भोपाल। बीजेपी ने पहले चरण की 11 नगर निगम सीटों में से सात जीत तो लीं, लेकिन जो चार हार गए उस पर पार्टी ने चिंतन मंथन शुरु कर दिया है. पार्टी सूत्रों के मुताबिक इस हार की वजह बड़े नेताओं को दरकिनार और साथ ही छोटे कार्यकर्ता की अनसुनी मंहगी पड़ गई. (MP Urban Body Election 2022) (BJP defeat and Congress victory in Gwalior)
ऐसे हाथ से निकले चार नगर निगम: एमपी में भाजपा को इस बार जातिगत राजनीति और खासतौर से सवर्णों के प्रति पार्टी की उदासीनता उसे भारी पड़ गई, इसके साथ ही OBC को चुनावों में 27 प्रतिशत आरक्षण दिलाने का ढोल पीट रही शिवराज सरकार को आरक्षण नहीं मिलना भी भारी पड़ा. पार्टी ने वार्डों में ओबीसी को टिकिट के लिए प्राथमिकता दी, जिसकी वजह से पार्टी के वोट बैंक में गिरावट देखने को मिली और ग्वालियर सहित चार नगर निगम उससे छिन गए.
ग्वालियर क्यों हारी बीजेपी: ग्वालियर सीट पर बीजेपी का 57 साल पुराना किला ढ़ह गया, इसका सीधा कारण टिकट वितरण और बड़े नेताओं का एक-दूसरे से छत्तीस का आंकड़ा रहा. यही वजह है कि ग्वालियर में महापौर प्रत्याशी का फैसला बीजेपी सबसे आखिरी में कर पाई. तोमर और सिंधिया के बीच क्लैश की खबरें तो अक्सर आती हैं, लेकिन दोनों का मनमुटाव पार्टी को भारी पड़ गया. सिंधिया गुट के जो नेता थे उन्होंने मन से प्रचार नहीं किया, जिसका नतीजा रहा कि सिंधिया समर्थक कार्यकर्ता भी चुनाव में पीछे हट गए .
ब्राम्हण वोट भी बीजेपी से छिटके: ग्वालियर चंबल में जातिगत राजनीति हमेशा हावी रही है, इसलिए बीजेपी की हार की वजह ब्राह्मणों की नाराजगी भी बताई जा रही है. पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा की नाराजगी का वीडियो वायरल हुआ, जिसका असर बाह्मण वोटर्स पर पड़ा. हालांकि सुमन शर्मा ने अनूप मिश्रा को मना तो लिया, लेकिन वोटर्स ने उनसे दूरी बना ली.
बीजेपी महापौर प्रत्याशी से कट गए कार्यकर्ता: सीएम शिवराज सिंह, प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा, नरेंद्र सिंह तोमर भी कार्यकर्ताओं में आपसी मतभेद नहीं मिटा सके, जिसके कारण यहां रोड शो में सीएम के साथ भीड़ तो बहुत दिखाई दी, लेकिन पार्टी को वोट नहीं मिल सके. सुमन शर्मा जमीन से जुड़ी नेता न होने से कार्यकर्ताओं को जागरुक नहीं कर पाईं और कार्यकर्ताओं ने उन पर भरोसा नहीं किया.
बागियों ने बिगाड़ा गणित: बीजेपी के बागी नेताओं ने भी बीजेपी का गणित बिगाड़ कर रख दिया, ग्वालियर में नगरीय निकाय चुनाव में पार्षद प्रत्याशियों के टिकट वितरण को लेकर बीजेपी के कई नेता बागी हो गए, जिन्होंने बीजेपी के खिलाफ ही मोर्चा खोल दिया. बागियों ने न केवल बीजेपी के पार्षद प्रत्याशियों के खिलाफ चुनाव लड़ा, बल्कि बीजेपी की महापौर प्रत्याशी के खिलाफ भी जमकर माहौल बनाया. नतीजतन बीजेपी के महापौर प्रत्याशी की नांव डूब गई. इसी के साथ माया सिंह, जयभान सिंह पवैया, अनूप मिश्रा की चुनाव में कम सक्रीयता रही, और ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके करीबी भारत सिंह कुशवाह भी अपने क्षेत्र से वोट नहीं दिला पाए. इसके पीछे की वजह सिंधिया और तोमर के वर्चस्व की लड़ाई को माना जा रहा है.
