नई दिल्ली: जैसा कि भाजपा शासित केंद्र सरकार ने संसद में महिला आरक्षण विधेयक पेश किया है, अनुभवी महिला नेता और नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की महासचिव एनी राजा ने 2024 के आम चुनाव से पहले विधेयक लाने के पीछे सरकार की मंशा पूछी है. एनी राजा ने सवाल किया कि सरकार 2014 से सत्ता में थी, अब क्यों? सरकार पहले भी बिल ला सकती थी.
उन्होंने कहा कि आगामी लोकसभा चुनाव के कारण ही सरकार अब यह विधेयक ला रही है. उन्होंने दावा किया कि जब भी कोई चुनाव होता है, चाहे वह राज्य विधानसभा चुनाव हो या अन्य चुनाव, भाजपा सरकार हमेशा समर्थन हासिल करने के लिए इस तरह की गतिविधियां करने की कोशिश करती है.
हालांकि, महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पेश करने और पारित कराने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत करते हुए एनी राजा ने कहा कि सरकार को उच्चतम न्यायालय के समक्ष इस बेहद जरूरी विधेयक पर अपना रुख भी स्पष्ट करना होगा. एनी राजा ने लोकसभा में विधेयक को फिर से पेश करने के लिए 2021 में सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की.
विधेयक, जिसे संविधान (एक सौ आठवां संशोधन) विधेयक, 2008 के रूप में भी जाना जाता है, इसका उद्देश्य लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण पेश करना है. एनी राजा ने कहा कि सरकार को जनहित याचिका पर अदालत में अपना जवाब देने की जरूरत है. हालांकि यह बिल 2010 में राज्यसभा में पारित हो गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा के विघटन के बाद यह ख़त्म हो गया.
गौरतलब है कि एक दशक से अधिक समय बीत जाने के बावजूद यह विधेयक लोकसभा में पेश नहीं किया गया. विधेयक में एससी, एसटी और ओबीसी के लिए आरक्षण को लेकर विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच मतभेद एक प्रमुख मुद्दा था, जो लोकसभा में इसे पेश करने में बाधा बन रहा था. जद (यू), सपा समेत कई राजनीतिक दल विधेयक में एससी, एसटी और ओबीसी महिलाओं के लिए आरक्षण की मांग कर रहे थे.
एनी राजा ने कहा कि संशोधन के अनुसार एससी और एसटी के लिए आरक्षण पहले से ही मौजूद है. हालांकि, सरकार के लिए यह एक मुद्दा है कि वह ओबीसी के लिए आरक्षण कर सकती है या नहीं. विधेयक में 33 प्रतिशत कोटा के भीतर एससी, एसटी और एंग्लो इंडियंस के लिए उप-आरक्षण का प्रस्ताव है. एनी राजा ने कहा कि ओबीसी समुदाय को आरक्षण देने के लिए सरकार को संविधान में संशोधन करने की जरूरत है.
यह 1989 की बात है जब तत्कालीन प्रधान मंत्री राजीव गांधी द्वारा पेश किए जाने के बाद यह विधेयक राज्यसभा में पारित होने में विफल रहा. 1996 में, तत्कालीन प्रधान मंत्री देवेगौडा संयुक्त मोर्चा सरकार ने 81वां संविधान संशोधन विधेयक पेश किया, लेकिन यह लोकसभा में मंजूरी पाने में विफल रहा. 1998 में अटल बिहारी वाजपेयी की तत्कालीन सरकार ने विधेयक पेश किया, लेकिन यह फिर विफल हो गया.
इस विधेयक को आखिरी बार यूपीए शासन के दौरान 2010 में पेश किया गया था. यह बिल राज्यसभा से पारित हो गया. हालांकि यह विधेयक लोकसभा में पेश नहीं होने के कारण विफल हो गया. विडंबना यह है कि 1996 में बिल की जांच करने के लिए गीता मुखर्जी के नेतृत्व में एक संयुक्त संसदीय समिति भी अपनी अंतिम रिपोर्ट में आम सहमति तक पहुंचने में विफल रही.