नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने अपने 20 अक्टूबर, 2020 के फैसले की समीक्षा करने की याचिका खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने शाहीन बाग के विरोध पर अपने फैसले में कहा था कि प्रदर्शन के लिए सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है.
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने फैसला सुनाया कि इसके पहले के फैसले में कोई त्रुटि नहीं थी और वह इस पर कोई पुनर्विचार नहीं करेंगें.
हमने पहले के न्यायिक फैसले पर विचार किया है और अपनी राय दी है कि संविधान विरोध प्रदर्शन और असंतोष व्यक्त करने के अधिकार देता है, लेकिन इससे किसी को परेशानी न हो.
कोर्ट ने कहा कि विरोध का अधिकार कभी भी और कहीं भी नहीं हो सकता. वहां कुछ सहज विरोध हो सकता है, लेकिन लंबे समय तक असंतोष या विरोध के मामले में, सार्वजनिक स्थान पर दूसरों के अधिकार को प्रभावित करने का सिलसिला जारी नहीं रखा जा सकता है.
बता दें कि कोर्ट का यह फैसला 12 प्रदर्शनकारियों द्वारा दायर याचिका के जवाब में आया है, जिन्होंने दावा किया था कि अदालत के अक्टूबर के आदेश का प्रतिकूल प्रभाव हो सकता है, जिससे पुलिस को कमजोर प्रदर्शनकारियों पर अत्याचार करने की शक्ति मिलती है.
गौरतलब है कि पिछले साल विभिन्न जनहित याचिकाएं शीर्ष अदालत में दायर की गईं, जिनमें शाहीन बाग में नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के खिलाफ आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारियों को हटाने की मांग की गई थी. क्योंकि प्रदर्शन के कारण यातायात बाधित हो रहा था और लोगों को अधिक घंटे और दूरियों के लिए यात्रा करनी पड़ रही थी.
कोर्ट ने मध्यस्थता विधि की कोशिश की थी, लेकिन उस पर काम नहीं किया गया था और बाद में अदालत ने कहा कि सार्वजनिक स्थानों पर अनिश्चित काल तक कब्जा नहीं किया जा सकता है.