रोड शो भी नहीं आ सके काम: 16 वार्डों में बीजेपी के दिग्गजों के रोड शो भी काम नहीं आए, इन वार्डों में 9 तो कांग्रेस ने जीते तो वहीं बीजेपी ने सिर्फ 6 जीतें .इन वार्डों में सिंधिया और शिवराज सिंह ने ग्वालियर में दो रोड शो किए, वीडी शर्मा सहित तोमर ने भी रोड शो किया लेकिन संगठन द्वारा मेगा रोड शो करने के बाद भी बैठकों पर ज्यादा फोकस रहा.
हारी हुई सीट पर भाजपा करेगी मंथन: बीजेपी के प्रदेशाध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि "बीजेपी ने नगर निगमों में एतिहासिक जीत दर्ज की है. जहां तक 4 नगर निगम का सवाल है तो पार्टी मंथन करेगी, लेकिन बावजूद इसके नगर पालिका और परिषदों में बीजेपी की ही जीत हुई है."
कांग्रेस की जीत की वजह: कांग्रेस को बीजेपी की गुटबाजी का फायदा मिला, तो वहीं कांग्रेस में यहां पर एकजुटता दिखाई. शोभा सिकरवार के पति ग्वालियर में पूर्व से विधायक हैं, वे बीजेपी से कांग्रेस में आए और विधानसभा जीते. वे पुराने नेता और पूर्व पार्षद भी रहे है, इसके अलावा खुद शोभा भी तीन बार की पार्षद रह चुकी हैं. माना जा रहा है कि ठाकुरों के साथ अन्य वर्ग के वोट भी शोभा को मिले.
आप और AIMIM की एंट्री से मप्र में सुगबुगाहट: बीजेपी के हाथ से दो सीटें और जाती, लेकिन जैसा की आरोप लगाया जाता है कि औवैसी बीजेपी की बी पार्टी हैं और वैसा ही हुआ. मप्र के मुस्लिम बाहुल्य इलाके में ओवैसी ने एंट्री मारी और इसका फायदा भाजपा को दे दिया.
2023 में पार्टियों के बिगड़ेंगे समीकरण: कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ का कहना है कि "जनता ने बीजेपी को आईना दिखा दिया है और कांग्रेस को आशीर्वाद दिया है. जनता की बदौलत कांग्रेस ने बीजेपी के उन किलों को ढहाया, जहां वो कई दशकों से काबिज थी. कांग्रेस की तैयारी अब 2023 की है, हम दो नगर निगम और जीतते लेकिन बीजेपी की बी पार्टी के प्रमुख ओवैसी फिर बीजेपी के आदमी साबित हुए हैं."
'आप' की धमाकेदार एंट्री: मध्य प्रदेश में नगर सरकार बनाने के इस चुनाव में राज्य में आम आदमी पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की AIMIM की सेंध ने भी राज्य की राजनीति में बदलाव के संकेत दे दिए हैं. मध्य प्रदेश में पहली बार नगरीय निकाय चुनाव लड़ रही "आप' को बेहतर नतीजे मिले हैं, पार्टी को महापौर की 1 और पार्षदों की 17 सीटों पर जीत मिली है. जिसके बाद दिल्ली के मुख्यमंत्री और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल इस जीत को मध्य प्रदेश में पार्टी की धमाकेदार एंट्री बताते हुए आप के सभी विजेताओं और कार्यकर्ताओं को बधाई दी है. हालांकि इससे पहले आप लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में अपने प्रत्याशी उतार चुकी थी, लेकिन उसे जीत नहीं मिली थी.
AIMIM का जनता ने किया स्वागत: इसके अलावा असद्दुदीन ओवैसी की ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद उल मुस्लिमीन (AIMIM) को पार्षदों की चार सीटों पर जीत मिली है. पार्टी के चार प्रत्याशियों ने खंडवा नगर निगम में 1, बुरहानपुर नगर निगम में 1 और जबलपुर नगर निगम चुनाव में 2 पार्षद के पद पर जीत दर्ज की है.