नई दिल्ली : समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) के कार्यान्वयन पर अभी कोई निर्णय नहीं लिया गया है क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है. यह जानकारी केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू (Union Law minister Kiren Rijju) ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए सरकार द्वारा विधेयक लाने के प्रस्ताव के सवाल के जवाब में शुक्रवार को दी. वहीं कानून मंत्री ने इस बारे में बताया कि लिंग के अलावा धर्म तटस्थ समान कानूनों को सुनिश्चित करने के लिए कानूनी हस्तक्षेप है और राज्यों को भी उन पर कानून बनाने का अधिकार है.
उन्होंने बताया कि 21वें विधि आयोग ने समान नागरिक संहिता की जांच की थी और आगे की चर्चाओं को आमंत्रित करने के लिए अपने पोर्टल पर 'परिवार कानून का सुधार' अपलोड किया था. साथ ही उन्होंने कहा कि समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 में विवाह, तलाक गोद लेने, विरासत आदि पर समान व्यक्तिगत कानूनों की मांग है. वर्तमान में विभिन्न समुदायों के लिए विभिन्न कानून हैं जैसे हिंदू विवाह अधिनियम, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, पारसी विवाह और तलाक अधिनियम आदि. इसके अलावा निर्देशक सिद्धांत लागू करने योग्य नहीं हैं लेकिन उन्हें सही समय पर कानून बनाने के इरादे से संविधान में शामिल किया गया था.
हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने विभिन्न मामलों में यूसीसी के मुद्दे पर विचार किया है. वहीं पहली बार 1985 में शाह बानो मामले इसकी आवश्यकता पर जोर दिया गया था. इस संबंध में कोर्ट ने कहा था कि कोई भी समुदाय इस मुद्दे पर अनावश्यक रियायतें देकर मदद करने की संभावना नहीं रखता है. साथ ही यह राज्य के पास समान नागरिक संहिता हासिल करने का कर्तव्य है और उसके पास ऐसा करने की विधायी क्षमता है. फिर जब 2015 में एक ईसाई जोड़ा तलाक के मामले में सुप्रीम कोर्ट गया, तब भी कोर्ट ने देखा कि पूरी इस पर पूरी तरह से भ्रम था.
शीर्ष अदालत ने बार-बार समान नागरिक संहिता को लागू करने के प्रति अपना झुकाव जरूर जताया लेकिन इस बारे में कोई निर्देश नहीं दिया क्योंकि उसने इसे नीति बनाने का मामला माना. सुप्रीम कोर्ट में समान नागरिक संहिता से जुड़ी कम से कम पांच जनहित याचिकाएं हैं इनमें कुछ जनहित याचिकाओं में केंद्र की प्रतिक्रिया मांगी है.
ये भी पढ़ें - लोकसभा ने 'भारतीय अंटार्कटिक विधेयक, 2022' को मंजूरी दी