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सुप्रीम कोर्ट का अफसरों को निर्देश, हिंदू जनजागृति समिति के आयोजनों में कोई नफरत भरा भाषण नहीं हो - Supreme Court

Supreme Court : हिंदू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में संभावित नफरत भरे भाषणों पर चिंताएं उठाए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने यवतमाल, महाराष्ट्र और रायपुर, छत्तीसगढ़ के जिला मजिस्ट्रेटों को उचित कदम उठाने का निर्देश दिया है. पढ़िए पूरी खबर... Hindu Janajagruti Samiti

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सुप्रीम कोर्ट
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jan 17, 2024, 3:24 PM IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नफरत फैलाने वाले भाषण की आशंका के आधार पर हिंदू जनजागृति समिति को अपने आयोजनों को आगे बढ़ाने से छूट देने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने महाराष्ट्र के यवतमाल और छत्तीसगढ़ के रायपुर के जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आयोजनों के दौरान कोई नफरत भरा भाषण न दिया जाए. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष कहा कि अधिकारियों ने कार्रवाई नहीं की है और उन्होंने सिर्फ एफआईआर दर्ज की है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि वे ऐसा (घटनाओं) होने की अनुमति क्यों देते हैं? न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने नफरत फैलाने वाले भाषण की घटनाओं से निपटने के लिए पहले ही निर्देश जारी कर दिए हैं और सीसीटीवी कैमरों के संबंध में भी निर्देश जारी किए गए हैं. सिब्बल की इस दलील पर गौर करते हुए कि संगठन 18 और 19 जनवरी को जुलूस निकालने का इरादा रखता है, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, 'उन्हें जाने दीजिए, हम इसे रोकने नहीं जा रहे हैं लेकिन नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा भड़काने के मामले में, वे (अधिकारी) कार्रवाई करेंगे.' जबकि सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि अधिकारी आयोजकों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेंगे. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, 'यह पूर्व-खाली नहीं हो सकता...' इस पर सिब्बल ने 2023 में दर्ज की गई एफआईआर का हवाला दिया.

हालांकि, पीठ ने कहा कि अगर वे दोबारा ऐसा करते हैं तो संबंधित सरकार इस पर कार्रवाई करेगी और अधिकारी कार्रवाई करेंगे. सिब्बल ने आयोजन करने की अनुमति को चुनौती दी. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि वह पक्ष कहां है जिसके खिलाफ सिब्बल निर्देश चाहते हैं और पूछा कि क्या संगठन अदालत के समक्ष आवेदन में पक्ष है? 'आप हमसे जो आदेश मांग रहे हैं, यदि हम उसे पारित कर दें.' यह किसी को प्रभावित करेगा...आपकी प्रार्थना है कि कोई अनुमति न दें'. न्यायमूर्ति दत्ता ने प्रभावित पक्ष को सुने बिना अनुमति वापस लेने पर सिब्बल से सवाल करते हुए कहा, और कहा कि यह प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

सिब्बल ने कहा, 'लेकिन हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों के बारे में क्या...' दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, 'जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं उन्हें पार्टी के रूप में शामिल नहीं किया गया है. फिर भी, किए गए दावों के मद्देनजर अधिकारियों को इस तथ्य से सावधान रहने की आवश्यकता होगी कि हिंसा या घृणास्पद भाषण को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. पीठ ने यवतमाल और रायपुर के जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों को आरोपों पर ध्यान देने और सलाह और आवश्यकतानुसार उचित कदम उठाने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि यदि आवश्यक हुआ और उचित समझा गया तो पुलिस रिकॉर्डिंग सुविधाओं के साथ सीसीटीवी कैमरे स्थापित करेगी ताकि कोई भी घटना होने पर अपराधियों की पहचान की जा सके. सिब्बल ने कहा कि ऐसा बार-बार होता है और जब तक कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा यह खत्म नहीं होगा.

सुनवाई समाप्त करते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने सिब्बल से कहा, 'देखिए हमने आदेश पारित किए हैं और आखिरी अवसर पर जब हमने एक मामले में आदेश पारित किया, तो इसका प्रभाव पड़ा. और, यह रुक गया और हम उम्मीद करते हैं कि यह रुकेगा...यह सकारात्मक हिस्सा था.' शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को पता चला है कि उक्त हिंदू जनजागृति समिति 18 जनवरी 2024 को महाराष्ट्र के यवतमाल में तीन कार्यक्रम आयोजित कर रही है. याचिकाकर्ताओं को यह भी पता चला है कि टी.राजा सिंह (भाजपा नेता), जो बार-बार अपराधी रहे हैं और मुसलमानों की हत्या और उनके खिलाफ हिंसा के लिए नफरत भरे भाषण देते रहे हैं, उन्हें भी हिरासत में लिया जा रहा है. साथ ही याचिका में कहा गया है कि 19 से 25 जनवरी तक छत्तीसगढ़ में रैलियों की एक श्रृंखला आयोजित की जाएगी.

