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Major Challenges for India : जी-20 के बाद भारत के सामने आईं तीन नई चुनौतियां, चीन दे रहा 'शह'

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Oct 5, 2023, 4:40 PM IST

जी-20 की बैठक खत्म होने के बाद से वैश्विक स्तर पर कुछ ऐसी घटनाएं हुईं हैं, जिसका सीधा असर भारत पर पड़ना तय है. जैसे कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो का भारत विरोधी रूख अपनाना, मालदीव में चीन समर्थक सरकार का बनना और भारत समर्थक आर्मेनिया को झटका लगना. आने वाले समय में भारत को काफी सावधान रहना होगा, ताकि इससे हुए नुकसान की भरपाई कर सके. पेश है वरिष्ठ पत्रकार अरुणिम भुइंया की एक रिपोर्ट.

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नई दिल्ली : जी-20 के सफल आयोजन के बाद भारत के सामने कनाडा और मालदीव के रूप में दो नई चुनौतियां सामने आईं हैं. पहले मामले में कनाडा ने सीधे तौर पर भारत को जिम्मेदार ठहराया है, जबकि दूसरे मामले में मालदीव के नए राष्ट्रपति ने भारतीय सेना को अपने देश से बाहर निकालने की बात दोहराई है. अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच चल रहे संघर्ष में दिल्ली ने आर्मेनिया को नौतिक समर्थन दिया था. इसके बावजूद वहां का विवादास्पद क्षेत्र नागोर्नो और काराबाख आर्मेनिया के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल गया.

आइए पहले कनाडा की बात करते हैं. 18 सितंबर को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने संसद में खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ा. लेकिन कोई सबूत पेश नहीं किया. जी-20 सम्मेलन के दौरान जब पीएम मोदी और ट्रूडो की मुलाकात हुई थी, तभी इसके संकेत मिल चुके थे, कि दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. भारत ने साफ तौर पर कनाडा को कह दिया था कि वह खालिस्तानी उग्रवादी का साथ दे रहा है.

इसके तुरंत बाद कनाडा के विदेश मंत्री मेलानी ने भारतीय राजनयिक को वहां से निकालने का ऐलान कर दिया. भारत ने इसका माकूल जवाब दिया. भारत ने कनाडा के टॉप डिप्लोमेट को पांच दिनों के अंदर देश छोड़ने का आदेश जारी कर दिया. भारत ने कनाडा के आरोपों को निराधार और तथ्यहीन बताया.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, 'कनाडा खालिस्तानी आतंकियों को पनाह दे रहा है, जिसकी वजह से भारत की संप्रभुता और भौगोलिक अखंडता पर खतरा उत्पन्न हो गया. कनाडा इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए निर्मूल आरोप भारत पर मढ़ रहा है. भारत ने इस बाबत कनाडा को पूरी जानकारी दी, इसके बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उनके नेताओं ने खुलकर ऐसे तत्वों का बचाव किया.'

सिख फॉर जस्टिस और खालिस्तान टाइगर फोर्स के मुखिया हरदीप सिंह निज्जर की हत्या 19 जून को कनाडा के वैंकूवर में की गई थी. वह मूल रूप से पंजाब के जालंधर का रहने वाला था. वह बतौर प्लंबर कनाडा के सर्रे में रहने का दावा करता था. लेकिन 2013-14 के बीच वह पाकिस्तान गया. उसने वहां पर केटीएफ के प्रमुख जगतार सिंह तारा से मुलाकात की थी. तारा की गिरफ्तारी 2015 में थाईलैंड में की गई थी. निज्जर ने आईएसआई कर्मियों से भी मुलाकात की थी. एनआईए ने निज्जर को यूएपीए के तहत आतंकी घोषित कर रखा था. उसके सिर पर 10 लाख का इनाम भी रखा गया था.

