भोपाल। कांपता पर्वत, सिसकती नर्मदा, कटते पेड़ और बैचेन पंछी... यह लाइनें है, उस ओंकारेश्वर पर्वत के लिए जहां सरकार आदि शंकराचार्य का एक भव्य स्टेच्यू बनाने का काम तेजी से कर रही है. यह काम काफी समय पहले से चल रहा है, लेकिन एक बार फिर इसकी चर्चा शुरू हो गई, क्योंकि एनजीटी ने इस मामले में निर्णय दिया है कि यहां अवैध तरीके से पेड़ों की कटाई हुई है. यहां के पर्यावरण को बचाने के लिए जो लोग लड़ाई लड़ रहे हैं, उनका साफ कहना है कि सरकार को पर्यावरण की नहीं, बल्कि अपनी हिंदुत्व वाली छवि की चिंता है.
स्टैच्यू निर्माण के चलते बिगड़ा ईको सिस्टम: मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर पर्वत में बीते दो साल से आदि गुरु शंकराचार्य की प्रतिमा स्थापित करने के लिए तेजी से चल रहा काम अब रुकता दिखाई दे रहा है. राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की फटकार के बाद पर्यावरण के हक में लड़ाई लड़ रहे भारत हितरक्षा अभियान के सदस्यों को हौंसला मिला है. ईटीवी भारत ने एनजीटी द्वारा मामले में आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास को फटकार लगाने के बाद ओंकारेश्वर में स्थिति का जायजा लिया तो पता चला कि वहां अनवरत काम जारी है. भारत हितरक्षा अभियान के प्रमुख अभय जैन ने बताया कि हम इस प्रोजेक्ट के विरोधी नहीं हैं, लेकिन इसमें नियमों का जमकर उल्लघंन किया जा रहा है. जिस स्थान पर स्टेच्यू लगाया जाना है, वहां से खोदे मलबे को पेड़ों के ऊपर डाला जा रहा है. नर्मदा के जल में इसे डाला जा रहा है. इससे वहां का पूरा ईको सिस्टम बिगड़ गया है. उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस पर्वत पर वैसे ही बहुतेरे अवैध निर्माण हो चुके हैं. उन्हें रोकने की बजाय अब वैध निर्माण की आड़ में पर्वत का ईको सिस्टम नष्ट किया जा रहा है. सरकार ने कहने के लिए 1300 पेड़ बताएं, जबकि असल संख्या इससे अधिक है. यही कारण है कि जब जुलाई में हाईकोर्ट की फटकार के बाद अभियान के सदस्य मौके पर गए थे, तो उन्हें पेड़ गिनने से रोक दिया गया.
हिंदुत्व वाली इमेज बचाने जी जान से जुटे सीएम: गुजरात में जब नर्मदा किनारे स्टेच्यू ऑफ यूनिटी बनाई गई, इसके बाद ही एमपी में स्टैच्यू ऑफ आदि गुरु शंकराचार्य बनाने की योजना बनी. जानकार बताते हैं कि इसके जरिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी हिंदुत्व की इमेज को मजबूत करना चाहते हैं. इसीलिए संघ प्रमुख मोहन भागवत के साथ शामिल हुए एक कार्यक्रम में इसकी घोषणा की गई थी. इसके पहले महाकाल कॉरीडोर वे बना चुके हैं और सेकंड फेज का काम चल रहा है.
संरक्षित इलाके में चल रहा है निर्माण: जिस स्थान पर प्रतिमा लगाई जानी है और जहां संग्रहालय बनाया जाना है. वहीं पास में पुरातत्व इतिहास का गौरी सोमनाथ मंदिर है. इसे पुरातत्व विभाग ने संरक्षित घोषित किया है. इसी के पास बेतहाशा खुदाई हो रही है. इस खुदाई में जो एतिहासिक विरासत वाली मूर्ति मिल रही है, उन्हें मलबे में पटक दिया जा रहा है. यह भी जानकारी मिली है कि पर्वत तक चार पहिया वाहन जा सके, इसके लिए स्नान घाट से बर्फानी आश्रम तक एक ब्रिज बनाया जाएगा. इससे भी इस पर्वत पर भार बढ़ेगा. गौरतलब है कि ओंकारेश्वर पर्वत का कुल एरिया 4 किमी लंबा और लगभग 2 किमी चौड़ा है. इस पर्वत की परिक्रमा पथ 7 किमी की है. इस पूरे परिक्रमा पथ के किनारे अवैध बसाहट हो रही थी. अब यहां का जंगल भी काटा जा रहा है. अभियान के सदस्यों का अनुमान है कि करीब 10 हजार से अधिक पेड़ काटे गए हैं.
क्या है प्रोजेक्ट: एमपी के ओंकारेश्वर के ऊपर आदि गुरु शंकराचार्य की 108 फीट ऊंची प्रतिमा बनने जा रही है. ये प्रतिमा आचार्य शंकर सांस्कृतिक एकता न्यास और MPSTDC के मार्गदर्शन में बनाई जाएगी. इसके अलावा आचार्य शंकर संग्रहालय और अद्वैत वेदांत के अंतर्राष्ट्रीय संस्थान का निर्माण होना है. साथ ही साथ मान्धाता पर्वत (Mount Mandhata) के ऊपर दूसरे निर्माण भी किए जाएंगे.
तीर्थ को तीर्थ रहने दें: अभियान के सदस्य विशाल बिंदल ने कहा कि यह लोग शांति की खोज में आते हैं, क्योंकि प्रक्रृति और नदी की गोद में ही यह संभव है, लेकिन पर्यटन स्थल बनने के बाद यहां भीड़ बढ़ेगी और शांति नहीं मिलेगी. उन्होंने अपना पूरा वीडियो जारी करके कई जानकारी दी हैं. इसी प्रकार सुधींद्र शर्मा भूगर्भ वैज्ञानिक ने कहा कि यह भारी निर्माण के लिए ठीक नहीं है. नर्मदा ग्लोबल फॉल्ट पर बहती है. उसके पैरेलल कई फॉल्ट हैं. उसका ध्यान रखें. उन्होंने कहा कि यहां के लोगों काे लग रहा है कि हमारा कुछ नहीं बिगड़ना, लेकिन प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम कुछ साल बाद आते हैं. यदि इसका ईको सिस्टम बचाना है तो अधिक छेड़छाड़ न करें, जोशीमठ जैसी घटना से भी उन्होंने इंकार नहीं किया. जियोलॉजिकल इंवेस्टिगेशन नाम मात्र के लिए किया गया है. जनक पलटा सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि इसे तीर्थ ही रहने दें.