नई दिल्ली: केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू (Union Minister of Law and Justice Kiren Rijiju) ने कहा कि भारत की युवा पीढ़ी तक सही जानकारी पहुंचे, इसलिए इतिहास में सुधार महत्वपूर्ण है. केंद्रीय मंत्री दिल्ली विश्वविद्यालय के उत्तर-पूर्वी छात्रों और यूथ यूनाइटेड फॉर विजन एंड एक्शन (YUVA) के छात्रों के समूह द्वारा दिल्ली विश्वविद्यालय में आयोजित एक कार्यक्रम 'अनसंग फ्रीडम फाइटर्स ऑफ नॉर्थ ईस्ट इंडिया' को संबोधित करते हुये यह बातें कहीं.
उन्होंने कहा कि जब हम सही बातें कहना चाहते हैं और भारतीय इतिहास में सच्चाई का उल्लेख करने की कोशिश करते हैं तो कुछ लोग आहत होते हैं. वे कहते हैं कि आप इतिहास को फिर से लिख रहे हैं. जबकि सवाल इतिहास को फिर से लिखने का नहीं बल्कि इतिहास को सुधारने का है. सवाल उन लोगों की जगह और स्थिति के बारे में है जो योग्य हैं. यह बहस कि इतिहास को फिर से लिखा जा रहा है, व्यर्थ है. सवाल यह है कि हमें सच्चा और वास्तविक इतिहास सीखना चाहिए. हम जानते हैं कि हम क्या पढ़ते हैं और हम जो देखते हैं उसे समझते हैं.
पाठ्यक्रम बदलाव पर राजनीति: केंद्रीय मंत्री का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब सीबीएसई पाठ्यक्रम में किए गए बदलावों से राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. एनसीईआरटी की किताबों के कुछ हिस्से जैसे लोकतंत्र और विविधता पर अध्याय, मुगल दरबार और फैज अहमद फैज की कविताएं आदि को एनसीईआरटी की सिफारिशों के अनुसार युक्तिकरण प्रक्रिया के हिस्से के रूप में कक्षा 10,11 और 12 के पाठ्यक्रम से हटा दिया गया है. पाठ्यक्रम में बदलावों को लेकर राहुल गांधी और यहां तक कि भाजपा के सहयोगी जदयू जैसे विपक्षी नेताओं की कड़ी प्रतिक्रिया दी है. बिहार के शिक्षा मंत्री ने कहा कि यह परिवर्तन अवांछनीय है. कुछ शिक्षाविदों और इतिहासकारों ने भी सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर किया और सरकार पर इतिहास पर बुलडोजर चलाने का आरोप लगाया.
मंत्री ने दिये कई उदाहरण: केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने पाठ्यक्रम में किए गए परिवर्तनों पर हाल के विवाद के बारे में उल्लेख नहीं किया. लेकिन इतिहास के कुछ महत्वपूर्ण हिस्से, विशेष रूप से फ्रीडम स्ट्रगल से संबंधित गायब होने पर बात की. कहा कि मैं प्राचीन या मध्यकालीन इतिहास के बारे में नहीं लेकिन आधुनिक इतिहास के बारे में बात करता हूं. आधुनिक भारत और विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम का इतिहास हमें केवल सीमित ज्ञान देता है. हमारे इतिहास के छात्र किसी और का इतिहास सीख रहे हैं. यह कैसे संभव है कि हमारे छात्र उत्तर-पूर्वी राज्यों के बारे में नहीं जानते हैं लेकिन वे यूरोप और लंदन के बारे में सब कुछ जानते हैं. वे उस पर गर्व महसूस करते हैं. जब वे शेक्सपियर और लिंकन के बारे में पढ़ते हैं तो उन्हें गर्व महसूस होता है लेकिन कालिदास के बारे में नहीं! यहीं पर उन्होंने युवा पीढ़ी की मानसिकता को बरगलाया है.
भारतीय भाषाओं का हो सम्मान: मंत्री ने छात्रों, शिक्षाविदों और आरएसएस पदाधिकारियों की सभा को संबोधित करते हुए सीखने और अनुकूलन की आवश्यकता पर जोर दिया, जो स्वदेशी है. उन्होंने युवाओं से स्वदेशी उत्पादों और भारतीय भाषाओं का उपयोग करके भारतीय स्थानों पर जाने में गर्व महसूस करने का भी अनुरोध किया. कहा कि मैंने यह कई सालों से देखा है कि जब हम अपनी स्वदेशी चीजों की बात करते हैं तो हम पिछड़े बन जाते हैं. कुछ अधिवक्ताओं को बहुत अधिक भुगतान किया जाता है लेकिन कुछ ऐसे अधिवक्ता हैं जो योग्य होते हैं, उनके पास अच्छा ज्ञान होता है लेकिन उन्हें बड़े मामले नहीं मिलते क्योंकि वे अंग्रेजी नहीं बोलते हैं. अन्य भारतीय भाषाओं में अच्छा बोलने वालों का भी सम्मान क्यों नहीं किया जाता?
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बदलाव समय की मांग है: उन्होंने कहा कि अपनी पहचान और अस्तित्व के साथ रहने में कुछ भी गलत नहीं है. लेकिन हमारे यहां उसका सम्मान कम है. यह धारणा हमारे द्वारा पढ़ी गई पुस्तकों के कारण आई है. इसलिए उनमें बदलाव लाने की जरूरत है. जो हमें दिया गया है अगर हम उसे पढ़ते रहेंगे तो यह हमारे साथ न्याय नहीं होगा. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि उत्तर-पूर्वी राज्यों के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देने के लिए दिल्ली विश्वविद्यालय में कार्यक्रम आजादी का अमृत महोत्सव के हिस्से के रूप में आयोजित किया गया है.