नई दिल्ली : बिहार के मुजफ्फरपुर शेल्टर होम केस में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमना (Muzaffarpur shelter homes CJI NV Ramana) और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की पीठ ने बिहार सरकार को रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया. शीर्ष अदालत ने ध्यान दिलाया कि जांच पूर्ण हो चुकी है तथा 19 लोगों को दोषी करार दिया जा चुका है.
बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, 'याचिकाकर्ता ने आश्रय स्थल की जांच के सिलसिले में (पीठ से) कोई निर्देश देने का आग्रह किया था. सीबीआई ने भी अधिकारियों को उनके मूल काडर में भेजे जाने के संबंध में अर्जी दी है. सीबीआई ने एक आश्रय गृह और बाद में अन्य के बारे में भी जांच की थी. मुख्य मामले में 19 की दोषसिद्धि हो चुकी है. अब दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष अपील लंबित है.'
उसने कहा, 'राज्य ने चूक करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई को कहा है. राज्य को कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया जाता है. यह सीबीआई पर निर्भर करेगा कि वह सुनवाई अदालत के समक्ष पेश हुए वकील की सहायता ले (या नहीं). राज्य को हर हाल में कार्रवाई रिपोर्ट दाखिल करनी है.'
इस आदेश से पहले याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील शोएब आलम ने अदालत के समक्ष कहा था कि हाल में एक समाचार पत्र की खबर के अनुसार पटना उच्च न्यायालय ने मामले में संज्ञान लिया. यह मामला एक किशोरवय लड़की का है जो एक आश्रय गृह से तब भाग गयी जब उसका, पुराने मामलों में अपनाये जाने वाले तरीकों की तरह कथित रूप से यौन शोषण किया गया.
उन्होंने कहा कि सीबीआई ने विभिन्न अधिकारियों के विरूद्ध कार्रवाई की सिफारिश की है तथा इस बात की स्पष्टता नहीं है कि क्या कार्रवाई की गयी क्योंकि समस्या यथावत है. आलम ने कहा, 'मैं केवल कार्रवाई रिपोर्ट के बारे में कह रहा हूं. सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की.'
बिहार सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने कहा कि एक मामले में दोषसिद्धि हुई है तथा अब अपील दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित है. सीबीआई की ओर से पेश अतिरिक्त सालीसिटर जनरल माधवी दीवान ने न्यायालय को बताया कि मामले की जांच पूर्ण हो चुकी है तथा कुछ अधिकारियों को अदालत की अनुमति के बाद उनके मूल काडर में भेज दिया गया है.
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शीर्ष न्यायालय ने इससे पहले सीबीआई को संदिग्ध हत्याओं सहित मामले की जांच पूर्ण करने के लिए तीन माह का समय दिया था और एजेंसी को अपराध में शामिल 'बाहरी लोगों' की जांच के लिए उसका दायरा बढ़ाने का निर्देश दिया था.
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न्यायालय ने मुजफ्फरपुर मामले में भारतीय दंड विधान की धारा 377 के तहत अप्राकृतिक यौन शोषण के आरोपों की जांच के लिए भी सीबीआई को निर्देश दिए थे. मुजफ्फरपुर में एक गैर सरकारी संगठन द्वारा चलाये जा रहे आश्रय गृह में कई लड़कियों के साथ कथित दुष्कर्म एवं यौन शोषण किया गया था और टाटा इंस्टीट्यूट आफ सोशल साइंसेज की एक रिपोर्ट के बाद यह मुद्दा सुर्खियों में आया था.
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