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पद्मश्री कहानीकार मंजूर एहतेशाम का कोरोना से निधन

पहली कहानी 'रमज़ान में मौत' से शोहरत हासिल करने वाले कहानीकार पद्मश्री मंजूर एहतेशाम का कोरोना संक्रमण से निधन हो गया. एक निजी अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था.

मंजूर एहतेशाम
मंजूर एहतेशाम
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Published : Apr 26, 2021, 9:53 PM IST

भोपाल : अपनी पहली कहानी 'रमज़ान में मौत' से शोहरत हासिल कर लेने वाले कहानीकार पद्मश्री मंजूर एहतेशाम का यहां एक निजी अस्पताल में कोरोना से निधन हो गया. वह 73 वर्ष के थे.

पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रविवार-सोमवार की रात करीब 12 बजे के आसपास उन्होंने भोपाल के पारूल अस्पताल में अंतिम सांस ली.

अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि वह एक सप्ताह पहले कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे, जिससे उनकी मृत्यु हो गई.

यह अजीब संयोग है कि ढेरों कहानियां रचने वाले मंजूर एहतेशाम की पहली कहानी का नाम 'रमजान में मौत' था और वह इसी पाक महीने में इस दुनिया से विदा हो गए.

मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, 'अपनी पहली कहानी 'रमज़ान की मौत' लिखने वाले पद्मश्री कथाकार मंजूर एहतेशाम के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ. मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और शोकाकुल परिजनों एवं प्रशसकों को इस दुःख को सहने का संबल प्रदान करे.'

साल 2003 में पद्मश्री से हुए थे सम्मानित
तीन अप्रैल 1948 को भोपाल में जन्मे मंजूर एहतेशाम साहित्य जगत की मशहूर शख्सियत रहे हैं. उन्होंने पांच उपन्यास सहित कई कहानियां और नाटक लिखे हैं. उन्हें साल 2003 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था.

इसके अलावा उन्हें भारतीय भाषा परिषद का पुरस्कार, श्रीकांत शर्मा स्मृति सम्मान, नागेश्वरी अवार्ड और पहल सम्मान से नवाजा जा चुका है. पिछले साल दिसंबर में ही उनकी पत्नी सरवर एहतेशाम का निधन हुआ था. रविंद्र भवन में कुछ दिन पहले ही उनकी कहानियों पर आधारित नाट्य समारोह भी आयोजित किया गया था.

1973 में आई थी पहली कहानी
1973 में उनकी पहली कहानी 'रमजान की मौत' प्रकाशित हुई थी. उनका पहला उपन्यास 'कुछ दिन और' 1976 में छपकर आया. सूखा बरगद, दास्ताने लापता, बशरत मंजिल, पहर ढलते उनके प्रमुख उपन्यास हैं. वहीं वे तसबीह, तमाशा सहित अनेक कहानियों के रचयिता रहे.

पढ़ें- घरों में भी मास्क पहनें, माहवारी में भी कोरोना टीका ले सकती हैं महिलाएं : मंत्रालय

उनकी पुस्तक दास्ताने लापता का अमेरिका के एक प्रोफेसर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया था. स्टोरी ऑफ मिसिंग मैन नामक यह किताब पूरी दुनिया में सराही गई थी. मंजूर एहतेशाम हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा के जानकार थे.

भोपाल : अपनी पहली कहानी 'रमज़ान में मौत' से शोहरत हासिल कर लेने वाले कहानीकार पद्मश्री मंजूर एहतेशाम का यहां एक निजी अस्पताल में कोरोना से निधन हो गया. वह 73 वर्ष के थे.

पारिवारिक सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार रविवार-सोमवार की रात करीब 12 बजे के आसपास उन्होंने भोपाल के पारूल अस्पताल में अंतिम सांस ली.

अस्पताल के एक अधिकारी ने बताया कि वह एक सप्ताह पहले कोरोना वायरस की चपेट में आ गए थे, जिससे उनकी मृत्यु हो गई.

यह अजीब संयोग है कि ढेरों कहानियां रचने वाले मंजूर एहतेशाम की पहली कहानी का नाम 'रमजान में मौत' था और वह इसी पाक महीने में इस दुनिया से विदा हो गए.

मध्य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए ट्वीट किया, 'अपनी पहली कहानी 'रमज़ान की मौत' लिखने वाले पद्मश्री कथाकार मंजूर एहतेशाम के निधन का दुःखद समाचार प्राप्त हुआ. मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करे और शोकाकुल परिजनों एवं प्रशसकों को इस दुःख को सहने का संबल प्रदान करे.'

साल 2003 में पद्मश्री से हुए थे सम्मानित
तीन अप्रैल 1948 को भोपाल में जन्मे मंजूर एहतेशाम साहित्य जगत की मशहूर शख्सियत रहे हैं. उन्होंने पांच उपन्यास सहित कई कहानियां और नाटक लिखे हैं. उन्हें साल 2003 में पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया था.

इसके अलावा उन्हें भारतीय भाषा परिषद का पुरस्कार, श्रीकांत शर्मा स्मृति सम्मान, नागेश्वरी अवार्ड और पहल सम्मान से नवाजा जा चुका है. पिछले साल दिसंबर में ही उनकी पत्नी सरवर एहतेशाम का निधन हुआ था. रविंद्र भवन में कुछ दिन पहले ही उनकी कहानियों पर आधारित नाट्य समारोह भी आयोजित किया गया था.

1973 में आई थी पहली कहानी
1973 में उनकी पहली कहानी 'रमजान की मौत' प्रकाशित हुई थी. उनका पहला उपन्यास 'कुछ दिन और' 1976 में छपकर आया. सूखा बरगद, दास्ताने लापता, बशरत मंजिल, पहर ढलते उनके प्रमुख उपन्यास हैं. वहीं वे तसबीह, तमाशा सहित अनेक कहानियों के रचयिता रहे.

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उनकी पुस्तक दास्ताने लापता का अमेरिका के एक प्रोफेसर ने अंग्रेजी में अनुवाद किया था. स्टोरी ऑफ मिसिंग मैन नामक यह किताब पूरी दुनिया में सराही गई थी. मंजूर एहतेशाम हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू भाषा के जानकार थे.

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