इंदौर: देशभर में राजनीतिक दलों के बीच बढ़ रहे राजनीतिक प्रतिशोध के बीच मध्य प्रदेश इन दिनों राजनीति का 'बदलापुर' बना हुआ है.मध्य प्रदेश में विपक्षी दल होने के नाते जनसमस्याओं को उठाने पर विपक्षी नेताओं और कार्यकर्ताओं पर सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करने पर पुलिस केस दर्ज होना आम बात हो गई है. इतना ही नहीं कुछ मामलों में तो विपक्ष के नेताओं को जिला बदर और राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत गंभीर कानूनी कार्रवाई के दायरे में लाया गया है. यही वजह है कि इस स्थिति से परेशान कांग्रेस अब पुलिस प्रकरणों का जवाब विशाल धरना प्रदर्शन के जरिए देने जा रही है.
शिवराज सरकार के कार्यकाल में पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ, दिग्विजय सिंह समेत पूर्व मंत्री, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों सहित हजारों कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर लगभग 6000 पुलिस केस दर्ज किए गए हैं. कोरोना काल में बाहर निकलने से लेकर लोगों की मदद करने पर भी विपक्षी दल के नेताओं को गंभीर धाराओं में तरह-तरह के केस भुगतने पड़े. पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के कोरोना संबंधी मौतों के आंकड़े पर बयान देने पर पुलिस केस दर्ज कर लिया गया.
यही स्थिति दिग्विजय सिंह को लेकर बनी, जिन्हें भोपाल में बीएचईएल पर हुए प्रदर्शन के बाद एफआईआर झेलनी पड़ी प्रदेश में इस स्थिति का शिकार फिलहाल विपक्ष का हर प्रमुख नेता है जिसके खिलाफ दो से लेकर 50-50 पुलिस केस दर्ज हो चुके हैं.
विपक्ष की आवाज दबाने की कोशिश
राजनीतिक तौर पर माना जा रहा है कि विपक्ष के नेताओं को पुलिस प्रकरणों में फंसाने की सीधी वजह सरकार के खिलाफ उठने वाले हर विरोध की आवाज को दबाने जैसा है. यही वजह है कि विरोध प्रदर्शन और सार्वजनिक कार्यक्रमों को लेकर जिलों में धारा 144 लगाकर ऐसे तमाम राजनीतिक आयोजनों को प्रतिबंधित किया गया है, हालांकि इसके बावजूद जो भी राजनीतिक कार्यक्रम होते हैं उनमें आयोजकों से लेकर कार्यकर्ताओं के खिलाफ सामान्य तौर पर पुलिस केस दर्ज कर लिए जाना सामान्य बात है.
यही स्थिति विपक्षी दलों के राजनीतिक आयोजनों को लेकर भी है जिन्हें आयोजन करने की अनुमति ही नहीं मिलती, इसके उलट सत्ताधारी दल के राजनीतिक कार्यक्रम बिना अनुमति के, कोरोना प्रोटोकॉल और कानून व्यवस्था के उल्लंघन के साथ ही आयोजित हो जाते हैं. ऐसे तमाम मामलों में पुलिस प्रशासन भी मूकदर्शक ही बना रहता है.
कई मामलों में दर्ज हुए गंभीर केस
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ पर उज्जैन में कोविड-19 संबंधी मौतों के आंकड़े को लेकर विवादित बयान देने को लेकर भोपाल में अपराध शाखा में आईपीसी की धारा 186 और आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 की धारा 54 के तहत एफआईआर दर्ज की गई है. इसके अलावा दिग्विजय सिंह और पीसी शर्मा पर भोपाल के अशोका गार्डन थाने में कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करने और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन नहीं करने पर एफआईआर दर्ज हुई है. दरअसल, दिग्विजय सिंह समेत अन्य नेता गोविंदपुरा इंडस्ट्रियल एरिया में एक पार्क की जमीन प्राइवेट संस्था को देने पर विरोध करने पहुंचे थे.