याचिका में कहा गया है कि बार-बार अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, अधिकारी उन्हें आगे की रैलियां आयोजित करने से रोकने में भी विफल रहते हैं. साथ ही कहा गया कि शीर्ष अदालत द्वारा इस आशय के विशिष्ट निर्देश जारी किए जाने के बावजूद दण्ड से मुक्ति के साथ नफरत भरे भाषण देते हैं. दूसरी ओर, कई रैलियों में पुलिस कर्मियों को केवल तमाशबीन के रूप में देखा जाता है. ऐसी घटनाएं जो समुदायों को बदनाम करती हैं और खुले तौर पर उनके बहिष्कार और उनके खिलाफ हिंसा का आह्वान करती हैं, आईपीसी के तहत केवल अपराध नहीं हैं और उनके प्रभाव के संदर्भ में केवल उन क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं जहां वे आयोजित किए जाते हैं, बल्कि अनिवार्य रूप से अंततः सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा को जन्म देंगे.

याचिकाकर्ता ने यह निर्देश देने की मांग की कि 18 जनवरी को यवतमाल में हिंदू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों की अनुमति संबंधित राज्य अधिकारियों द्वारा अस्वीकार कर दी जाए या यदि अनुमति पहले ही दी जा चुकी है तो उसे वापस ले लिया जाए. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में 19 से 25 जनवरी तक टी. राजा सिंह द्वारा नियोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की अनुमति को संबंधित राज्य अधिकारियों द्वारा अस्वीकार करने का निर्देश दिया जाए या यदि अनुमति पहले ही दी जा चुकी है तो उसे वापस ले लिया जाए.

ये भी पढ़ें - शिंदे गुट को 'असली शिवसेना' घोषित करने के स्पीकर के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को नफरत फैलाने वाले भाषण की आशंका के आधार पर हिंदू जनजागृति समिति को अपने आयोजनों को आगे बढ़ाने से छूट देने से इनकार कर दिया है. हालांकि, कोर्ट ने महाराष्ट्र के यवतमाल और छत्तीसगढ़ के रायपुर के जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस से यह सुनिश्चित करने को कहा कि आयोजनों के दौरान कोई नफरत भरा भाषण न दिया जाए. याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ के समक्ष कहा कि अधिकारियों ने कार्रवाई नहीं की है और उन्होंने सिर्फ एफआईआर दर्ज की है.

उन्होंने जोर देकर कहा कि वे ऐसा (घटनाओं) होने की अनुमति क्यों देते हैं? न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि शीर्ष अदालत ने नफरत फैलाने वाले भाषण की घटनाओं से निपटने के लिए पहले ही निर्देश जारी कर दिए हैं और सीसीटीवी कैमरों के संबंध में भी निर्देश जारी किए गए हैं. सिब्बल की इस दलील पर गौर करते हुए कि संगठन 18 और 19 जनवरी को जुलूस निकालने का इरादा रखता है, न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, 'उन्हें जाने दीजिए, हम इसे रोकने नहीं जा रहे हैं लेकिन नफरत फैलाने वाले भाषण और हिंसा भड़काने के मामले में, वे (अधिकारी) कार्रवाई करेंगे.' जबकि सिब्बल ने इस बात पर जोर दिया कि अधिकारी आयोजकों के खिलाफ क्या कार्रवाई करेंगे. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा, 'यह पूर्व-खाली नहीं हो सकता...' इस पर सिब्बल ने 2023 में दर्ज की गई एफआईआर का हवाला दिया.