क्योंकि ट्रूडो ने तथ्यहीन आरोप लगाए थे, लिहाजा भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा जारी करने पर रोक लगा दी. साथ ही भारत ने कनाडा के 41 राजनयिकों को 10 अक्टूबर तक देश छोड़ने का भी आदेश दे रखा है. भारत ने कहा कि राजनयिकों की संख्या दोनों देशों में समान रहनी चाहिए. इस समय वह कनाडा के पक्ष में है. भारत के इस सख्त कदम के बाद कनाडा ने द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत का प्रस्ताव रखा है.

कनाडा के विदेश मंत्री ने कहा, 'हम भारत सरकार के साथ लगातार संपर्क में हैं. हम कनाडा के राजनयिकों की सुरक्षा को सबसे अहम स्थान देते हैं. हालांकि, राजनयिक स्तर पर बातचीत को हम हमेशा से प्राथमिकता देना चाहेंगे.'

सितंबर की शुरुआत में कनाडा ने भारत के साथ अर्ली प्रोग्रेस ट्रेन एग्रीमेंट को निलंबित कर दिया था. यह कॉंप्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट की दिशा में उठाया जाने वाला पहला कदम था.

क्योंकि कनाडा लगातार भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा दे रहा है, लिहाजा भारत ने ट्रेड को लेकर कोई भी बातचीत आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया. कनाडा से आयात होने वाले सामानों का भारत के पास विकल्प मौजूद है. वैसे, अगर दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होते, तो 2035 तक कनाडा की जीडीपी को 3.8 बि. डॉलर से लेकर 5.9 बि.डॉलर तक का फायदा हो सकता था.

अब आइए दूसरा मामला देखते हैं. यह अजरबैजान और आर्मेनिया विवाद से जुड़ा है. नई दिल्ली आर्मेनिया के साथ खड़ा है. लेकिन इन दोनों देशों के बीच चल रहे संघर्ष में आर्मेनिया को नुकसान पहुंचा है. उसका नागोर्नो काराबाख एरिया पर नियंत्रण समाप्त हो गया. यह एरिया अजरबैजान के दक्षिण में पड़ता है. दोनों देशों के बीच पिछले 30 सालों से संघर्ष चला आ रहा है. वहां जातीय संघर्ष जारी है. क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं.

19 सितंबर को अजरबैजान ने सैन्य दस्तों के साथ हमला कर दिया. अगले ही दिन नागोर्नो-काराबाख (रिपब्लिक ऑफ आर्टसख) के अध्यक्ष सैमवेल शाहरामनयन ने राज्य के सभी संस्थान को भंग करने की घोषणा कर दी. इसकी वजह से इस गणतंत्र का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. आर्मेनिया के लिए यह बड़ा झटका था.

आधिकारिक तौर पर भारत के दोनों देशों से संबंध हैं. लेकिन व्यावहारिक तौर पर भारत ने आर्मेनिया का साथ दिया. उसे मिलिट्री हार्डवेयर की मदद की. आर्मेनिया को स्वाती वेपन लोकेटिंग रडार सप्लाई किया. पिनाका लॉंचर, एंटी टैंक रॉकेट्स और बारूद की भी आपूर्ति की गई.

आर्मेनिया को सपोर्ट करने के पीछे भारत का मकसद तुर्किए के उस साम्राज्यवादी रूख पर ब्रेक लगाना है, जिसकी आड़ में वह कॉकस और यूरेशिया में अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश कर रहा है. इन क्षेत्रों में तुर्की भाषा बोली जाती है. दूसरी बात यह है कि अजरबैजान पाकिस्तान और तुर्किए दोनों का साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है. अजरबैजान ने मध्य एशिया में पाकिस्तान को एंट्री का मौका दिया. बदले में पाकिस्तान अजरबैजान को हथियार की सप्लाई करता है.

कश्मीर पर तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान का रूख एक जैसा है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध किया था. अजरबैजान भी इसी रूख का समर्थन करता रहा है.

