नई दिल्ली : काेराेना महामारी की वजह से अपनाें काे खाेने वाले बच्चाें की सुरक्षा काे लेकर राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) आगे आया है.
देखा जा रहा है कि सोशल मीडिया पर ऐसे बच्चाें काे गोद लेने या इनके लिए दान करने की अपील की जा रही है. जानकाराें की मानें, ताे यह कानून का पूर्णरूप से उल्लंघन है.
ऐसे में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिव को पत्र लिखकर किशोर न्याय अधिनियम 2015 के तहत इन बच्चाें की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.
ईटीवी भारत से बात करते हुए, एनसीपीसीआर के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो ने कहा, हमने सभी जिला बाल संरक्षण इकाइयों और बाल कल्याण समितियों के मुख्य सचिवों काे इस बाबत पत्र लिखकर सतर्क किया है.
उन्हाेंने कहा कि हम एनसीपीसीआर के माध्यम से जिला बाल संरक्षण इकाई के लगातार संपर्क में हैं और स्थिति पर लगातार नजर बनाए हुए हैं. एनसीपीसीआर काे लगातार इस बाबत शिकायतें मिल रही हैं.
कानून के मुताबिक, जाे बच्चा अपने माता-पिता या दाेनाें में एक काे खो देता है, ताे उसे बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) के समक्ष पेश किया जाना अनिवार्य है. फिर सीडब्ल्यूसी इसकी पूरी जांच करता है. इसके बाद एक साेशल इंवेस्टीगेशन रिपाेर्ट तैयार की जाती है, जिसमें बच्चे से जुड़ी सारी जानकारियां उपलब्ध हाेती हैं.
यह रिपाेर्ट चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर द्वारा तैयार किया जाता है. रिपाेर्ट के आधार पर यह तय किया जाता है कि बच्चा किसके साथ रहेगा.
इससे पहले महिला और बाल विकास मंत्रालय ने भी उन बच्चों के पुनर्वास के लिए प्रक्रिया निर्धारित की है, जिन्होंने अपने माता-पिता को COVID-19 महामारी की वजह से खो दिया है.
मंत्रालय ने आम जनता को ऐसी कार्रवाई को प्रोत्साहित करने या उसमें शामिल होने से परहेज करने की सलाह दी जो कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन है.
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इस बीच मंगलवार को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने काेराेना मृतक के परिवारों के लिए 50,000 रुपये का मुआवजा और मुफ्त शिक्षा देने की बात कही है. साथ ही काेराेना के कारण अनाथ हुए बच्चाें काे 25 साल की उम्र तक 2,500 रुपये मासिक दिए जाने की घोषणा की गई है.