हैदराबाद : केंद्र सरकार प्रवर्तन निदेशालय यानि ED और केंद्रीय जांच ब्यूरो यानि CBI के निदेशकों के कार्यकाल को बढ़ाने के लिए अध्यादेश लेकर आई. जिससे ईडी और सीबीआई के निदेशकों के कार्यकाल को 5 साल तक बड़ाया जा सकेगा. लेकिन सरकार के इस फैसले पर विपक्ष सवाल उठा रहा है. आखिर क्या है ये फैसला और क्यों उठ रहे हैं सवाल ?
नए अध्यादेश में क्या है ?
केंद्र सरकार की तरफ से रविवार को दो अध्यादेश जारिए किए गए. जिसके मुताबिक सीबीआई और ईडी के निदेशकों के दो साल के अनिवार्य कार्यकाल के बाद तीन साल तक बढ़ाया जा सकेगा. इस अध्यादेश के तहत निदेशकों का कार्यकाल अब 2+1+1+1 के फॉर्मूले पर होगा, इसमें दो साल का अनिवार्य कार्यकाल के बाद एक-एक साल के लिए तीन बार कार्यकाल बढ़ाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए समीक्षा के बाद गठित समितियों से मंजूरी लेनी होगी.
सवाल क्यों उठ रहा है ?
दरअसल ईडी के मौजूदा निदेशक एसके मिश्र 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं. उनकी रिटायरमेंट से 3 दिन पहले सरकार ये अध्यादेश लेकर आ गई. इस अध्यादेश को उनकी रिटायरमेंट से पहले लाने पर भी सवाल उठ रहे हैं. जबकि उन्हें पिछले साल ही सेवा विस्तार यानि एक्सटेंशन दिया गया था. उस वक्त मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के सेवा विस्तार असाधारण मामलों में ही मिलना चाहिए और वो भी छोटी अवधि के लिए मिले.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था ?
इस सेवा विस्तार के खिलाफ एक एनजीओ ने याचिका दायर की थी जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर में मिश्र की नियुक्ति को वैध कहा था लेकिन सरकार से आगे सेवा विस्तार देने से मना किया था. कोर्ट ने कहा था कि दो साल के तय कार्यकाल के बाद सेवा विस्तार विशेष परिस्थितियों में ही दिया जाना चाहिए जैसे कि कोई जांच पूरी करनी हो.
अध्यादेश पर सवाल कौन उठा रहा है ?
विपक्ष इस पूरे मामले को लेकर सरकार पर मनमानी से लेकर तानाशाही रवैये का आरोप लगा रहा है. कांग्रेस मुख्य विपक्षी दल है और सीबीआई निदेशक की नियुक्ति में नेता विपक्ष की भूमिका भी होती है. इसलिये कांग्रेस सरकार की मंशा पर सवाल उठा रही है. कांग्रेस नेता मनीष तिवारी ने कहा है कि केंद्र सरकार का अध्यादेश सुप्रीम कोर्ट के 1998 के जैन हवाला मामले में सुनाए गए फैसले के खिलाफ है. मनीष तिवारी ने कहा कि यह अध्यादेश अधिकारियों को यह संदेश है कि यदि आप उनके (केंद्र) आदेश के मुताबिक काम करते हैं, विरोधियों को परेशान करते हैं तो आपका कार्यकाल साल दर साल ऐसे ही बढ़ाया जाता रहेगा.
टीएमसी नेता डेरेक ओ ब्रायन ने भी इस अध्यादेश को लेकर ट्वीट करते हुए लिखा कि दो अध्यादेश के जरिये ईडी और सीबीआई डायरेक्टर के कार्यकाल को दो साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया है. संसद का शीतकाल सत्र अब से दो हफ्ते में शुरू होने वाला है. आश्वस्त रहें कि विपक्षी दल भारत को निवार्चित तनाशाही में तब्दील होने देने से बचाने के लिए सब कुछ करेगी.
सीबीआई, ईडी के निदेशकों की नियुक्ति का नियम
सीबीआई, ईडी के निदेशकों का कार्यकाल दो साल का होता है. ये व्यवस्था इसलिये की गई ताकि ताकि इस पद पर अधिकारी स्वतंत्र, निष्पक्ष और बिना डरे अपना कानूनी कर्तव्य निभा पाएं और इस पद पर अधिकारी को निरंतरता मिलेगी जिससे वो अपने कार्य को अच्छी तरह से कर पाए और सराकरें अपनी सुविधा के मुताबिक उसे पद से ना हटा सके.
सरकार ने रविवार को केंद्रीय सतर्कता आयोग (संशोधन) अध्यादेश और दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना (संशोधन) अध्यादेश, 2021 जारी किया है. ईडी निदेशक की नियुक्ति के लिए केंद्रीय सतर्कता आयुक्त (CVC), सतर्कता आयुक्तों के अलावा राजस्व विभाग, कार्मिक विभाग और गृह मंत्रालय के सचिवों की एक समिति होती है. वहीं सीबीआई डायरेक्टर की नियुक्ति पर फैसला प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस मिलकर लेते हैं.
अनिवार्य कार्यकाल की व्यवस्था
सीबीआई का गठन साल 1963 में भ्रष्टाचार की रोकथाम के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय के अंतर्गत किया गया था. साल 1997 तक ऐसा नियम था कि सरकार सीबीआई प्रमुख को कभी भी हटा सकती थी. 1997 में विनीत नारायण मामले के बाद सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई प्रमुख पर दबाव बनने की आशंकाओं को खत्म करने के लिए कार्यकाल कम से कम दो साल कर दिया था. इस मामले को विनीत नारायण बनाम भारत सरकार या जैन हवाला केस के नाम से भी जाना जाता है.
एक सवाल ये भी है...
दरअसल अधिकारियों को एक तय समय (दो साल) के लिए अपने पद पर बने रहने का जो मकसद था, सरकार के नए अध्यादेश से अधिकारियों को ताकत मिलेगी या वो कमजोर होंगे ? क्योंकि अध्यादेश के मुताबिक सरकार ईडी, सीबीआई निदेशक को एक-एक साल का तीन बार सेवा स्तर दे सकती है. लेकिन कई एक्सपर्ट मानते हैं कि अगर सरकार अधिकारियों के हाथ मजबूत ही करना चाहती है तो एक कार्यकाल को एक-एक साल सेवा विस्तार की बजाय दो साल के अनिवार्य कार्यकाल को चार या पांच साल का क्यों नहीं कर दिया गया ?
इस फैसले से अधिकारी भी मजबूत होते और विपक्ष को भी बोलने का मौका ना मिलता. क्योंकि अध्यादेश एक-एक साल के एक्सटेंशन को कुल पांच साल का कार्यकाल तो कर सकता है लेकिन उसके लिए एक्सटेंशन को हरी झंडी मिलना भी जरूरी है. अधिकारियों के लिए अनिवार्य कार्यकाल इसलिये किया गया था ताकि सरकारों की मनमानी ना चले लेकिन कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी इस अध्यादेश के जरिये ईडी, सीबीआई के निदेशकों की नियुक्ति के बाद उन्हें सेवा विस्तार देने को मनमानी बता रही है.
ये भी पढ़ें : कोरोना और जीका वायरस के बाद नोरो वायरस का खतरा, जानिये लक्षण और बचाव के तरीके