इसके साथ ही इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर की वजह से भी भारत आर्मेनिया के साथ खड़ा है. भारत इस कॉरिडोर का एक अहम हिस्सेदार है. यह 7200 किलोमीटर का मल्टी मॉडल नेटवर्क है, जिसमें जहाज, रेल और रोड तीनों माध्यमों का उपयोग कर व्यापार को बढ़ावा देना उद्देश्य रहा है. भारत से ईरान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप तक माल की आपूर्ति की जा सकती है. अब क्योंकि अजरबैजान इस मार्ग का समर्थन नहीं कर रहा है, लिहाजा भारत ने आर्मेनिया का साथ देने का फैसला किया. आर्मेनिया इस रूट में सहयोग करने को तैयार है.

भारत के लिए तीसरा झटका मालदीव का सत्ता परिवर्तन है. मालदीव में मो. मुइज की जीत हुई है. वह चीन समर्थक हैं. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक इब्राहिम मो. सोलिह को हराया है. मुइज चीन की कठपुतली समझे जाते हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले मुइज मालदीव की राजधानी माली के मेयर थे. मुइज को यामीन का भी साथ मिला है. यामीन ही राष्ट्रपति के उम्मीदवार थे, लेकिन वहां की अदालत ने यामीन को 11 साल जेल की सजा सुनाई, लिहाजा वह रेस से बाहर हो गए.

मुइज 17 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. सोलिह भारत समर्थक थे. उनके कार्यकाल में भारत ने पड़ोस प्रथम की नीति अपनाकर मालदीव में निवेश किया था. उसे आर्थिक, सैन्य और सुरक्षा, तीनों ही मोर्चे पर सहायता प्रदान की थी. साथ ही दोनों देशों के बीच भाषा, संस्कृति, धर्म और व्यवसायों को लेकर पुराने संबंध भी रहे हैं. भारत के लिए मालदीव काफी अहम है. हिंद महासागर में मालदीव की स्थिति रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है.

यामीन 2013-18 के बीच राष्ट्रपति रह चुके हैं. उनके कार्यकाल के दौरान ही दोनों देशों के बीच संबंध खराब हुए थे. उनके बाद सोलिह के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हुए. तब से भारत ने मालदीव के बुनियादी ढांचा के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है. अब सवाल ये है कि भारत ने जितने भी प्रोजेक्ट की वहां पर शुरुआत की है, उनका क्या होगा.

रक्षा विशेषक्ष आनंद कुमार ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में बताया कि पिछले साल जब मुइज चीन के दौरे पर गए थे, तब उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक के दौरान यह भरोसा दिया था कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आएगी, तब चीन के साथ संबंध बेहतर होंगे. अब यह देखना होगा कि यह संबंध किस हद तक आगे बढ़ता है.

यामीन के कार्यकाल के दौरान मुइज बतौर मंत्री काम कर रहे थे. उस दौरान चीन ने कुछ ढांचागत निवेश किया था. इनकी मॉनिटरिंग मुइज कर रहे थे. वेलाना इंटरनेशनल एयरपोर्ट और माली को जोड़ने वाले अहम ब्रिज सिनामाली को चीन ने तैयार किया है. एयरपोर्ट हुलहुले में है.

चीन ने मालदीव को वित्तीय सहायता भी प्रदान की है. लेकिन बदले में उसने मालदीव के कुछ उपद्वीपों को लीज पर हड़प लिया है. एक तरीके से चीन ने मालदीव को अपने कर्ज के जाल में उलझा रखा है. इसके ठीक विपरीत भारत ने मालदीव का विकास किया. उनके यहां पर ढांचागत विकास का काम कियाै. शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक स्तर पर विकास को सुनिश्चित किया है. इस समय भारत की मदद से मालदीव में 47 सामुदायिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इनमें से सात प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं. एग्जिम बैंक ने क्रेडिट लाइन दिया.

