मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) की नागपुर पीठ ने, कथित तौर पर वॉट्सएप (whatsapp) पर एक आपत्तिजनक संदेश (objectionable message) भेजने के लिए 58 साल के एक व्यक्ति के विरुद्ध दर्ज मामले को खत्म करने से इनकार कर दिया. अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया से पता चला है कि वह संदेश आपत्तिजनक था. अदालत ने अभियोजन की उस दलील का भी संज्ञान लिया कि मामला दर्ज होने के बाद आरोपी ने साक्ष्य मिटाने के इरादे से वॉट्सएप समूह और अपने फोन से उस संदेश को हटा दिया था.
जस्टिस वी एम देशपांडे (Justice V M Deshpande) और जस्टिस अमित बोरकर (Justice Amit Borkar) की खंडपीठ ने छह सितंबर को दिए अपने आदेश में आरोपी जफर अली सय्यद की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उसके विरुद्ध अक्टूबर 2019 में नागपुर की कनहन पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने का अनुरोध किया गया था.
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अदालत के फैसले की प्रति बुधवार को प्राप्त हुई. सय्यद पर धारा 295 ए (जानबूझकर और गलत इरादे से धार्मिक भावनाओं को भड़काना) और 153 ए (धार्मिक आधार पर विभिन्न समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाना) के तहत मामला दर्ज किया गया था. अभियोजन पक्ष के अनुसार, सय्यद एक वॉट्सएप समूह का सदस्य है जो उसके क्षेत्र के लोगों ने दुर्गा पूजा आयोजित करने के उद्देश्य से बनाया था.
आरोपी ने कथित तौर पर उस समूह में देवी दुर्गा के लिए अभद्र और अपमानजनक टिप्पणी की थी. सय्यद की याचिका का विरोध करते हुए अभियोजन ने अदालत से कहा कि आरोपी ने साक्ष्य मिटाने के इरादे से अपने मोबाइल फोन और वॉट्सएप समूह से आपत्तिनक संदेश हटा दिया था.
अदालत ने प्राथमिकी का अवलोकन करने के बाद कहा कि प्राथमिकी का ध्यानपूर्वक अवलोकन करने के बाद हमारा प्रथम दृष्टया मत है कि आवेदनकर्ता (सय्यद) द्वारा भेजा गया संदेश आपत्तिजनक था.
(पीटीआई-भाषा)