ETV Bharat / bharat

किसी आतंकी के अंतिम संस्कार में शामिल होना, देश विरोधी गतिविधि नहीं: हाईकोर्ट - कुलगाम देवसर आतंकवादी अंतिम संस्कार

एक याचिका पर फैसला सुनाते हुए जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट (High Court of Jammu-Kashmir and Ladakh) ने कहा कि किसी आतंकी के अंतिम संस्कार में शामिल होना, देश विरोधी गतिविधि नहीं है. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता अनुच्छेद 21 के तहत (Offering funeral prayers of slain militant not anti national activity) गारंटीकृत है.

जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
जम्मू-कश्मीर हाईकोर्ट
author img

By

Published : Sep 9, 2022, 4:05 PM IST

Updated : Sep 9, 2022, 4:47 PM IST

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट (High Court of Jammu-Kashmir and Ladakh) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि 'मारे गए किसी भी आतंकवादी के अंतिम संस्कार में शामिल होने को जनता द्वारा इस देश का दुश्मन नहीं माना जा सकता है. उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत (Offering funeral prayers of slain militant not anti national activity) गारंटीकृत है. न्यायमूर्ति अली मोहम्मद मगरे और न्यायमूर्ति अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग द्वारा दो अलग-अलग याचिकाओं में आरोपियों के पक्ष में जमानत दिए जाने के आदेश को चुनौती देने वाली सरकार की दो अपीलों पर सुनवाई कर रही थी.

याचिकाकर्ताओं की ओर से इस बात को आधार बनाया गया था कि अदालत ने जमानत आवेदनों पर फैसला करते समय इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि प्रतिवादी सहित सभी को अपराध के कमीशन से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूत थे. जम्मू-कश्मीर सरकार के वकील ने आगे तर्क दिया कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 43डी आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने पर रोक लगाती है, जब यह मानने के लिए उचित आधार हों कि ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ आरोप सही हैं.

पढ़ें: NIA ने 8 आरोपियों के खिलाफ दायर की चार्जशीट, आतंकी गतिविधियों में थे लिप्त

बता दें कि कुलगाम के देवसर में एक मारे गए आतंकवादी की अनुपस्थिति में अंतिम संस्कार की नमाज अदा करने के लिए मस्जिद शरीफ के इमाम जावेद अहमद शाह सहित कुछ निवासियों को निचली अदालत द्वारा जमानत दी गई थी और इस आदेश को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति इससे वंचित किया जा सकता है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार की गारंटी है. अभिलेखों के अवलोकन से पता चला कि इससे पहले 2021 में, पुलिस स्टेशन देवसर, कुलगाम में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 के तहत दंडनीय अपराध के लिए प्रतिवादी सहित 10 आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

प्राथमिकी की एक प्रति से पता चला है कि नवंबर 2021 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन का एक स्थानीय आतंकवादी मारा गया था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि एक आतंकवादी के मारे जाने की खबर गांव में फैलने के बाद मुहम्मद यूसुफ गनई नाम के एक व्यक्ति ने ग्रामीणों को मारे गए आतंकवादी के अंतिम संस्कार में उपस्थित होने के लिए उकसाया. आगे आरोप लगाया गया कि मस्जिद शरीफ के इमाम जावेद अहमद शाह ने अंतिम संस्कार की प्रार्थना का नेतृत्व किया और अंतिम संस्कार के दौरान उन्होंने लोगों को 'आजादी तक संघर्ष जारी रखने' के लिए भी उकसाया.

पढ़ें: जम्मू-कश्मीर से 150 कैदी बाहर की जेलों में शिफ्ट, इनमें अलगाववादी और आतंकवादी भी शामिल

सरकार की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट पीठ ने कहा कि मामले की जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ है, जिसके चलते उन्हें जमानत देने से इनकार किया जा सकता है.

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख हाईकोर्ट (High Court of Jammu-Kashmir and Ladakh) ने हाल ही में फैसला सुनाया कि 'मारे गए किसी भी आतंकवादी के अंतिम संस्कार में शामिल होने को जनता द्वारा इस देश का दुश्मन नहीं माना जा सकता है. उन्हें व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत (Offering funeral prayers of slain militant not anti national activity) गारंटीकृत है. न्यायमूर्ति अली मोहम्मद मगरे और न्यायमूर्ति अकरम चौधरी की पीठ विशेष न्यायाधीश अनंतनाग द्वारा दो अलग-अलग याचिकाओं में आरोपियों के पक्ष में जमानत दिए जाने के आदेश को चुनौती देने वाली सरकार की दो अपीलों पर सुनवाई कर रही थी.

याचिकाकर्ताओं की ओर से इस बात को आधार बनाया गया था कि अदालत ने जमानत आवेदनों पर फैसला करते समय इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि प्रतिवादी सहित सभी को अपराध के कमीशन से जोड़ने के लिए पर्याप्त सबूत थे. जम्मू-कश्मीर सरकार के वकील ने आगे तर्क दिया कि गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 43डी आरोपी व्यक्तियों को जमानत देने पर रोक लगाती है, जब यह मानने के लिए उचित आधार हों कि ऐसे व्यक्तियों के खिलाफ आरोप सही हैं.

पढ़ें: NIA ने 8 आरोपियों के खिलाफ दायर की चार्जशीट, आतंकी गतिविधियों में थे लिप्त

बता दें कि कुलगाम के देवसर में एक मारे गए आतंकवादी की अनुपस्थिति में अंतिम संस्कार की नमाज अदा करने के लिए मस्जिद शरीफ के इमाम जावेद अहमद शाह सहित कुछ निवासियों को निचली अदालत द्वारा जमानत दी गई थी और इस आदेश को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि कोई भी व्यक्ति इससे वंचित किया जा सकता है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वतंत्रता के उनके मौलिक अधिकार की गारंटी है. अभिलेखों के अवलोकन से पता चला कि इससे पहले 2021 में, पुलिस स्टेशन देवसर, कुलगाम में गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की धारा 13 के तहत दंडनीय अपराध के लिए प्रतिवादी सहित 10 आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई थी.

प्राथमिकी की एक प्रति से पता चला है कि नवंबर 2021 में सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में हिजबुल मुजाहिदीन का एक स्थानीय आतंकवादी मारा गया था. प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि एक आतंकवादी के मारे जाने की खबर गांव में फैलने के बाद मुहम्मद यूसुफ गनई नाम के एक व्यक्ति ने ग्रामीणों को मारे गए आतंकवादी के अंतिम संस्कार में उपस्थित होने के लिए उकसाया. आगे आरोप लगाया गया कि मस्जिद शरीफ के इमाम जावेद अहमद शाह ने अंतिम संस्कार की प्रार्थना का नेतृत्व किया और अंतिम संस्कार के दौरान उन्होंने लोगों को 'आजादी तक संघर्ष जारी रखने' के लिए भी उकसाया.

पढ़ें: जम्मू-कश्मीर से 150 कैदी बाहर की जेलों में शिफ्ट, इनमें अलगाववादी और आतंकवादी भी शामिल

सरकार की याचिका को खारिज करते हुए हाईकोर्ट पीठ ने कहा कि मामले की जांच के दौरान आरोपियों के खिलाफ कोई आरोप साबित नहीं हुआ है, जिसके चलते उन्हें जमानत देने से इनकार किया जा सकता है.

Last Updated : Sep 9, 2022, 4:47 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.