भारत ने सुरक्षा और रक्षा, दोनों सेक्टर में मालदीव का सहयोग किया है. इसके बावजूद भारत को काफी सतर्क रहना होगा. क्योंकि मालदीव में चीन समर्थक नेता के हाथों में सत्ता आ चुकी है, लिहाजा हिंद महासागर में उसकी जवाबदेही और अधिक बढ़ गई है. द.एशिया और आसपास के समुद्री इलाकों की सुरक्षा चिंता का विषय है. चीन को यहां पर कोई भी रणनीतिक फायदा न मिले, इसके लिए भारत को हमेशा तत्पर रहना होगा.

यामीन ने अपने कार्यकाल में चीन को अपना द्वीप लीज पर देने की शुरुआत की थी. अगर चीन ने इनमें से किसी भी द्वीप पर नेवी का बेस बनाया, तो भारत की सुरक्षा पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है.

भारत और मालदीव के बीच सुरक्षा सहयोग कई स्तरों पर था. जैसे संयुक्त अभ्यास, समुद्री सीमा जागरूकता, हार्डवेयर और ढांचागत विकास वगैरह. भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता की वजह यह है कि मुइज ने चुनाव से पहले इंडिया आउट का कैंपेन चलाया था. इसकी आड़ में उन्होंने मालदीव के कई प्रोजेक्ट को निशाने पर लिया था. भारत ने जो भी विकास के कार्य किए हैं, उसे उन्होंने हस्तक्षेप के रूप में प्रचारित किया था. अंततः इससे नुकसान मालदीव को ही पहुंचेगा, क्योंकि चीन की सोच विकासवादी नहीं, साम्राज्यवादी रही है.

ये भी पढ़ें : Canada Is Playing With Fire : 'आग से खेल' रहा कनाडा, भुगतना पड़ सकता है खामियाजा

नई दिल्ली : जी-20 के सफल आयोजन के बाद भारत के सामने कनाडा और मालदीव के रूप में दो नई चुनौतियां सामने आईं हैं. पहले मामले में कनाडा ने सीधे तौर पर भारत को जिम्मेदार ठहराया है, जबकि दूसरे मामले में मालदीव के नए राष्ट्रपति ने भारतीय सेना को अपने देश से बाहर निकालने की बात दोहराई है. अजरबैजान और आर्मेनिया के बीच चल रहे संघर्ष में दिल्ली ने आर्मेनिया को नौतिक समर्थन दिया था. इसके बावजूद वहां का विवादास्पद क्षेत्र नागोर्नो और काराबाख आर्मेनिया के प्रभाव क्षेत्र से बाहर निकल गया.

आइए पहले कनाडा की बात करते हैं. 18 सितंबर को कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने अपने संसद में खालिस्तानी उग्रवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भारत पर मढ़ा. लेकिन कोई सबूत पेश नहीं किया. जी-20 सम्मेलन के दौरान जब पीएम मोदी और ट्रूडो की मुलाकात हुई थी, तभी इसके संकेत मिल चुके थे, कि दोनों देशों के बीच सबकुछ ठीक नहीं है. भारत ने साफ तौर पर कनाडा को कह दिया था कि वह खालिस्तानी उग्रवादी का साथ दे रहा है.

इसके तुरंत बाद कनाडा के विदेश मंत्री मेलानी ने भारतीय राजनयिक को वहां से निकालने का ऐलान कर दिया. भारत ने इसका माकूल जवाब दिया. भारत ने कनाडा के टॉप डिप्लोमेट को पांच दिनों के अंदर देश छोड़ने का आदेश जारी कर दिया. भारत ने कनाडा के आरोपों को निराधार और तथ्यहीन बताया.

