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इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कोर्ट से केंद्र सरकार को 2018 की चुनावी बॉन्ड स्कीम के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री पर रोक लगाने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट
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Published : Mar 9, 2021, 7:38 PM IST

नई दिल्ली : एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा है कि जब तक इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिका कोर्ट में लंबित है कोर्ट केंद्र सरकार को 2018 की चुनावी बॉन्ड स्कीम के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री के लिए कोई और विकल्प शुरू न करने की निर्देश दे.

यह याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर की गई है. इससे पहले एसोसिएशन ने भी अदालत में दो आवेदन दायर कर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन इस मामले को एक साल से अधिक समय के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया है.

इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने भारतीय लोगों के साथ-साथ उन बड़ी कंपनियों को राजनीतिक दलों को बड़ा दान देने के रास्तों को खोल दिया है, जो भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं.

याचिका में कहा गया है कि 2017 के वित्त अधिनियम ने चुनावी बॉन्ड का उपयोग किया है, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की पहुंच से बाहर है. यह अनियंत्रित, राजनीतिक दलों को अज्ञात धन पाने के लिए दरवाजे खोल रहा है.याचिका में दलील दी गई है कि इसने गुप्त दिए गए दान को वैध बना दिया है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव आयोग और आरबीआई ने 2017 में इस स्कीम के खिलाफ सलाह दी थी कि पीएम ने कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले बॉन्ड की बिक्री का आदेश दिया था और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव से पहले एक गुप्त धन प्राप्त करने के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है.

वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पार्टियों की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने अब तक जारी किए गए कुल चुनावी बॉन्डों के 60% से अधिक बांड हासिल किए हैं.

याचिका में आगे कहा गया है कि 6500 करोड़ रुपये से अधिक बॉन्ड बीजेपी को दान देने वालों को बेचे गए हैं. इनमें से 99% बांड एक करोड़ और10 लाख मूल्य के हैं, जिसका मतलब है कि इसे खरीदने वाली कंपनियां हैं न कि व्यक्तिगत नागरिक.

याचिका में कहा गया है कि स्पष्ट रूप से इन कोर्पोरेट्स को सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को असीमित अनाम दान करने की अनुमति दी जा रही है, ऐसा वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 में संशोधन करके किया गया है.

पढ़ें - प. बंगाल विस चुनाव : तारीखों को लेकर EC को चुनौती देने वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट में खारिज

चुनावी बॉन्ड 1000,10,000, 10 लाख और 10 करोड़ रुपये की कीमत के हैं. यह एसबीआई में उपलब्ध है और कोई भी केवाईसी खाताधारक इसे खरीद सकता है.

इसे अपनी पसंद की पार्टियों को दान देने के लिए खरीदा जा सकता है. यह बांड15 दिनों इनकैश किया जा सकता है. इसमें बॉन्ड खरीदार का नाम जाहिर नहीं किया जाता है और भुगतानकर्ता पूरी चीज को गैर पारदर्शी बनाता है.

नई दिल्ली : एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर कहा है कि जब तक इलेक्टोरल बॉन्ड को चुनौती देने वाली याचिका कोर्ट में लंबित है कोर्ट केंद्र सरकार को 2018 की चुनावी बॉन्ड स्कीम के तहत इलेक्टोरल बॉन्ड्स की बिक्री के लिए कोई और विकल्प शुरू न करने की निर्देश दे.

यह याचिका अधिवक्ता प्रशांत भूषण के माध्यम से दायर की गई है. इससे पहले एसोसिएशन ने भी अदालत में दो आवेदन दायर कर इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम पर रोक लगाने की मांग की थी, लेकिन इस मामले को एक साल से अधिक समय के लिए सूचीबद्ध नहीं किया गया है.

इलेक्टोरल बॉन्ड्स स्कीम ने भारतीय लोगों के साथ-साथ उन बड़ी कंपनियों को राजनीतिक दलों को बड़ा दान देने के रास्तों को खोल दिया है, जो भारतीय लोकतंत्र पर गंभीर नुकसान पहुंचा सकती हैं.

याचिका में कहा गया है कि 2017 के वित्त अधिनियम ने चुनावी बॉन्ड का उपयोग किया है, जो कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की पहुंच से बाहर है. यह अनियंत्रित, राजनीतिक दलों को अज्ञात धन पाने के लिए दरवाजे खोल रहा है.याचिका में दलील दी गई है कि इसने गुप्त दिए गए दान को वैध बना दिया है.

याचिकाकर्ता का कहना है कि चुनाव आयोग और आरबीआई ने 2017 में इस स्कीम के खिलाफ सलाह दी थी कि पीएम ने कर्नाटक चुनाव से ठीक पहले बॉन्ड की बिक्री का आदेश दिया था और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, मिजोरम, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव से पहले एक गुप्त धन प्राप्त करने के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है.

वित्त वर्ष 2017-18 और वित्त वर्ष 2018-19 के लिए पार्टियों की ऑडिट रिपोर्ट का हवाला देते हुए, याचिकाकर्ता ने कहा है कि सत्तारूढ़ पार्टी ने अब तक जारी किए गए कुल चुनावी बॉन्डों के 60% से अधिक बांड हासिल किए हैं.

याचिका में आगे कहा गया है कि 6500 करोड़ रुपये से अधिक बॉन्ड बीजेपी को दान देने वालों को बेचे गए हैं. इनमें से 99% बांड एक करोड़ और10 लाख मूल्य के हैं, जिसका मतलब है कि इसे खरीदने वाली कंपनियां हैं न कि व्यक्तिगत नागरिक.

याचिका में कहा गया है कि स्पष्ट रूप से इन कोर्पोरेट्स को सत्तारूढ़ राजनीतिक दल को असीमित अनाम दान करने की अनुमति दी जा रही है, ऐसा वित्त अधिनियम, 2017 और वित्त अधिनियम, 2016 में संशोधन करके किया गया है.

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चुनावी बॉन्ड 1000,10,000, 10 लाख और 10 करोड़ रुपये की कीमत के हैं. यह एसबीआई में उपलब्ध है और कोई भी केवाईसी खाताधारक इसे खरीद सकता है.

इसे अपनी पसंद की पार्टियों को दान देने के लिए खरीदा जा सकता है. यह बांड15 दिनों इनकैश किया जा सकता है. इसमें बॉन्ड खरीदार का नाम जाहिर नहीं किया जाता है और भुगतानकर्ता पूरी चीज को गैर पारदर्शी बनाता है.

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