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Manipur Controversy : घाटी में रहते हैं मैतेई, पहाड़ी पर रहते हैं नागा-कुकी, फिर क्या है दोनों के बीच असली विवाद

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Published : May 5, 2023, 5:03 PM IST

Updated : May 5, 2023, 6:56 PM IST

पहाड़ी वर्सेस वैली, कुछ ऐसा ही विवाद मणिपुर का है. नागा और कुकी जनजातीय आबादी को मैतेई का नाम एसटी सूची में जोड़े जाने पर आपत्ति है. नागा और कुकी पहाड़ी आबादी है. मैतेई वैली में रहते हैं.

manipur controversy
मणिपुर विवाद

नई दिल्ली : मणिपुर अचानक ही सुर्खियों में आ गया है. वहां पर पहाड़ी आबादी और घाटी की आबादी के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है. स्थिति को काबू में करने के लिए केंद्रीय बलों की कई टुकड़ियों को भेजना पड़ा है. गृह मंत्री अमित शाह खुद पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. स्थिति की नजाकत को समझते हुए शाह ने अपना कर्नाटक दौरा भी रद्द कर दिया है. वह लगातार राज्य के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के संपर्क में हैं. अब आइए समझते हैं आखिर क्या है पूरा विवाद, जिसकी वजह से स्थिति बिगड़ गई.

आपको बता दें कि मणिपुर की भौगोलिक स्थिति कुछ अलग है. यह चारों ओर पहाड़ी इलाकों से घिरा है. बीच में घाटी है. इस घाटी में घनी आबादी रहती है. पहाड़ों पर मुख्य रूप से जनजातीय आबादी (एसटी) रहती है. घाटी की जमीन काफी ऊपजाऊ है, लेकिन पूरे राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का यह मात्र 10 फीसदी है. घाटी में रहने वाली सबसे बड़ी आबादी मैतेई या मेती है. आबादी के हिसाब से बात करें तो पूरे राज्य में इनकी भागीदारी 60 फीसदी से भी अधिक है. अंदाजा लगाइए, मणिपुर विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें यहीं से आती हैं. घाटी में अधिकांश आबादी हिंदुओं की है. इसके बाद बड़ी आबादी मुस्लिमों की है.

इसका दूसरा अर्थ यह हुआ है कि 90 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र में पहाड़ी आबादी रहती है. जनसंख्या के हिसाब से उनकी भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है. पर, उनकी राजनीतिक भागीदारी सीमित है. यहां पर अलग-अलग जनजातियों के लोग रहते हैं. नागा और कुकी प्रमुख जनजातीय आबादी हैं. कुछ आबादी म्यांमार मूल के कुकी भी हैं. जनजातीय आबादी ईसाई धर्म का पालन करते हैं. मणिपुर में 33 रिकॉग्नाइज्ड जनजातियां हैं.

वर्तमान विवाद की असली वजह - मणिपुर हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल को एक फैसला सुनाया. इसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को एक अनुशंसा भेजे, जिसमें मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने का आग्रह हो. इस आदेश को पारित करते हुए कोर्ट ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय के उस पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें मंत्रालय ने विशेष अनुशंसा की मांग की थी. इसमें सामाजिक आर्थिक सर्वे के साथ-साथ एथनोग्राफिक रिपोर्ट को भी शामिल करने को कहा गया था. चिट्ठी 2013 में लिखी गई थी. इससे भी पहले 2012 में एसटी डिमांड कमेटी ने मैतेई को एसटी में शामिल करने का अनुरोध किया था.

हाईकोर्ट में मैतेई समुदाय ने अपना पक्ष रखते हुए दावा किया कि 1949 में जब मणिपुर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाया गया, तब उन्हें जनजातीय आबादी माना जाता था. वे फिर से वही स्टेटस चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी संस्कृति, पारंपरिक जमीन, परंपरा और भाषा अक्षुण्ण रहे, इसके लिए उन्हें एसटी सूची में शामिल किया जाए. मैतेई समुदाय के अनुसार वह संवैधानिक अधिकार चाहते हैं, ताकि उन्हें बाहर से आ रही आबादी से कोई भी खतरा न हो.

विरोध की क्या है वजह - पहाड़ी आबादी का कहना है कि मैतेई का पहले से ही राजनीतिक वर्चस्व है. उनकी आबादी भी ज्यादा है. नौकरी में भी उनका अच्छा-खासा प्रभाव है. एक बार उन्हें एसटी सूची में डाल दिया गया, तो गैर मैतेई आबादी प्रभावित होंगे. उनका आरक्षण प्रभावित होगा. वे पहाड़ी इलाकों में भी जमीन का अधिग्रहण करने लगेंगे. मैतेई लोगों की भाषा पहले से ही आठवीं अनुसूची में दर्ज है. उनमें से कइयों को एससी, ओबीसी और ईडब्लूएस की अलग-अलग कैटेगरी में आरक्षण मिलता रहा है.