भारतीय विदेश मंत्रालय ने बयान जारी कर कहा, 'कनाडा खालिस्तानी आतंकियों को पनाह दे रहा है, जिसकी वजह से भारत की संप्रभुता और भौगोलिक अखंडता पर खतरा उत्पन्न हो गया. कनाडा इस मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए निर्मूल आरोप भारत पर मढ़ रहा है. भारत ने इस बाबत कनाडा को पूरी जानकारी दी, इसके बावजूद उन्होंने कोई कार्रवाई नहीं की, बल्कि उनके नेताओं ने खुलकर ऐसे तत्वों का बचाव किया.'

सिख फॉर जस्टिस और खालिस्तान टाइगर फोर्स के मुखिया हरदीप सिंह निज्जर की हत्या 19 जून को कनाडा के वैंकूवर में की गई थी. वह मूल रूप से पंजाब के जालंधर का रहने वाला था. वह बतौर प्लंबर कनाडा के सर्रे में रहने का दावा करता था. लेकिन 2013-14 के बीच वह पाकिस्तान गया. उसने वहां पर केटीएफ के प्रमुख जगतार सिंह तारा से मुलाकात की थी. तारा की गिरफ्तारी 2015 में थाईलैंड में की गई थी. निज्जर ने आईएसआई कर्मियों से भी मुलाकात की थी. एनआईए ने निज्जर को यूएपीए के तहत आतंकी घोषित कर रखा था. उसके सिर पर 10 लाख का इनाम भी रखा गया था.

क्योंकि ट्रूडो ने तथ्यहीन आरोप लगाए थे, लिहाजा भारत ने कनाडाई नागरिकों के लिए वीजा जारी करने पर रोक लगा दी. साथ ही भारत ने कनाडा के 41 राजनयिकों को 10 अक्टूबर तक देश छोड़ने का भी आदेश दे रखा है. भारत ने कहा कि राजनयिकों की संख्या दोनों देशों में समान रहनी चाहिए. इस समय वह कनाडा के पक्ष में है. भारत के इस सख्त कदम के बाद कनाडा ने द्विपक्षीय स्तर पर बातचीत का प्रस्ताव रखा है.

कनाडा के विदेश मंत्री ने कहा, 'हम भारत सरकार के साथ लगातार संपर्क में हैं. हम कनाडा के राजनयिकों की सुरक्षा को सबसे अहम स्थान देते हैं. हालांकि, राजनयिक स्तर पर बातचीत को हम हमेशा से प्राथमिकता देना चाहेंगे.'

सितंबर की शुरुआत में कनाडा ने भारत के साथ अर्ली प्रोग्रेस ट्रेन एग्रीमेंट को निलंबित कर दिया था. यह कॉंप्रिहेंसिव इकोनोमिक पार्टनरशिप एग्रीमेंट की दिशा में उठाया जाने वाला पहला कदम था.

क्योंकि कनाडा लगातार भारत विरोधी तत्वों को बढ़ावा दे रहा है, लिहाजा भारत ने ट्रेड को लेकर कोई भी बातचीत आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया. कनाडा से आयात होने वाले सामानों का भारत के पास विकल्प मौजूद है. वैसे, अगर दोनों देशों के बीच संबंध सामान्य होते, तो 2035 तक कनाडा की जीडीपी को 3.8 बि. डॉलर से लेकर 5.9 बि.डॉलर तक का फायदा हो सकता था.

अब आइए दूसरा मामला देखते हैं. यह अजरबैजान और आर्मेनिया विवाद से जुड़ा है. नई दिल्ली आर्मेनिया के साथ खड़ा है. लेकिन इन दोनों देशों के बीच चल रहे संघर्ष में आर्मेनिया को नुकसान पहुंचा है. उसका नागोर्नो काराबाख एरिया पर नियंत्रण समाप्त हो गया. यह एरिया अजरबैजान के दक्षिण में पड़ता है. दोनों देशों के बीच पिछले 30 सालों से संघर्ष चला आ रहा है. वहां जातीय संघर्ष जारी है. क्षेत्र को लेकर दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं.

