जयपुर. वर्क प्लेस पर महिला कर्मचारियों के साथ होने वाली यौन हिंसा एक बड़ा मुद्दा बन गया है. कड़े कानून होने के बावजूद महिलाओं को अभी भी वर्कप्लेस पर मानसिक और शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है. ये बात शनिवार को अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ के आह्वान पर शुरू हुए दो दिवसीय राष्ट्रीय महिला सम्मेलन में कही गई. जयपुर के दुर्गापुरा स्थित स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर मेनेजमेंट परिसर में हुए इस सम्मेलन में 23 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से चुनी तीन सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया. सम्मेलन में महिला कर्मचारियों के कई मुद्दों पर खुल कर चर्चा हुई.
कानून के बावजूद वर्क प्लेस पर हिंसा
राष्ट्रीय महिला सम्मेलन सदस्य निधि कुमारी ने बताया कि देश में कठोर कानून होने के बावजूद आज भी वर्कप्लेस पर महिलाओं के साथ यौन हिंसा की घटनाएं हो रहीं हैं. उससे भी बड़ी बात यह है कि इन घटनाओं के दोषियों को सजा नहीं मिल पा रही है. आज भी देश भर में महिलाएं वर्कप्लेस पर अपने आप को असुरक्षित महसूस करती हैं. महिलाओं को आज भी समानता का दर्जा नहीं दिया जा रहा है. यौन हिंसा के साथ मानसिक तनाव भी महिला कर्मचारियों को झेलना पड़ता है.
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महिला लीडरशिप स्वीकार नहीं
सम्मेलन में हरियाणा से आई सविता देवी बताती हैं कि महिला लीडरशिप को आज भी स्वीकार नहीं किया जा रहा है. जिन कामों पर एक वक्त पुरुषों का ही एकाधिकार माना जाता था, आज उस क्षेत्र में भी महिलाएं आगे बढ़कर काम कर रही है. उन्होंने कहा कि हरियाणा में जहां कई तरह की बंदिशें हैं वहां भी आज रोडवेज बस में कई महिला चालक मौजूद हैं. इसके बावजूद लीडरशिप को लेकर महिलाओं को पीछे धकेला जा रहा है. जब तक महिलाएं संगठनों का प्रतिनिधित्व नहीं करेंगी तब तक उनके अधिकारों की बात कौन करेगा. इसलिए इस सम्मेलन के जरिए महिलाओं को आगे आने के लिए प्रेरित किया जा रहा है.
बिहार से आईं नीलम कुमारी ने कहा कि महिला समानता का मुद्दा पिछड़ गया है. समाज की ओर से महिला और पुरुषों की परम्परागत छवि गढ़ी गई है. इसमें महिलाओं को संवेदनशील, त्यागी, सेवा करने वाली बता कर उनकी शक्तियों को छीना गया है. दूसरी तरफ पूरुषों की छवि मजबूत, प्रभुत्वशाली, कम संवेदनशील, शासन करने वाला, मुखिया के रूप में बनाई गई है. उन्होंने कहा कि ये दोनों ही छवियां झूठी हैं. पुरुषों को भी परम्परागत छवियों को तोड़ना होगा. जब तक समानता की बात नहीं होगी, महिलाओं का उत्थान नहीं होगा.
इन मुद्दों पर हुई चर्चा
महिला सम्मेलन में केन्द्र सरकार की अंतरराष्ट्रीय वित्तीय पूंजी की ओर से संचालित नव उदारीकरण की नीतियों, कर्मचारियों की पुरानी पेंशन बहाली, ठेका आउटसोर्स कर्मियों की रेगुलराइजेशन, खाली पड़े लाखों पदों को पक्की भर्ती से भरने, आठवें वेतन आयोग का गठन करने, 18 महीने के बकाया डीए का भुगतान करने, ट्रेड यूनियन एवं लोकतांत्रिक अधिकारों पर किए जा रहे हमलों को रोकने, जन सेवाओं के निजीकरण पर रोक लगाने के प्रति घोर उपेक्षापूर्ण रवैये पर विस्तार से चर्चा हुई. इसके साथ ही आगामी दिनों में राष्ट्रीय आंदोलन की रणनीति तैयार करने पर भी मंथन हुआ.