वैसे, तात्कालिक विवाद की एक और वजह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह दावारा ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ उठाए गए कदम से कुछ जनजातीय आबादी खुश नहीं हैं. इसलिए वह सीएम पर राजनीतिक हमले कर रहे हैं. ड्र्ग्स माफिया में मुख्य रूप से वो शामिल हैं, जो म्यांमार के अवैध घुसपैठिए हैं. वे कुकी जोमी आबादी हैं. ये लोग जंगलों को काट-काटकर ओपियम और कैनाबिस की खेती कर रहे हैं. बिरेन सिंह की सरकार ने एविक्शन अभियान छेड़ रखा है. कुकी गांव से लोगों को भगाया जा रहा था, तभी से हिंसा की शुरुआत हुई है.

ये भी पढे़ं : Manipur violence : मणिपुर में दंगाइयों को देखते ही गोली मारने का आदेश

स्थिति नियंत्रण में - रक्षा अधिकारी के मुताबिक, मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में है. हालांकि, प्रदेश में अप्रिय स्थिति पर नजर रखने के लिए सेना और असम राइफल्स के 6,000 से अधिक जवानों को तैनात कराया गया है. जबकि नगालैंड से सड़क मार्ग से अतिरिक्त सैनिकों को लाने की व्यवस्था करायी जा रही है. वहीं, वायु सेना के सी17 ग्लोबमास्टर और एएन32 विमान भी असम के तेजपुर और गुवाहाटी से जवानों को लेकर हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच गए हैं. अधिकारियों के मुताबिक, सेना की सिख रेजीमेंट अभी इंफाल पश्चिम जिले के लांगोल में बचाव अभियान चला रही है, जहां से 500 से अधिक लोगों को लीमाखोंग सैन्य शिविर में सुरक्षित आश्रय स्थलों तक पहुंचाया जा रहा है. रक्षा विभाग के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) ने एक बयान जारी कर कहा, "सभी हितधारकों की समन्वित कार्रवाई के जरिये स्थिति पर नियंत्रण हासिल कर लिया गया है."

नई दिल्ली : मणिपुर अचानक ही सुर्खियों में आ गया है. वहां पर पहाड़ी आबादी और घाटी की आबादी के बीच तनाव की स्थिति उत्पन्न हो गई है. स्थिति को काबू में करने के लिए केंद्रीय बलों की कई टुकड़ियों को भेजना पड़ा है. गृह मंत्री अमित शाह खुद पूरी स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. स्थिति की नजाकत को समझते हुए शाह ने अपना कर्नाटक दौरा भी रद्द कर दिया है. वह लगातार राज्य के मुख्यमंत्री एन. बिरेन सिंह के संपर्क में हैं. अब आइए समझते हैं आखिर क्या है पूरा विवाद, जिसकी वजह से स्थिति बिगड़ गई.

आपको बता दें कि मणिपुर की भौगोलिक स्थिति कुछ अलग है. यह चारों ओर पहाड़ी इलाकों से घिरा है. बीच में घाटी है. इस घाटी में घनी आबादी रहती है. पहाड़ों पर मुख्य रूप से जनजातीय आबादी (एसटी) रहती है. घाटी की जमीन काफी ऊपजाऊ है, लेकिन पूरे राज्य के भौगोलिक क्षेत्र का यह मात्र 10 फीसदी है. घाटी में रहने वाली सबसे बड़ी आबादी मैतेई या मेती है. आबादी के हिसाब से बात करें तो पूरे राज्य में इनकी भागीदारी 60 फीसदी से भी अधिक है. अंदाजा लगाइए, मणिपुर विधानसभा की 60 सीटों में से 40 सीटें यहीं से आती हैं. घाटी में अधिकांश आबादी हिंदुओं की है. इसके बाद बड़ी आबादी मुस्लिमों की है.

इसका दूसरा अर्थ यह हुआ है कि 90 फीसदी भौगोलिक क्षेत्र में पहाड़ी आबादी रहती है. जनसंख्या के हिसाब से उनकी भागीदारी 40 फीसदी के आसपास है. पर, उनकी राजनीतिक भागीदारी सीमित है. यहां पर अलग-अलग जनजातियों के लोग रहते हैं. नागा और कुकी प्रमुख जनजातीय आबादी हैं. कुछ आबादी म्यांमार मूल के कुकी भी हैं. जनजातीय आबादी ईसाई धर्म का पालन करते हैं. मणिपुर में 33 रिकॉग्नाइज्ड जनजातियां हैं.