19 सितंबर को अजरबैजान ने सैन्य दस्तों के साथ हमला कर दिया. अगले ही दिन नागोर्नो-काराबाख (रिपब्लिक ऑफ आर्टसख) के अध्यक्ष सैमवेल शाहरामनयन ने राज्य के सभी संस्थान को भंग करने की घोषणा कर दी. इसकी वजह से इस गणतंत्र का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा. आर्मेनिया के लिए यह बड़ा झटका था.

आधिकारिक तौर पर भारत के दोनों देशों से संबंध हैं. लेकिन व्यावहारिक तौर पर भारत ने आर्मेनिया का साथ दिया. उसे मिलिट्री हार्डवेयर की मदद की. आर्मेनिया को स्वाती वेपन लोकेटिंग रडार सप्लाई किया. पिनाका लॉंचर, एंटी टैंक रॉकेट्स और बारूद की भी आपूर्ति की गई.

आर्मेनिया को सपोर्ट करने के पीछे भारत का मकसद तुर्किए के उस साम्राज्यवादी रूख पर ब्रेक लगाना है, जिसकी आड़ में वह कॉकस और यूरेशिया में अपना प्रभुत्व कायम करने की कोशिश कर रहा है. इन क्षेत्रों में तुर्की भाषा बोली जाती है. दूसरी बात यह है कि अजरबैजान पाकिस्तान और तुर्किए दोनों का साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है. अजरबैजान ने मध्य एशिया में पाकिस्तान को एंट्री का मौका दिया. बदले में पाकिस्तान अजरबैजान को हथियार की सप्लाई करता है.

कश्मीर पर तुर्की, अजरबैजान और पाकिस्तान का रूख एक जैसा है. तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगन ने अनुच्छेद 370 को हटाए जाने का विरोध किया था. अजरबैजान भी इसी रूख का समर्थन करता रहा है.

इसके साथ ही इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर की वजह से भी भारत आर्मेनिया के साथ खड़ा है. भारत इस कॉरिडोर का एक अहम हिस्सेदार है. यह 7200 किलोमीटर का मल्टी मॉडल नेटवर्क है, जिसमें जहाज, रेल और रोड तीनों माध्यमों का उपयोग कर व्यापार को बढ़ावा देना उद्देश्य रहा है. भारत से ईरान, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप तक माल की आपूर्ति की जा सकती है. अब क्योंकि अजरबैजान इस मार्ग का समर्थन नहीं कर रहा है, लिहाजा भारत ने आर्मेनिया का साथ देने का फैसला किया. आर्मेनिया इस रूट में सहयोग करने को तैयार है.

भारत के लिए तीसरा झटका मालदीव का सत्ता परिवर्तन है. मालदीव में मो. मुइज की जीत हुई है. वह चीन समर्थक हैं. उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव में भारत समर्थक इब्राहिम मो. सोलिह को हराया है. मुइज चीन की कठपुतली समझे जाते हैं. राष्ट्रपति बनने से पहले मुइज मालदीव की राजधानी माली के मेयर थे. मुइज को यामीन का भी साथ मिला है. यामीन ही राष्ट्रपति के उम्मीदवार थे, लेकिन वहां की अदालत ने यामीन को 11 साल जेल की सजा सुनाई, लिहाजा वह रेस से बाहर हो गए.

मुइज 17 नवंबर को राष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. सोलिह भारत समर्थक थे. उनके कार्यकाल में भारत ने पड़ोस प्रथम की नीति अपनाकर मालदीव में निवेश किया था. उसे आर्थिक, सैन्य और सुरक्षा, तीनों ही मोर्चे पर सहायता प्रदान की थी. साथ ही दोनों देशों के बीच भाषा, संस्कृति, धर्म और व्यवसायों को लेकर पुराने संबंध भी रहे हैं. भारत के लिए मालदीव काफी अहम है. हिंद महासागर में मालदीव की स्थिति रणनीतिक रूप से काफी महत्वपूर्ण है.

