नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) के न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने संपत्ति विवाद में तीन व्यक्तियों के खिलाफ जालसाजी और धोखाधड़ी के एक मामले को खारिज करते हुए कहा कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति (Power to quash criminal proceedings) का बहुत कम इस्तेमाल किया जाना चाहिए.
अदालत ने आगाह किया है कि आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग बहुत ही संयम से और सावधानी के साथ किया जाना चाहिए. वह भी दुर्लभ से दुर्लभतम मामलों में ही प्रयोग हो तो बेहतर है. कोर्ट ने कुछ विशेष श्रेणी के मामलों को निर्दिष्ट किया है, जिसमें कार्यवाही को रद्द करने के लिए ऐसी शक्ति का प्रयोग किया जा सकता है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि जिन श्रेणियों में इस शक्ति का उपयोग किया जा सकता है, उनमें से एक यह है कि कोई भी आपराधिक कार्यवाही प्रकट रूप से दुर्भावनापूर्ण हो, आरोपी से प्रतिशोध लेने के लिए हो, निजी, व्यक्तिगत द्वेष के कारण उसे उकसाने की दृष्टि से स्थापित की गई हो. शीर्ष अदालत ने कहा कि मौजूदा मामले में आरोपितों को परेशान करने के मकसद से प्राथमिकी दर्ज की गई है.
शीर्ष अदालत ने कहा कि मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आदेश पारित करते हुए उच्चतम न्यायालय द्वारा निर्धारित कानून पर विचार करने में पूरी तरह विफल रहे हैं. दंड प्रक्रिया संहिता 1973 (सीआरपीसी) की धारा 156 (3) के तहत शक्ति का प्रयोग मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस को केवल संज्ञेय अपराध के संबंध में जांच करने का निर्देश देने के लिए किया जा सकता है.
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किसी भी मामले में जब शिकायत एक हलफनामे द्वारा समर्थित नहीं थी, मजिस्ट्रेट को सीआरपीसी की धारा 156 (3) के तहत आवेदन पर विचार नहीं करना चाहिए था. पीठ ने कहा कि इसलिए हमारा विचार है कि वर्तमान की निरंतरता कार्यवाही कुछ और नहीं बल्कि कानून की प्रक्रिया के दुरुपयोग के बराबर होगी.