नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आयुर्वेद में स्नातकोत्तर छात्र एलोपैथी स्ट्रीम के छात्रों को दिए जाने वाले वजीफे के हकदार नहीं होंगे क्योंकि वे समान कर्तव्य नहीं निभाते हैं. न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मध्य प्रदेश सरकार की ओर से दायर अपील को स्वीकार कर लिया और उच्च न्यायालय के 19 नवंबर, 2019 के आदेश को 'कानूनी रूप से टिकाऊ नहीं' पाते हुए रद्द कर दिया.
मध्य प्रदेश के अतिरिक्त महाधिवक्ता, सौरभ मिश्रा ने एचसी के आदेश की वैधता पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह मुद्दा अब एकीकृत नहीं है. उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल गुजरात राज्य और अन्य बनाम डॉ. पीए भट्ट और अन्य के मामले में कहा था कि आयुर्वेद स्ट्रीम में पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की ओर से निभाए गए कर्तव्यों को एलोपैथी में पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों की ओर से निभाए गए कर्तव्यों के बराबर नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि दरअसल, बाद में, दोनों स्ट्रीम में दिए जाने वाले वजीफे में संशोधन किया गया है और दोनों स्ट्रीम में पोस्ट ग्रेजुएट छात्रों को दिए जाने वाले वजीफे में ज्यादा अंतर नहीं है. आयुर्वेद छात्रों के एक वकील, जिन्होंने एचसी के समक्ष रिट याचिका दायर की थी, ने कहा कि फैसले और आदेश में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि राज्य सरकार की ओर से लिया गया रुख तर्कसंगत नहीं पाया गया.
आयुर्वेद छात्रों ने दावा किया था कि यद्यपि उनके ओर से निभाए गए कर्तव्य एलोपैथी स्ट्रीम से संबंधित स्नातकोत्तर छात्रों की ओर से किए गए कर्तव्यों के समान थे, फिर भी वजीफा के मामले में उनके साथ भेदभाव किया गया था. पीठ ने राज्य के वकील के दावे से सहमति व्यक्त की और अपने 2023 के फैसले पर भरोसा किया, जिसमें कहा गया था कि आयुर्वेद डॉक्टरों के महत्व और चिकित्सा की वैकल्पिक या स्वदेशी प्रणालियों को बढ़ावा देने की आवश्यकता को पहचानते हुए भी, हम इस तथ्य से अनजान नहीं हो सकते कि दोनों श्रेणियों के डॉक्टर निश्चित रूप से वे समान वेतन के हकदार होने के लिए समान कार्य नहीं कर रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने कहा कि उच्च न्यायालय का फैसला और आदेश इस अदालत के विशिष्ट निष्कर्षों के मद्देनजर टिकाऊ नहीं होगा कि आयुर्वेद स्नातकोत्तर छात्रों की ओर से निभाए गए कर्तव्यों की प्रकृति एलोपैथी में शिक्षा लेने वाले स्नातकोत्तर छात्रों के समान नहीं है.