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कहीं चूक न जाए गोल्ड का निशाना, झालमुढ़ी बेचने को मजबूर तीरंदाजी की नेशनल चैंपियन - ममता टुडू

धनबाद की तीरंदाज और नेशनल चैंपियन का खिताब अपने नाम करने वाली ममता टुडू आज मुफलिसी की जिंदगी जीने को मजबूर है. दो वक्त की रोटी पर आफत है. परिवार की स्थिति के चलते ममता आज झालमुढ़ी बेचने को मजबूर है.

national champion of archery mamta
झालमुढ़ी बेचने को मजबूर नेशनल चैंपियन
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Published : Feb 25, 2021, 8:19 AM IST

धनबाद : राहत साहब ने एक शायरी लिखी थी-'कट चुकी है उम्र सारी जिनकी पत्थर तोड़ते..अब तो इन हाथों में कोहिनूर होना चाहिए'. लेकिन कुछ लोग होते हैं जो कम उम्र में ही इतिहास रच देते हैं. लेकिन, ऐसे हाथों में कोहिनूर तो क्या एक अदद नौकरी भी नहीं है. धनबाद की एक बच्ची है जिसका नाम है ममता टुडू. कम उम्र में ही इसने बड़े-बड़े कारनामे कर दिखाए. महज 13 साल की उम्र में अंडर-13 तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीतकर नेशनल चैंपियन का खिताब हासिल कर लिया. ममता को लोग गोल्डन गर्ल के नाम से जानने लगे, लेकिन जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत थी वह आज झालमुढ़ी बेचने को मजबूर है.

देखिये स्पेशल रिपोर्ट

कहीं चूक न जाए गोल्ड जीतने का सपना

धनबाद में संथाल टोला दामोदरपुर पंचायत में रहने वाली ममता टुडू ने बचपन में पिता की तीर-धनुष से ही तीरंदाजी शुरू की. देखते ही देखते उसने इस कला में महारथ हासिल कर ली. हौसले की राह में गरीबी को आड़े नहीं आने दिया. मेहनत करते हुए ममता ने कीर्तिमान रच दिया, 2009 में विजयवाड़ा में हुए नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. तब परिवार का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. इसके बाद ममता रांची में रहकर प्रैक्टिस करने लगी. इसका सपना अब देश के लिए गोल्ड जीतने का था, लेकिन जब लॉकडाउन लगा और ममता घर लौटी तो देखा पूरे परिवार पर रोटी की आफत है. परिवार के दर्द ने ममता को तोड़ दिया. इसके बाद वह यहीं रहने लगी और झालमुढ़ी बेचकर परिवार की आर्थिक स्थिति में सहयोग करने लगी. मां कहती है कि कोई मदद कर दे तो बेटी का सपना पूरा हो जाएगा. बेटी का सपना मतलब पूरे परिवार का सपना.

पढ़ें: मछली पकड़ने समुद्र गए राहुल, बोले- घोषणापत्र में आपकी मांगों को करूंगा शामिल

माननीयों की मदद से पूरा हो सकता है ममता का सपना

ममता के कोच मोहम्मद शमशाद कहते हैं कि वह बहुत ही होनहार खिलाड़ी है. सरकार अगर ममता को सहयोग करती है तो वह नेशनल लेवल पर खिताब जीत सकती है. ऐसे खिलाड़ियों की मदद के लिए सरकार को आगे आना चाहिए ताकि कोई होनहार खिलाड़ी की दुर्दशा न हो.

धनबाद : राहत साहब ने एक शायरी लिखी थी-'कट चुकी है उम्र सारी जिनकी पत्थर तोड़ते..अब तो इन हाथों में कोहिनूर होना चाहिए'. लेकिन कुछ लोग होते हैं जो कम उम्र में ही इतिहास रच देते हैं. लेकिन, ऐसे हाथों में कोहिनूर तो क्या एक अदद नौकरी भी नहीं है. धनबाद की एक बच्ची है जिसका नाम है ममता टुडू. कम उम्र में ही इसने बड़े-बड़े कारनामे कर दिखाए. महज 13 साल की उम्र में अंडर-13 तीरंदाजी में गोल्ड मेडल जीतकर नेशनल चैंपियन का खिताब हासिल कर लिया. ममता को लोग गोल्डन गर्ल के नाम से जानने लगे, लेकिन जिसे आगे बढ़ाने की जरूरत थी वह आज झालमुढ़ी बेचने को मजबूर है.

देखिये स्पेशल रिपोर्ट

कहीं चूक न जाए गोल्ड जीतने का सपना

धनबाद में संथाल टोला दामोदरपुर पंचायत में रहने वाली ममता टुडू ने बचपन में पिता की तीर-धनुष से ही तीरंदाजी शुरू की. देखते ही देखते उसने इस कला में महारथ हासिल कर ली. हौसले की राह में गरीबी को आड़े नहीं आने दिया. मेहनत करते हुए ममता ने कीर्तिमान रच दिया, 2009 में विजयवाड़ा में हुए नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीता. तब परिवार का सीना गर्व से चौड़ा हो गया. इसके बाद ममता रांची में रहकर प्रैक्टिस करने लगी. इसका सपना अब देश के लिए गोल्ड जीतने का था, लेकिन जब लॉकडाउन लगा और ममता घर लौटी तो देखा पूरे परिवार पर रोटी की आफत है. परिवार के दर्द ने ममता को तोड़ दिया. इसके बाद वह यहीं रहने लगी और झालमुढ़ी बेचकर परिवार की आर्थिक स्थिति में सहयोग करने लगी. मां कहती है कि कोई मदद कर दे तो बेटी का सपना पूरा हो जाएगा. बेटी का सपना मतलब पूरे परिवार का सपना.

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माननीयों की मदद से पूरा हो सकता है ममता का सपना

ममता के कोच मोहम्मद शमशाद कहते हैं कि वह बहुत ही होनहार खिलाड़ी है. सरकार अगर ममता को सहयोग करती है तो वह नेशनल लेवल पर खिताब जीत सकती है. ऐसे खिलाड़ियों की मदद के लिए सरकार को आगे आना चाहिए ताकि कोई होनहार खिलाड़ी की दुर्दशा न हो.

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