इसके अलावा हाल ही में ग्वालियर में बिना अनुमति प्रदर्शन करने पर कांग्रेस के जिलाध्यक्ष समेत 250 कार्यकर्ताओं के खिलाफ विभिन्न धाराओं में प्रकरण दर्ज किए गए. यही स्थिति इंदौर में है जहां हर छोटे-बड़े विरोध प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं के खिलाफ गंभीर मामलों में प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं. ऐसे प्रकरणों की संख्या अब बढ़कर तकरीबन 5000 से 6000 हो चुकी है.
राजनीतिक एफआईआर दर्ज होने की यह है वजह
केंद्र सरकार की वादाखिलाफी और पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों का विरोध, बढ़ती बेरोजगारी, कोरोना में प्रशासन द्वारा लोगों की मदद नहीं कर पाने पर विपक्ष के नेताओं का मदद करने जाना, सड़कों में गड्ढे और उनकी खराब स्थिति को लेकर सवाल उठाने, जन समस्याओं को उठाने, विरोध जताने, पुलिस की अवैध गतिविधिओं का खुलासा करने जैसे मामलों में विपक्ष के नेताओं पर प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं.
इन मामलों में लगाई गईं गंभीर धाराएं
इंदौर में कांग्रेस प्रवक्ता अमीनुल खान सूरी पर पुलिस कार्रवाई का विरोध करने पर एनएसए के तहत कार्रवाई की गई है. इसके अलावा एक अन्य कांग्रेसी कार्यकर्ता राजू भदौरिया पर जिला बदर की कार्रवाई की गई है. विधायक संजय शुक्ला पर तमाम गंभीर धाराओं के अलावा धारा 188 के तहत कई केस दर्ज हैं. यही स्थिति जीतू पटवारी को लेकर है जिन पर विभिन्न मामलों में 36 से ज्यादा केस दर्ज हो चुके हैं.
इसके अलावा हाल ही में शिवराज के गृह क्षेत्र में पुल बनने के बाद भी उद्घाटन नहीं हो पाने के कारण परेशान जनता की मदद के लिए आवागमन शुरू कराने पर कांग्रेस नेता सज्जन सिंह वर्मा के खिलाफ गंभीर धाराओं में केस दर्ज किया गया है. कांग्रेस नेता केके मिश्रा पर भी विभिन्न बयानों को लेकर गंभीर धाराओं में केस दर्ज किए गए हैं.
प्रदेश में कानून का राज
राज्य के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग का कहना है कि भाजपा की सरकार में प्रदेश में कानून का राज है. हम किसी बेगुनाह पर कार्रवाई नहीं करते अगर कांग्रेस के नेता माफिया, अपराधी हैं तो उन पर जरूर एक्शन लिया जाएगा. प्रदेश सरकार बदले की भावना से कोई कार्रवाई नहीं कर रही है.
कांग्रेस का लीगल पैनल भी सक्रिय
मध्य प्रदेश में ऐसे तमाम बड़े प्रकरणों पर डिफेंस अथवा प्रकरणों की सुनवाई के लिए कांग्रेस कार्यकर्ता और नेताओं की मदद के लिए पार्टी का लीगल पैनल भी सक्रिय है. इसमें जाने माने अधिवक्ता विवेक तंखा, अजय गुप्ता और शशांक शेखर शामिल हैं जो पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं को विधिक राय देते हैं. इसके अलावा जिला स्तर पर कांग्रेस की विधिक सेल भी इनकी मदद करती है. हालांकि सामान्य कार्यकर्ताओं को अथवा अन्य नेताओं को ऐसे मामलों में अपने अपने प्रकरण और अपने अपने केस खुद ही झेलने पड़ते हैं.
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सत्तापक्ष अपने खिलाफ उठने वाली विपक्ष की हर आवाज को दबाने के लिए जिन हथकंड़ों का सहारा ले रहा है वो राजनीति में एक नई तरह की परंपरा की शुरुआत है, जिसका खामियाजा आने वाले दिनों में सरकार को भुगतना पड़ सकता है. प्रदेश में 2023 में विधानसभा का चुनाव होना है, ऐसे में विपक्ष सरकार की इन कार्रवाईयों को लेकर और मुखर हो सकता है.