वाराणसी: सनातन धर्म को पर्व और त्योहारों के लिए जाना जाता है. यहां 7 वार और 9 त्योहार होते हैं और हर त्यौहार का अपना अलग महत्व होता है. नाग पंचमी का पर्व पूरे देश में मनाया जाता है. नाग पंचमी जिसे नागों की पूजन का पर्व कहा जाता है, ऐसी मान्यता है कि इस दिन नाग देवता की पूजा करने और नाग को दूध और लावा अर्पित करने से आपके कुंडली के सारे दोष दूर हो जाते हैं और भगवान भोलेनाथ की विशेष कृपा मिलती है. लेकिन, आज हम आपको काशी के उस स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसका रास्ता सीधे नागलोक यानी पाताल लोक हो जाता है. इतना ही नहीं इस स्थान को कालसर्प योग से मुक्ति के लिए सबसे उत्तम माना जाता है और यहां के जल को अपने घर में रखने और उसके छिड़काव मात्र से जहरीले जंतुओं का भय भी खत्म हो जाता है. आइए आपको पाताल लोक की उस दुनिया में लेकर चलते हैं, जिसे नाग कुआं के नाम से जाना जाता है.
काशी में स्थित नाग कुआं महर्षि पतंजलि की तपोस्थली के रूप में विख्यात है. महर्षि पतंजलि जिन्हें शेषनाग का अवतार कहा जाता है. यही वजह है कि यहां पर मौजूद कुंड के नीचे नागलोक होने के दावे किए जाते हैं और इस पवित्र स्थान से जुड़ी कई ऐसी कथाएं हैं जो आपको आश्चर्य में डाल देंगी. दरअसल, वाराणसी रहस्यमयी नगरी है और इस नगर में जैतपुरा इलाके में स्थित नागनकूप पाताल लोक के दरवाजे के रूप में विख्यात है. यहां के महंत पंडित कुंदन पांडेय की मानें तो कई हजार साल पुरानी इस पवित्र स्थली को कारकोटक नागी तीर्थ के नाम से जाना जाता है. इससे जुड़ी कथा के बारे में यदि बात की जाए तो पुराणों में वर्णित है कि यह पवित्र स्थान शेषनाग अवतार महर्षि पतंजलि की तपोस्थली रही है. यहीं पर कई हजार वर्ष तक उन्होंने कठिन तपस्या की थी.
महर्षि पतंजलि को नागों के देवता के रूप में पूजा जाता है और उनके द्वारा स्थापित कई हजार साल पुराना शिवलिंग इस कूप के अंदर आज भी मौजूद है. इसके दर्शन साल में एक बार यहां सफाई होने के दौरान ही हो पाते हैं. उस शिवलिंग के ठीक नीचे एक बड़ा सा गहरा रास्ता है. ऐसा कहा जाता है कि यह रास्ता पाताल लोक यानी नाग लोक जाने का है. यह कितना गहरा है, कितने अंदर तक इसकी गहराई है यह किसी को नहीं पता.
मंदिर के महंत की मानें तो अंदर मौजूद एक शिलापट्ट के मुताबिक, इस कूप स्थान का जीर्णोद्धार लगभग 3000 वर्ष पहले किया गया था. जब जीर्णोद्धार 3000 वर्ष पूर्व हुआ है तो यह स्थान कितने हजार वर्ष पुराना है यह अपने आप में बड़ा सवाल है. मंदिर के पुजारी की मानें तो इस स्थान पर आज भी नागों का बसेरा है. ऐसा भी कहा गया है कि सतयुग में महाराजा हरिश्चंद्र के बेटे को सर्प ने इसी स्थान पर काटा था. मंदिर के पुजारी तुलसीदास पांडेय ने बताया कि ऐसी मान्यता है कि यहां पर यदि कालसर्प योग की पूजा की जाए तो इसके प्रभाव से मुक्ति मिलती है. इतना ही नहीं इस कूप के पानी को यदि आप अपने घर में रखते हैं और इस पानी का छिड़काव या आचमन करते हैं तो जहरीले जीव-जंतुओं के खतरे और नाग के घर में आने के डर से भी मुक्ति मिलती है.
नाग पंचमी के दिन छोटे गुरु व बड़े गुरु की पूजा का भी विधान है. मंदिर के पुजारी की मानें तो छोटे गुरु और बड़े गुरु से तात्पर्य महर्षि पतंजलि और उनके गुरु महर्षि पाणिनि से है. क्योंकि महर्षि पतंजलि नाग देवता के रूप में विराजमान हैं और उनके गुरु बड़े गुरु यानी महर्षि पाणिनि का पूजन भी किया जाता है. यह भी कहा है कि महर्षि पतंजलि ने महर्षि पाणिनि के माहाभास समेत योगभास की रचना भी यहीं पर की थी.
यह भी पढ़ें: Nag Panchami 2022: नाग देवता का दर्शन करना हुआ आसान, गोरखपुर जू के टिकट पर 50 प्रतिशत का मिला ऑफ
पुराणों में वर्णित है कि इस कूप के अंदर पाताल लोक जाने वाला रास्ता आज भी मौजूद है. कूप के अंदर विद्यमान शिवलिंग के दर्शन नहीं होते, इसलिए बाहर मौजूद मंदिर में इस शिवलिंग के प्रतिरूप दूसरा शिवलिंग स्थापित किया गया है. जहां लोग पूजन-पाठ कर कालसर्प योग और अन्य मनोकामना पूर्ण करने के लिए दूर-दूर से यहां पहुंचते हैं. वाराणसी के इस नाग लोक को कारकोटक वापी के नाम से भी जाना जाता है. कारकोटक शब्द का अर्थ उस नाग से है जो भगवान शंकर के गले में वास करता है. कारकोटक सांपों के राजा को जाना जाता है. यही वजह है कि इस स्थान पर मौजूद शिवलिंग की रक्षा स्वयं कारकोटक नाग ही करते हैं. यही वजह है किस स्थान को इस नाम से भी जाना जाता है, जिसका वर्णन स्कंद पुराण में भी मौजूद है.
ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप