ETV Bharat / bharat

Award Wapsi : पुरस्कार लेने से पहले करने होंगे साइन! बात-बात पर वापस नहीं कर सकेंगे अवॉर्ड - संसद पुरस्कार वापसी खबर

अवॉर्ड वापसी के बढ़ते मामलों पर संसदीय समिति ने चिंता जताई है, साथ ही सिफारिश की है कि शीर्ष सांस्कृतिक संस्थानों और अकादमियों को पुरस्कार देने से पहले साइन कराने चाहिए कि वह इसे वापस नहीं करेंगे. दरअसल देश में अवॉर्ड वापसी विरोध जताने का जरिया बन गया है.

par panel
आसान नहीं होगी अवॉर्ड वापसी
author img

By

Published : Jul 25, 2023, 4:03 PM IST

Updated : Jul 25, 2023, 4:20 PM IST

नई दिल्ली : एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि शीर्ष सांस्कृतिक संस्थानों और अकादमियों को सरकारी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं से हस्ताक्षर कराने चाहिए, ताकि बाद में 'पुरस्कार वापसी जैसी स्थिति' से बचा जा सके.

संसदीय समिति ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य अकादमी या अन्य सांस्कृतिक अकादमियां 'गौरराजनीतिक संगठन' हैं. जब भी उनके द्वारा कोई पुरस्कार दिया जाता है, तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए ताकि वह 'राजनीतिक कारणों' से इसे वापस न लौटाएं.

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों में पेश एक रिपोर्ट में यह बात कही. पैनल ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता को भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए 'विचार नहीं किया जाएगा.'

पैनल ने 'राष्ट्रीय अकादमियों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों के कामकाज' पर अपनी 'थ्री हंड्रेड फिफ्टी फर्स्ट रिपोर्ट' में रेखांकित किया कि इस तरह के पुरस्कारों की वापसी 'देश के लिए अपमानजनक' है.

पैनल ने कहा, 'पुरस्कार वापसी से जुड़ी ऐसी अनुचित घटनाएं अन्य पुरस्कार विजेताओं की उपलब्धियों को कमजोर करती हैं और पुरस्कारों की समग्र प्रतिष्ठा पर भी असर डालती हैं.' समिति ने पाया कि प्रत्येक अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार भारत में एक कलाकार के लिए सर्वोच्च सम्मान बने हुए हैं.

रिपोर्ट में ये कहा समिति ने : समिति ने कहा 'किसी भी संगठन द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार, किसी कलाकार का सम्मान करते हैं और इसमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. समिति ने इसे 'अपमानजनक' बताते हुए सुझाव दिया कि जब भी कोई पुरस्कार दिया जाए तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए, ताकि वे किसी राजनीतिक कारण से इसे वापस न करें.'

ताकि पुरस्कार का अपमान न हो : समिति ने सुझाव दिया, 'एक ऐसी प्रणाली बनाई जा सकती है जहां प्रस्तावित पुरस्कार विजेता से पुरस्कार की स्वीकृति का हवाला देते हुए एक वचन लिया जाए और पुरस्कार विजेता भविष्य में किसी भी समय पुरस्कार का अपमान नहीं कर सके.'

समिति ने कहा, 'पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता के नाम पर भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए विचार नहीं किया जाएगा.'

2014 के बाद से बढ़ा अवॉर्ड वापसी का चलन : 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश में विरोध की एक नई लहर देखी गई, जिसमें कई विद्वानों और साहित्यकारों ने अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा की. खासकर 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी और कर्नाटक में हुई घटनाओं के बाद इसकी शुरुआत हुई. इन लेखकों और विचारकों ने देश में बढ़ती असहिष्णुता पर निराशा व्यक्त की थी और विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया था.

सबसे पहले अशोक वाजपेयी ने वापस किया था अवॉर्ड : मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में अशोक वाजपेयी पहले साहित्यकार थे जिन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी. उनके बाद, देश भर के 39 अन्य विद्वानों ने भी अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए. इस लिस्ट में नयनतारा सहगल, उदय प्रकाश, कृष्णा सोबती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा, खलील मामून, सारा जोसेफ, इब्राहिम अफगान और अमन सेठी जैसे बड़े नाम शामिल हैं.

हालांकि बाद में ये बात भी सामने आई की साहित्यकार, पुरस्कार लौटाने की घोषणा तो कर देते हैं, लेकिन स्मृति चिन्ह नहीं लौटाते हैं.

1954 में स्थापित हुई थी साहित्य अकादमी : साहित्य अकादमी एक स्वायत्त संस्था है, जिसका संचालन विद्वान एवं साहित्यकार ही करते हैं. इन विद्वान लोगों की एक जूरी प्रतिवर्ष उन नामों का चयन करती है जिन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं. 1954 में स्थापित, साहित्य अकादमी पुरस्कार पिछले 66 वर्षों में लगभग 1900 साहित्यकारों को दिए गए हैं. हर साल चार साहित्यिक पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में लगभग 2,400 लेखक, साहित्यकार और विद्वान शामिल होते हैं.

ये भी पढ़ें-

अवॉर्ड लौटाने वाले गैंग की वापसी, माहौल बिगाड़ने का हो रहा प्रयास: BJP

संसदीय पैनल की बैठक में हंगामा, कांग्रेस सांसदों ने की असम के CS के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव की मांग

(एक्स्ट्रा इनपुट एजेंसी)

नई दिल्ली : एक संसदीय समिति ने सिफारिश की है कि शीर्ष सांस्कृतिक संस्थानों और अकादमियों को सरकारी पुरस्कार प्राप्तकर्ताओं से हस्ताक्षर कराने चाहिए, ताकि बाद में 'पुरस्कार वापसी जैसी स्थिति' से बचा जा सके.

