नई दिल्ली : यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई के बाद पाकिस्तान की विदेश नीति चरमरा गई. इसके बाद पाकिस्तान के प्रधान मंत्री इमरान खान और सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा के बीच के मतभेद भी खुलकर सामने आ गए. हालांकि यह मतभेद दो शक्तियों के बीच संघर्ष जैसा दिखता है, मगर इसके प्रभाव व्यापक है. सेना के इस रवैये के कारण ही पाकिस्तान में लोकतंत्र की जड़ें कभी गहरी नहीं हुई.
अपने जमाने में एक सनसनीखेज क्रिकेट तेज गेंदबाज रहे इमरान खान पठान हैं जबकि जनरल बाजवा जाट वंश के हैं. दोनों की शख्सियत अलग-अलग हैं. कहा जाता है कि जो मजबूत इरादों वाले होते हैं, वे सामान्य तौर पर मिलनसार नहीं होते हैं. पाकिस्तान सेना के समर्थन से प्रधानमंत्री बने इमरान खान ने जब आईएसआई चीफ की नियुक्ति की थी, तभी वह फौज की ओर से आलोचना के शिकार हुए थे. दोनों के बीच खाई उस समय चौड़ी हो गई, यूक्रेन में रूसी सैन्य कार्रवाई पर इमरान और जनरल बाजवा ने अमेरिका और चीन के साथ संबंधों पर अलग-अलग रुख अपनाया. पीएम इमरान खान के रुख के उलट जनरल बाजवा ने यूक्रेन में रूस की कार्रवाई का कड़ा विरोध किया. जबकि इमरान खान रूस के दौरा कर चुके थे.
2 अप्रैल (शनिवार) को इस्लामाबाद सिक्युरिटी डायलॉग में जनरल बाजवा ने यूक्रेन पर रूसी आक्रमण को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया. उन्होंने कहा कि रूस की सुरक्षा चिंताओं के बावजूद एक छोटे देश के खिलाफ उसकी आक्रामकता को माफ नहीं किया जा सकता है. हालांकि बाद में उन्होंने एक बयान दिया कि पाकिस्तान चीन और अमेरिका दोनों के साथ घनिष्ठ संबंध बनाना चाहता है. जनरल बाजवा के इस बयान से कन्फ्यूजन की स्थिति पैदा हो गई कि आखिर पाकिस्तान सेना किस दिशा में जाना चाहती है.
उन्होंने इकोनॉमिक कॉरिडोर के प्रति प्रतिबद्धता जताते हुए कहा कि चीन और पाकिस्तान के बीच सुख-दुख के संबंध हैं. मगर हम अमेरिका के साथ भी उत्कृष्ट और रणनीतिक संबंधों का एक लंबा इतिहास साझा करते हैं, जो हमारा सबसे बड़ा एक्सपोर्ट मार्केट भी है. पाकिस्तानी सेना प्रमुख ने कहा कि हम दूसरे देशों के साथ अपने संबंधों को प्रभावित किए बिना दोनों देशों के साथ अपने संबंधों को व्यापक बनाना चाहते हैं. इस तरह जनरल बाजवा ने दो विपरीत ध्रुवों अमेरिका और चीन-रूस गठबंधन को साधने की असंभव कोशिश की.
जनरल बाजवा ऐसे समय में अमेरिका के साथ घनिष्ठ संबंधों की उम्मीद जता रहे थे, जब पाकिस्तान की इमरान खान सरकार चीन-रूस के पीछे चल रही थी. चीन ने पाकिस्तान में इकोनॉमिक कॉरिडोर के जरिये 60 अरब डॉलर का निवेश कर रखा है. चीन और पाकिस्तान खुद को 'आयरन ब्रदर्स' के रूप में पारिभाषित कर रखा है, जो गहरे सैन्य, रणनीतिक और आर्थिक संबंधों को साझा करते हैं. जनरल बाजवा में इससे इनकार नहीं कर सकते हैं कि आज भी आर्थिक मोर्चे पर लड़खड़ाए पाकिस्तान को चीन के फंड्स की जरूरत है.
बता दें कि 24 फरवरी को जब रूसी सैन्य तेजी से यूक्रेन की ओर बढ़ रही थी, तब पीएम इमरान खान मॉस्को में थे. रूस के राष्ट्रपति पुतिन और इमरान खान के बीच करीब तीन घंटे तक मुलाकात हुई. इस मुलाकात के पाकिस्तान के रूस के करीबी होने का संकेत मिला. भारत और चीन की तरह पाकिस्तान ने भी यूक्रेन की कार्रवाई के लिए रूस की निंदा करने में अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी लाइन को मानने से इनकार कर दिया था.
इस बीच जब इमरान खान की सरकार अल्पमत में आई तो उन्होंने गजब का बयान दे दिया. 31 मार्च को इमरान ने एक 'फॉरेन कंट्री' पर सरकार गिराने का आरोप मढ़ दिया. उन्होंने रविवार को अमेरिकी विदेश विभाग में दक्षिण एशिया के लिए काम करने वाले एक शीर्ष अमेरिकी अधिकारी डोनाल्ड लू पर सरकार गिराने के लिए साजिश रचने का आरोप लगाया. सेना और राजनीतिक उठापटक के कारण पाकिस्तान एक बार फिर अराजकता की ओर जा रहा है.
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