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नाबालिग बच्ची का हाथ पकड़ना यौन हमले के दायरे में नहीं आता : हाई कोर्ट

बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और जिप खोलना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत 'यौन हमले' अथवा 'गंभीर यौन हमले' के दायरे में नहीं आता. याचिका 50 वर्षीय एक व्यक्ति ने दाखिल की थी और पांच साल की एक बच्ची के यौन शोषण करने के दोषी ठहराए जाने संबंधी सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी.

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Published : Jan 28, 2021, 6:22 PM IST

नागपुर : बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत 'यौन हमले' अथवा 'गंभीर यौन हमले' के दायरे में नहीं आता.

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने यह बात 15 जनवरी को एक याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में कही. याचिका 50 वर्षीय एक व्यक्ति ने दाखिल की थी और पांच साल की एक बच्ची के यौन शोषण करने के दोषी ठहराए जाने संबंधी सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी.

लिबनस कुजूर को अक्टूबर 2020 को आईपीसी की संबंधित धाराओं तथा पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी. न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन ने यह साबित किया है कि आरोपी ने पीड़िता के घर में प्रवेश कर उसका शीलभंग करने अथवा यौन शोषण करने की नीयत से किया था, लेकिन वह 'यौन हमले' अथवा 'गंभीर यौन हमले' के आरोपों को साबित नहीं कर पाया है.

उच्च न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत 'यौन हमले' की परिभाषा यह है कि 'सेक्स की मंशा रखते हुए यौन संबंध बनाए बिना शारीरिक संपर्क' होना चाहिए. न्यायमूर्ति ने कहा, पीड़िता का हाथ पकड़ने अथवा पैंट की खुली जिप जैसे कृत्य को कथित तौर पर अभियोजन की गवाह (पीड़िता की मां) ने देखा है और इस अदालत का विचार है कि यह 'यौन हमले' की परिभाषा के दायरे में नहीं आता.

पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, केंद्र को कहा- आपने आंखें क्यों मूंद रखी हैं

उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले के तथ्य आरोपी (कुजूर) के खिलाफ अपराधिक आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. अभियोजन के अनुसार कुजूर 12 फरवरी 2018 को बच्ची के घर उस वक्त गया था जब उसकी मां घर पर नहीं थी. जब मां घर लौटी तो उसने देखा की आरोपी उनकी बच्ची का हाथ पकड़े है और उसकी पैंट की जिप खुली है.

लड़की की मां ने निचली अदालत में अपनी गवाही में कहा था कि उनकी बच्ची ने उन्हें बताया था कि आरोपी ने बच्ची से सोने के लिए बिस्तर पर चलने को कहा था. उच्च न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम की धारा आठ और दस के तहत लगाए गए दोष को खारिज कर दिया था, लेकिन अन्य धाराओं के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी.

नागपुर : बंबई उच्च न्यायालय की नागपुर पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि किसी नाबालिग लड़की का हाथ पकड़ना और पैंट की जिप खोलना बाल यौन अपराध संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत 'यौन हमले' अथवा 'गंभीर यौन हमले' के दायरे में नहीं आता.

न्यायमूर्ति पुष्पा गनेदीवाला की एकल पीठ ने यह बात 15 जनवरी को एक याचिका पर सुनवाई के बाद अपने फैसले में कही. याचिका 50 वर्षीय एक व्यक्ति ने दाखिल की थी और पांच साल की एक बच्ची के यौन शोषण करने के दोषी ठहराए जाने संबंधी सत्र अदालत के फैसले को चुनौती दी थी.

लिबनस कुजूर को अक्टूबर 2020 को आईपीसी की संबंधित धाराओं तथा पॉक्सो अधिनियम के तहत दोषी ठहराते हुए पांच वर्ष के कारावास की सजा सुनाई गई थी. न्यायमूर्ति गनेदीवाला ने अपने आदेश में कहा कि अभियोजन ने यह साबित किया है कि आरोपी ने पीड़िता के घर में प्रवेश कर उसका शीलभंग करने अथवा यौन शोषण करने की नीयत से किया था, लेकिन वह 'यौन हमले' अथवा 'गंभीर यौन हमले' के आरोपों को साबित नहीं कर पाया है.

उच्च न्यायालय ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत 'यौन हमले' की परिभाषा यह है कि 'सेक्स की मंशा रखते हुए यौन संबंध बनाए बिना शारीरिक संपर्क' होना चाहिए. न्यायमूर्ति ने कहा, पीड़िता का हाथ पकड़ने अथवा पैंट की खुली जिप जैसे कृत्य को कथित तौर पर अभियोजन की गवाह (पीड़िता की मां) ने देखा है और इस अदालत का विचार है कि यह 'यौन हमले' की परिभाषा के दायरे में नहीं आता.

पढ़ेंः सुप्रीम कोर्ट ने जताई नाराजगी, केंद्र को कहा- आपने आंखें क्यों मूंद रखी हैं

उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि इस मामले के तथ्य आरोपी (कुजूर) के खिलाफ अपराधिक आरोप तय करने के लिए पर्याप्त नहीं हैं. अभियोजन के अनुसार कुजूर 12 फरवरी 2018 को बच्ची के घर उस वक्त गया था जब उसकी मां घर पर नहीं थी. जब मां घर लौटी तो उसने देखा की आरोपी उनकी बच्ची का हाथ पकड़े है और उसकी पैंट की जिप खुली है.

लड़की की मां ने निचली अदालत में अपनी गवाही में कहा था कि उनकी बच्ची ने उन्हें बताया था कि आरोपी ने बच्ची से सोने के लिए बिस्तर पर चलने को कहा था. उच्च न्यायालय ने पॉक्सो अधिनियम की धारा आठ और दस के तहत लगाए गए दोष को खारिज कर दिया था, लेकिन अन्य धाराओं के तहत उसकी दोषसिद्धि बरकरार रखी थी.

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