रायपुर: आपने अब तक संगीत के कई आयाम देखे होंगे. अलग-अलग वाद्य यंत्रों की सरगम सुनी होगी. कई गायकों की मधुर आवाज ने आपको दीवाना बनाया होगा. लेकिन आज हम आपको सूरजपुर जिले के आदिवासी अंचल के शिक्षक महेंद्र उपाध्याय से मिलवाने जा रहे हैं. जो पीपल के पत्ते से एक से एक बढ़िया धुन बजाते हैं. इनकी इस कलाकारी को देखकर आप दंग रह जाएंगे. ईटीवी भारत ने उनकी कलाकारी और उनके इस शौक के बारे में खास बातचीत की है.
सवाल- आप पीपल के पत्ते से संगीत बजा रहे हैं इसकी शुरुआत आप ने कब की?
जवाब- मैं 40 साल से इसकी प्रैक्टिस कर रहा हूं. भगवान का आशीर्वाद है. मैं पत्ते को फूंकने लगा जिसके बाद उसमें से स्वर निकलने लगे. उसे सरगम के रूप में ढाल दिया. रियाज करते करते मैं और परफेक्ट होता गया. इस तरह मैं पीपल के पत्ते से संगीत और धुन बनाने लगा. अभी इस तरह के वादन में रियाज जारी है.
सवाल- लोग अलग-अलग वाद्य यंत्रों से संगीत बजाते हैं आपने पत्ते से संगीत बजाने के बारे में कैसे सोचा ?
जवाब- पिता जी की खेती बाड़ी थी और मैं मवेशियों को चराने के लिए लेकर जाता था. वही मैं पीपल के पत्तों को फूंककर आवाज निकलने की कोशिश करता था. शुरुआत में बेसुरी आवाज निकलती थी , उसके बाद सारेगामा सरगम सीखा, उसके बाद धीरे-धीरे गीत बजाने लगा.
सवाल- आपका पेशा क्या है और आप कहां के रहने वाले हैं ?
जवाब- मैं सूरजपुर जिले के कैशलपुर गांव में पैदा हुआ. मेरी पढ़ाई लिखाई भी रामानुजगंज से हुई है. मैं शासकीय प्राथमिक शाला में एक शिक्षक हूं.
सवाल- शिक्षण के अलावा आप संगीत में कितना समय देते हैं.
जवाब- मैं ज्यादा समय संगीत को नहीं दे पाता. लेकिन जब समय मिलता है तो जरूर रियाज करता हूं. मैं नदी किनारे संगीत साधना करता हूं.
सवाल- क्या आप स्कूल के बच्चों को पत्तों से वादन करना सिखाते हैं?
जवाब- अगर यह कोई वाद्य यंत्र होता तो मैं इसे जरूर सिखा देता. इस संगीत को सुनने के बाद अगर किसी की रूचि जागृत होगी तो मैं उसे यह जरूर सिखाऊंगा. लेकिन इसको सीखने में लंबा समय लगेगा.