संसदीय समिति ने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य अकादमी या अन्य सांस्कृतिक अकादमियां 'गौरराजनीतिक संगठन' हैं. जब भी उनके द्वारा कोई पुरस्कार दिया जाता है, तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए ताकि वह 'राजनीतिक कारणों' से इसे वापस न लौटाएं.

परिवहन, पर्यटन और संस्कृति से संबंधित संसदीय स्थायी समिति ने सोमवार को संसद के दोनों सदनों में पेश एक रिपोर्ट में यह बात कही. पैनल ने अपनी टिप्पणियों में कहा कि पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता को भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए 'विचार नहीं किया जाएगा.'

पैनल ने 'राष्ट्रीय अकादमियों और अन्य सांस्कृतिक संस्थानों के कामकाज' पर अपनी 'थ्री हंड्रेड फिफ्टी फर्स्ट रिपोर्ट' में रेखांकित किया कि इस तरह के पुरस्कारों की वापसी 'देश के लिए अपमानजनक' है.

पैनल ने कहा, 'पुरस्कार वापसी से जुड़ी ऐसी अनुचित घटनाएं अन्य पुरस्कार विजेताओं की उपलब्धियों को कमजोर करती हैं और पुरस्कारों की समग्र प्रतिष्ठा पर भी असर डालती हैं.' समिति ने पाया कि प्रत्येक अकादमी द्वारा दिए गए पुरस्कार भारत में एक कलाकार के लिए सर्वोच्च सम्मान बने हुए हैं.

रिपोर्ट में ये कहा समिति ने : समिति ने कहा 'किसी भी संगठन द्वारा दिए जाने वाले पुरस्कार, किसी कलाकार का सम्मान करते हैं और इसमें राजनीति के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए. समिति ने इसे 'अपमानजनक' बताते हुए सुझाव दिया कि जब भी कोई पुरस्कार दिया जाए तो प्राप्तकर्ता की सहमति ली जानी चाहिए, ताकि वे किसी राजनीतिक कारण से इसे वापस न करें.'

ताकि पुरस्कार का अपमान न हो : समिति ने सुझाव दिया, 'एक ऐसी प्रणाली बनाई जा सकती है जहां प्रस्तावित पुरस्कार विजेता से पुरस्कार की स्वीकृति का हवाला देते हुए एक वचन लिया जाए और पुरस्कार विजेता भविष्य में किसी भी समय पुरस्कार का अपमान नहीं कर सके.'

समिति ने कहा, 'पुरस्कार लौटाए जाने की स्थिति में पुरस्कार विजेता के नाम पर भविष्य में ऐसे पुरस्कार के लिए विचार नहीं किया जाएगा.'

2014 के बाद से बढ़ा अवॉर्ड वापसी का चलन : 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो देश में विरोध की एक नई लहर देखी गई, जिसमें कई विद्वानों और साहित्यकारों ने अपने पुरस्कार लौटाने की घोषणा की. खासकर 2015 में उत्तर प्रदेश के दादरी और कर्नाटक में हुई घटनाओं के बाद इसकी शुरुआत हुई. इन लेखकों और विचारकों ने देश में बढ़ती असहिष्णुता पर निराशा व्यक्त की थी और विरोध स्वरूप अपने पुरस्कार लौटाने का फैसला किया था.

सबसे पहले अशोक वाजपेयी ने वापस किया था अवॉर्ड : मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में अशोक वाजपेयी पहले साहित्यकार थे जिन्होंने अपना साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की थी. उनके बाद, देश भर के 39 अन्य विद्वानों ने भी अपने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटा दिए. इस लिस्ट में नयनतारा सहगल, उदय प्रकाश, कृष्णा सोबती, मंगलेश डबराल, काशीनाथ सिंह, राजेश जोशी, केकी दारूवाला, अंबिकादत्त, मुनव्वर राणा, खलील मामून, सारा जोसेफ, इब्राहिम अफगान और अमन सेठी जैसे बड़े नाम शामिल हैं.

हालांकि बाद में ये बात भी सामने आई की साहित्यकार, पुरस्कार लौटाने की घोषणा तो कर देते हैं, लेकिन स्मृति चिन्ह नहीं लौटाते हैं.

1954 में स्थापित हुई थी साहित्य अकादमी : साहित्य अकादमी एक स्वायत्त संस्था है, जिसका संचालन विद्वान एवं साहित्यकार ही करते हैं. इन विद्वान लोगों की एक जूरी प्रतिवर्ष उन नामों का चयन करती है जिन्हें पुरस्कार दिए जाते हैं. 1954 में स्थापित, साहित्य अकादमी पुरस्कार पिछले 66 वर्षों में लगभग 1900 साहित्यकारों को दिए गए हैं. हर साल चार साहित्यिक पुरस्कारों की चयन प्रक्रिया में लगभग 2,400 लेखक, साहित्यकार और विद्वान शामिल होते हैं.

ये भी पढ़ें-

अवॉर्ड लौटाने वाले गैंग की वापसी, माहौल बिगाड़ने का हो रहा प्रयास: BJP

संसदीय पैनल की बैठक में हंगामा, कांग्रेस सांसदों ने की असम के CS के खिलाफ विशेषाधिकार प्रस्ताव की मांग

(एक्स्ट्रा इनपुट एजेंसी)

Last Updated : Jul 25, 2023, 4:20 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.