यामीन 2013-18 के बीच राष्ट्रपति रह चुके हैं. उनके कार्यकाल के दौरान ही दोनों देशों के बीच संबंध खराब हुए थे. उनके बाद सोलिह के कार्यकाल में दोनों देशों के बीच संबंधों में सुधार हुए. तब से भारत ने मालदीव के बुनियादी ढांचा के विकास में बड़ी भूमिका निभाई है. अब सवाल ये है कि भारत ने जितने भी प्रोजेक्ट की वहां पर शुरुआत की है, उनका क्या होगा.

रक्षा विशेषक्ष आनंद कुमार ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में बताया कि पिछले साल जब मुइज चीन के दौरे पर गए थे, तब उन्होंने चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की बैठक के दौरान यह भरोसा दिया था कि जब उनकी पार्टी सत्ता में आएगी, तब चीन के साथ संबंध बेहतर होंगे. अब यह देखना होगा कि यह संबंध किस हद तक आगे बढ़ता है.

यामीन के कार्यकाल के दौरान मुइज बतौर मंत्री काम कर रहे थे. उस दौरान चीन ने कुछ ढांचागत निवेश किया था. इनकी मॉनिटरिंग मुइज कर रहे थे. वेलाना इंटरनेशनल एयरपोर्ट और माली को जोड़ने वाले अहम ब्रिज सिनामाली को चीन ने तैयार किया है. एयरपोर्ट हुलहुले में है.

चीन ने मालदीव को वित्तीय सहायता भी प्रदान की है. लेकिन बदले में उसने मालदीव के कुछ उपद्वीपों को लीज पर हड़प लिया है. एक तरीके से चीन ने मालदीव को अपने कर्ज के जाल में उलझा रखा है. इसके ठीक विपरीत भारत ने मालदीव का विकास किया. उनके यहां पर ढांचागत विकास का काम कियाै. शिक्षा, स्वास्थ्य और सामुदायिक स्तर पर विकास को सुनिश्चित किया है. इस समय भारत की मदद से मालदीव में 47 सामुदायिक प्रोजेक्ट चल रहे हैं. इनमें से सात प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं. एग्जिम बैंक ने क्रेडिट लाइन दिया.

भारत ने सुरक्षा और रक्षा, दोनों सेक्टर में मालदीव का सहयोग किया है. इसके बावजूद भारत को काफी सतर्क रहना होगा. क्योंकि मालदीव में चीन समर्थक नेता के हाथों में सत्ता आ चुकी है, लिहाजा हिंद महासागर में उसकी जवाबदेही और अधिक बढ़ गई है. द.एशिया और आसपास के समुद्री इलाकों की सुरक्षा चिंता का विषय है. चीन को यहां पर कोई भी रणनीतिक फायदा न मिले, इसके लिए भारत को हमेशा तत्पर रहना होगा.

यामीन ने अपने कार्यकाल में चीन को अपना द्वीप लीज पर देने की शुरुआत की थी. अगर चीन ने इनमें से किसी भी द्वीप पर नेवी का बेस बनाया, तो भारत की सुरक्षा पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ सकता है.

भारत और मालदीव के बीच सुरक्षा सहयोग कई स्तरों पर था. जैसे संयुक्त अभ्यास, समुद्री सीमा जागरूकता, हार्डवेयर और ढांचागत विकास वगैरह. भारत के लिए सबसे बड़ी चिंता की वजह यह है कि मुइज ने चुनाव से पहले इंडिया आउट का कैंपेन चलाया था. इसकी आड़ में उन्होंने मालदीव के कई प्रोजेक्ट को निशाने पर लिया था. भारत ने जो भी विकास के कार्य किए हैं, उसे उन्होंने हस्तक्षेप के रूप में प्रचारित किया था. अंततः इससे नुकसान मालदीव को ही पहुंचेगा, क्योंकि चीन की सोच विकासवादी नहीं, साम्राज्यवादी रही है.

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