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हाईकोर्ट से पॉक्सो आरोपी बरी, अदालत ने कहा- बाल गवाह के सबूत की जांच सावधानी से हो

बॉम्बे हाईकोर्ट ने पांच साल से कम उम्र की पीड़िता से बलात्कार के लिए दोषी व्यक्ति को बरी कर दिया. कोर्ट ने कहा कि एक बाल गवाह, उसकी निविदा उम्र के कारण, एक व्यवहार्य गवाह है और वह प्रशिक्षित और प्रलोभन के लिए उत्तरदायी है.

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Published : Sep 8, 2021, 9:08 PM IST

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने निचली अदालत के समक्ष बाल गवाह की गवाही पर विश्वास न करते हुए और साथ ही बच्चे की मां के बयान पर संदेह जताते हुए कहा कि यह सर्वविदित है कि एक बाल गवाह, अपनी निविदा उम्र के कारण एक व्यवहार्य गवाह है, वह प्रशिक्षित और प्रलोभन के लिए उत्तरदायी है.

कोर्ट ने कहा कि अक्सर कल्पनाशील और अतिरंजित कहानियां कहने के लिए प्रवण होता है. इसलिए एक बाल गवाह का सबूत अत्यधिक सावधानी के साथ जांच की जानी चाहिए. अदालत ने पीड़ित बच्ची की गवाही के संबंध में मुकदमे के रिकॉर्ड को देखने के बाद कहा कि उसने जिरह के दौरान खुद को एक प्रशिक्षित गवाह होने के लिए स्वीकार किया है और इसलिए उसके सबूतों पर कोई अंतर्निहित भरोसा नहीं किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने कहा कि पीड़िता ने अपनी जिरह में स्वीकार किया है कि उसके माता-पिता सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज करने के समय मौजूद थे. उसने कहा है कि उसके माता-पिता ने उसे बताया था कि उसे कैसे बयान देना है.

उसने आगे कहा कि पुलिस ने उससे घटना के बारे में पूछताछ की और उसकी मां ने जवाब दिया था जिसे लिखित रूप में ले लिया गया था. उसने स्वीकार किया है कि उसके माता-पिता ने उसे बताया था कि अदालत के सामने कैसे पेश करना है.

अदालत ठाणे के एक निवासी द्वारा पीड़िता की मां द्वारा दायर एक शिकायत पर दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता को 2019 में पॉक्सो के तहत दोषी ठहराया गया था.

आरोप था कि दिसंबर 2017 में जब पीड़िता और उसके दोस्त 5वीं मंजिल पर गेंद व बल्ला खेल रहे थे तो आरोपी उन्हें अपने कमरे में ले गया और उन्हें चॉकलेट दी. फिर उसने उसके दोस्तों को कमरे से बाहर भेज दिया. दरवाजा बंद कर दिया, उसे बिस्तर पर लेटा दिया, उसकी पैंट उतार दी और उसके गुप्तांगों को छुआ. फिर उसने उससे कहा कि वह अपनी मां को इस घटना के बारे में न बताए.

डॉक्टर का बयान भी अभियोजन पक्ष के खिलाफ है. उसने अदालत को बताया कि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं आई और सब कुछ सामान्य है. आरोपी, जो कि अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है, ने दलील दी कि उसका घर पीड़िता के घर के ठीक ऊपर है और उसके शौचालय से पानी के रिसाव को लेकर उनके बीच झगड़ा हुआ था. इसलिए उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया है.

यह भी पढ़ें-पीड़िता द्वारा अभियोजन का सहयोग नहीं करने पर पॉक्सो आरोपी कोर्ट से बरी

हाईकोर्ट ने उसके इस बचाव में विश्वास किया और पाया कि निचली अदालत ने पीड़िता के बयान के आधार पर सभी अपराधों के लिए आरोपी को दोषी ठहराया था लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया कि वह पांच साल की बच्ची है.

मुंबई : बॉम्बे हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति अनुजा प्रभुदेसाई ने निचली अदालत के समक्ष बाल गवाह की गवाही पर विश्वास न करते हुए और साथ ही बच्चे की मां के बयान पर संदेह जताते हुए कहा कि यह सर्वविदित है कि एक बाल गवाह, अपनी निविदा उम्र के कारण एक व्यवहार्य गवाह है, वह प्रशिक्षित और प्रलोभन के लिए उत्तरदायी है.

कोर्ट ने कहा कि अक्सर कल्पनाशील और अतिरंजित कहानियां कहने के लिए प्रवण होता है. इसलिए एक बाल गवाह का सबूत अत्यधिक सावधानी के साथ जांच की जानी चाहिए. अदालत ने पीड़ित बच्ची की गवाही के संबंध में मुकदमे के रिकॉर्ड को देखने के बाद कहा कि उसने जिरह के दौरान खुद को एक प्रशिक्षित गवाह होने के लिए स्वीकार किया है और इसलिए उसके सबूतों पर कोई अंतर्निहित भरोसा नहीं किया जा सकता है.

न्यायमूर्ति प्रभुदेसाई ने कहा कि पीड़िता ने अपनी जिरह में स्वीकार किया है कि उसके माता-पिता सीआरपीसी की धारा 164 के तहत उसका बयान दर्ज करने के समय मौजूद थे. उसने कहा है कि उसके माता-पिता ने उसे बताया था कि उसे कैसे बयान देना है.

उसने आगे कहा कि पुलिस ने उससे घटना के बारे में पूछताछ की और उसकी मां ने जवाब दिया था जिसे लिखित रूप में ले लिया गया था. उसने स्वीकार किया है कि उसके माता-पिता ने उसे बताया था कि अदालत के सामने कैसे पेश करना है.

अदालत ठाणे के एक निवासी द्वारा पीड़िता की मां द्वारा दायर एक शिकायत पर दोषसिद्धि के खिलाफ अपील पर सुनवाई कर रही थी. याचिकाकर्ता को 2019 में पॉक्सो के तहत दोषी ठहराया गया था.

आरोप था कि दिसंबर 2017 में जब पीड़िता और उसके दोस्त 5वीं मंजिल पर गेंद व बल्ला खेल रहे थे तो आरोपी उन्हें अपने कमरे में ले गया और उन्हें चॉकलेट दी. फिर उसने उसके दोस्तों को कमरे से बाहर भेज दिया. दरवाजा बंद कर दिया, उसे बिस्तर पर लेटा दिया, उसकी पैंट उतार दी और उसके गुप्तांगों को छुआ. फिर उसने उससे कहा कि वह अपनी मां को इस घटना के बारे में न बताए.

डॉक्टर का बयान भी अभियोजन पक्ष के खिलाफ है. उसने अदालत को बताया कि पीड़िता के निजी अंगों पर कोई चोट नहीं आई और सब कुछ सामान्य है. आरोपी, जो कि अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहता है, ने दलील दी कि उसका घर पीड़िता के घर के ठीक ऊपर है और उसके शौचालय से पानी के रिसाव को लेकर उनके बीच झगड़ा हुआ था. इसलिए उन्हें मामले में झूठा फंसाया गया है.

यह भी पढ़ें-पीड़िता द्वारा अभियोजन का सहयोग नहीं करने पर पॉक्सो आरोपी कोर्ट से बरी

हाईकोर्ट ने उसके इस बचाव में विश्वास किया और पाया कि निचली अदालत ने पीड़िता के बयान के आधार पर सभी अपराधों के लिए आरोपी को दोषी ठहराया था लेकिन इन पर ध्यान नहीं दिया कि वह पांच साल की बच्ची है.

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