हालांकि, पीठ ने कहा कि अगर वे दोबारा ऐसा करते हैं तो संबंधित सरकार इस पर कार्रवाई करेगी और अधिकारी कार्रवाई करेंगे. सिब्बल ने आयोजन करने की अनुमति को चुनौती दी. न्यायमूर्ति दत्ता ने कहा कि वह पक्ष कहां है जिसके खिलाफ सिब्बल निर्देश चाहते हैं और पूछा कि क्या संगठन अदालत के समक्ष आवेदन में पक्ष है? 'आप हमसे जो आदेश मांग रहे हैं, यदि हम उसे पारित कर दें.' यह किसी को प्रभावित करेगा...आपकी प्रार्थना है कि कोई अनुमति न दें'. न्यायमूर्ति दत्ता ने प्रभावित पक्ष को सुने बिना अनुमति वापस लेने पर सिब्बल से सवाल करते हुए कहा, और कहा कि यह प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

सिब्बल ने कहा, 'लेकिन हमारे संविधान के मूल सिद्धांतों के बारे में क्या...' दलीलें सुनने के बाद पीठ ने कहा, 'जिन व्यक्तियों के खिलाफ आरोप लगाए गए हैं उन्हें पार्टी के रूप में शामिल नहीं किया गया है. फिर भी, किए गए दावों के मद्देनजर अधिकारियों को इस तथ्य से सावधान रहने की आवश्यकता होगी कि हिंसा या घृणास्पद भाषण को बढ़ावा देने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. पीठ ने यवतमाल और रायपुर के जिला मजिस्ट्रेटों और पुलिस अधीक्षकों को आरोपों पर ध्यान देने और सलाह और आवश्यकतानुसार उचित कदम उठाने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि यदि आवश्यक हुआ और उचित समझा गया तो पुलिस रिकॉर्डिंग सुविधाओं के साथ सीसीटीवी कैमरे स्थापित करेगी ताकि कोई भी घटना होने पर अपराधियों की पहचान की जा सके. सिब्बल ने कहा कि ऐसा बार-बार होता है और जब तक कोर्ट हस्तक्षेप नहीं करेगा यह खत्म नहीं होगा.

सुनवाई समाप्त करते हुए न्यायमूर्ति खन्ना ने सिब्बल से कहा, 'देखिए हमने आदेश पारित किए हैं और आखिरी अवसर पर जब हमने एक मामले में आदेश पारित किया, तो इसका प्रभाव पड़ा. और, यह रुक गया और हम उम्मीद करते हैं कि यह रुकेगा...यह सकारात्मक हिस्सा था.' शाहीन अब्दुल्ला द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि याचिकाकर्ता को पता चला है कि उक्त हिंदू जनजागृति समिति 18 जनवरी 2024 को महाराष्ट्र के यवतमाल में तीन कार्यक्रम आयोजित कर रही है. याचिकाकर्ताओं को यह भी पता चला है कि टी.राजा सिंह (भाजपा नेता), जो बार-बार अपराधी रहे हैं और मुसलमानों की हत्या और उनके खिलाफ हिंसा के लिए नफरत भरे भाषण देते रहे हैं, उन्हें भी हिरासत में लिया जा रहा है. साथ ही याचिका में कहा गया है कि 19 से 25 जनवरी तक छत्तीसगढ़ में रैलियों की एक श्रृंखला आयोजित की जाएगी.

याचिका में कहा गया है कि बार-बार अपराध करने वालों के खिलाफ कार्रवाई करना तो दूर, अधिकारी उन्हें आगे की रैलियां आयोजित करने से रोकने में भी विफल रहते हैं. साथ ही कहा गया कि शीर्ष अदालत द्वारा इस आशय के विशिष्ट निर्देश जारी किए जाने के बावजूद दण्ड से मुक्ति के साथ नफरत भरे भाषण देते हैं. दूसरी ओर, कई रैलियों में पुलिस कर्मियों को केवल तमाशबीन के रूप में देखा जाता है. ऐसी घटनाएं जो समुदायों को बदनाम करती हैं और खुले तौर पर उनके बहिष्कार और उनके खिलाफ हिंसा का आह्वान करती हैं, आईपीसी के तहत केवल अपराध नहीं हैं और उनके प्रभाव के संदर्भ में केवल उन क्षेत्रों तक सीमित नहीं हैं जहां वे आयोजित किए जाते हैं, बल्कि अनिवार्य रूप से अंततः सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा को जन्म देंगे.

याचिकाकर्ता ने यह निर्देश देने की मांग की कि 18 जनवरी को यवतमाल में हिंदू जनजागृति समिति द्वारा आयोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों की अनुमति संबंधित राज्य अधिकारियों द्वारा अस्वीकार कर दी जाए या यदि अनुमति पहले ही दी जा चुकी है तो उसे वापस ले लिया जाए. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि छत्तीसगढ़ में 19 से 25 जनवरी तक टी. राजा सिंह द्वारा नियोजित सार्वजनिक कार्यक्रमों को आयोजित करने की अनुमति को संबंधित राज्य अधिकारियों द्वारा अस्वीकार करने का निर्देश दिया जाए या यदि अनुमति पहले ही दी जा चुकी है तो उसे वापस ले लिया जाए.

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