वर्तमान विवाद की असली वजह - मणिपुर हाईकोर्ट ने 19 अप्रैल को एक फैसला सुनाया. इसमें कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि वह चार सप्ताह के भीतर केंद्र सरकार को एक अनुशंसा भेजे, जिसमें मैतेई समुदाय को एसटी सूची में शामिल करने का आग्रह हो. इस आदेश को पारित करते हुए कोर्ट ने जनजातीय मामलों के मंत्रालय के उस पत्र का भी जिक्र किया, जिसमें मंत्रालय ने विशेष अनुशंसा की मांग की थी. इसमें सामाजिक आर्थिक सर्वे के साथ-साथ एथनोग्राफिक रिपोर्ट को भी शामिल करने को कहा गया था. चिट्ठी 2013 में लिखी गई थी. इससे भी पहले 2012 में एसटी डिमांड कमेटी ने मैतेई को एसटी में शामिल करने का अनुरोध किया था.

हाईकोर्ट में मैतेई समुदाय ने अपना पक्ष रखते हुए दावा किया कि 1949 में जब मणिपुर को भारत का अभिन्न हिस्सा बनाया गया, तब उन्हें जनजातीय आबादी माना जाता था. वे फिर से वही स्टेटस चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उनकी संस्कृति, पारंपरिक जमीन, परंपरा और भाषा अक्षुण्ण रहे, इसके लिए उन्हें एसटी सूची में शामिल किया जाए. मैतेई समुदाय के अनुसार वह संवैधानिक अधिकार चाहते हैं, ताकि उन्हें बाहर से आ रही आबादी से कोई भी खतरा न हो.

विरोध की क्या है वजह - पहाड़ी आबादी का कहना है कि मैतेई का पहले से ही राजनीतिक वर्चस्व है. उनकी आबादी भी ज्यादा है. नौकरी में भी उनका अच्छा-खासा प्रभाव है. एक बार उन्हें एसटी सूची में डाल दिया गया, तो गैर मैतेई आबादी प्रभावित होंगे. उनका आरक्षण प्रभावित होगा. वे पहाड़ी इलाकों में भी जमीन का अधिग्रहण करने लगेंगे. मैतेई लोगों की भाषा पहले से ही आठवीं अनुसूची में दर्ज है. उनमें से कइयों को एससी, ओबीसी और ईडब्लूएस की अलग-अलग कैटेगरी में आरक्षण मिलता रहा है.

वैसे, तात्कालिक विवाद की एक और वजह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार राज्य के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह दावारा ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ उठाए गए कदम से कुछ जनजातीय आबादी खुश नहीं हैं. इसलिए वह सीएम पर राजनीतिक हमले कर रहे हैं. ड्र्ग्स माफिया में मुख्य रूप से वो शामिल हैं, जो म्यांमार के अवैध घुसपैठिए हैं. वे कुकी जोमी आबादी हैं. ये लोग जंगलों को काट-काटकर ओपियम और कैनाबिस की खेती कर रहे हैं. बिरेन सिंह की सरकार ने एविक्शन अभियान छेड़ रखा है. कुकी गांव से लोगों को भगाया जा रहा था, तभी से हिंसा की शुरुआत हुई है.

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स्थिति नियंत्रण में - रक्षा अधिकारी के मुताबिक, मणिपुर में स्थिति नियंत्रण में है. हालांकि, प्रदेश में अप्रिय स्थिति पर नजर रखने के लिए सेना और असम राइफल्स के 6,000 से अधिक जवानों को तैनात कराया गया है. जबकि नगालैंड से सड़क मार्ग से अतिरिक्त सैनिकों को लाने की व्यवस्था करायी जा रही है. वहीं, वायु सेना के सी17 ग्लोबमास्टर और एएन32 विमान भी असम के तेजपुर और गुवाहाटी से जवानों को लेकर हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पहुंच गए हैं. अधिकारियों के मुताबिक, सेना की सिख रेजीमेंट अभी इंफाल पश्चिम जिले के लांगोल में बचाव अभियान चला रही है, जहां से 500 से अधिक लोगों को लीमाखोंग सैन्य शिविर में सुरक्षित आश्रय स्थलों तक पहुंचाया जा रहा है. रक्षा विभाग के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) ने एक बयान जारी कर कहा, "सभी हितधारकों की समन्वित कार्रवाई के जरिये स्थिति पर नियंत्रण हासिल कर लिया गया है."

Last Updated : May 5, 2023, 6:56 PM IST
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