऊ : शिशु के दिल की धड़कन और उसकी गतिविधियों (hypoxia) को छोटे से उपकरण की मदद से जाना जा सकता है. अब अल्ट्रासाउंड से लोगों को निजात मिलेगी और घर बैठे ही लोग अपने शिशु के दिल की धड़कन चल रही है या नहीं जान सकेंगे. इसके लिए चल रहे शोध में डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम प्राविधिक विश्वविद्यालय (APJ Abdul Kalam Technical University-AKTU) को बड़ी सफलता मिली है. AKTU के सेंटर ऑफ एडवांस स्टडीज (सीएएस) ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ) और मशीन लर्निंग (एमएल) एल्गारिम की मदद से एक उपकरण तैयार किया है.
गर्भ में पल रहे बच्चे की सुन सकते हैं धड़कन
सेंटर फॉर एडवांस्ड स्टडीज (एकेटीयू) के निदेशक प्रोफेसर एमके दत्ता बताते हैं कि इसके जरिये गर्भ में पल रहे बच्चे की धड़कन आसानी से सुनी जा सकती है. वर्तमान में जब भी कोई महिला प्रेग्नेंट होती है तो डॉक्टर हर महीने उन्हें अल्ट्रासाउंड के लिए बुलाते हैं, ताकि बच्चे का मूवमेंट पता चलता रहे. लेकिन अब हर महीने अस्पताल जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. इस उपकरण का ट्रायल कोरोना की लहर के दौरान 5 सौ गर्भवती महिलाओं का चेकअप किया गया. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और मशीन लर्निंग ने हमारी राह आसान की है. ट्रायल के बाद ये उम्मीद की जा रही है कि इसकी कीमत काफी कम होगी. ये भारत जैसे देश के लिए उपयोगी तकनीक और उपकरण हो सकता है. प्रोफेसर दत्ता बताते हैं कि इस उपकरण के दुरुपयोग की संभावना नहीं होगी. क्यों कि इससे भ्रूण के लिंग का पता नहीं लगाया जा सकता है. डाटा कलेक्शन की प्रक्रिया दस सेकेंड की होगी. इस उपकरण की कीमत काफी कम होगी, क्लीनिकल ट्रायल के बाद इससे ग्रामीण क्षेत्र के सीएचसी-पीएचसी तक पहुंचाया जाएगा.
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डॉक्टरों के मुताबिक होगा काफी मददगार
क्वीन मैरी अस्पताल की सीनियर सुपरिटेंडेंट डॉक्टर एसपी जायसवार बताती हैं कि इंट्रा यूट्राइन डेथ (आइयूडी) यानि गर्भ में ही बच्चे के मामले अक्सर आते हैं. ऐसे मामलों में प्रसूता को इस बात का भ्रम रहता है कि बच्चे का मूवमेंट हो रहा है. ऐसी स्थिति से निपटने के लिए ये उपकरण काफी कारगर साबित हो सकता है. प्रसूताओं के लिए ये काफी उपयोगी कहा जा सकता है. झलकारी बाई अस्पताल की एमएस डॉक्टर दीपा शर्मा बताती हैं कि अभी तक ऐसा कोई उपकरण नहीं बना है, जिससे घर बैठे गर्भ में पल रहे शिशु के दिल की धड़कन को जाना जा सके. अगर एकेटीयू के प्रोफेसरों ने ऐसा कोई उपकरण बनाया है तो ये काफी मददगार साबित होगा खासकर ग्रामीण इलाकों के सीएचसी और पीएचसी में.
ग्रामीण इलाकों में जहां डॉक्टरों और चिकित्सा सुविधाओं की कमी है, सीएचसी-पीएचसी में आया महिलाओं की डिलवरी करवाती हैं. वहां गर्भस्थ की जान का जोखिम बना रहता है. प्रसूता को जांचों और चिकित्सीय प्रक्रिया का सामना करना पड़ता है. नए उपकरण के बाजार में आने से इन क्षेत्रों में गर्भस्थ के स्वास्थ्य की जांच आसान हो जाएगी. सीएएस के विज्ञानियों द्वारा फीटल हार्ट रेट (एफएचआर) के उपयोग पर आधारित उपकरण में डाप्लर और सेंसर की मदद से गर्भस्थ शिशु से सिग्नल के रूप में डाटा कलेक्शन किया जाता है. जिसके बाद उपकरण एआई और एमएल तकनीक से गर्भस्थ शिशु के दिल की धड़कन एकदम सही जानकारी देता है.