भोपाल। सोने के सिक्कों की रहस्यमय कहानी के केंद्र में अलीराजपुर का एक आदिवासी परिवार और इसी जिले के एक थाने में पदस्थ 4 पुलिसकर्मी हैं. यह कहानी रहस्य के साथ ही सामने आई. जब 21 जुलाई को एक आदिवासी परिवार ने झाबुआ के सोंडवा थाने में शिकायत करी कि उनके सोने के सिक्के चार पुलिसकर्मियों ने चुरा लिए. पुलिस यह शिकायत सुनकर चकरा गई. एक तो मजदूर परिवार और ऊपर से सोने के सिक्कों की चोरी की बात कर रहा है और आरोप भी पुलिसकर्मियों पर लगा रहा है. तत्काल मामले की सूचना एसपी हंसराज सिंह को दी गई. एसपी ने मामले में गंभीरता से जांच करने के लिए कहा.
गुजरात में खुदाई में मिले 240 सिक्के: मामले में प्राथमिक जांच में चोरी के आराेप को सही मानकर चार पुलिसकर्मी थाना प्रभारी विजय देवार, प्रधान आरक्षक सुरेश चौहान, आरक्षक राकेश देवार और वीरेंद्र सिंह को सस्पेंड कर दिया गया, लेकिन असल सवाल यह था कि आखिर इस आदिवासी मजदूर परिवार के पास इतने सारे सोने के सिक्के आए कहां से. जिस महिला ने आरोप लगाया था, वह बेजड़ा गांव की रहने वाली थी और उसका नाम रमकुबाई भयड़िया है. महिला ने पुलिस को बताया कि वह अपने परिवार के साथ गुजरात मजदूरी करने गई थी. खुदाई के दौरान उसे 240 सिक्के मिले. उसे समझ नहीं आया कि यह सोने के हैं या कुछ और है. यहां लाकर उन्होंने अपने घर में जमीन के भीतर गाड़ दिए, लेकिन पड़ोस और मोहल्ले में यह बात फैल गई और 19 जुलाई को 4 पुलिसकर्मी उनके घर पहुंच गए. पुलिसकर्मियों ने डराया, धमकाया और पूरे घर की खुदाई करवा दी. जैसे ही सिक्के मिले, वे लेकर फरार हो गए. जब परिवार को खुद के ठगे जाने का अहसास हुआ तो वह थाने पहुंचे और यह कहानी सामने आई. चूंकि बात गुजरात से जुड़ी थी तो इसमें गुजरात पुलिस भी शामिल हो गई. गुजरात पुलिस ने पूछताछ के नाम पर आदिवासी परिवार को अपनी हिरासत में ले लिया.
असल सवाल जार्ज पंचम के सिक्के कैसे मिले?: इस पूरी कहानी में अभी भी एक सवाल अनुत्तिरित था कि आखिर जार्ज पंचम के जमाने के यह सिक्के इस आदिवासी परिवार को कैसे मिले. इसका जवाब मामले में जांच कर रहे पुलिसकर्मियों ने दिया. उन्होंने बताया कि "जिस आदिवासी परिवार को सिक्के मिले वह दक्षिण गुजरात के एक पुश्तैनी मकान में खुदाई का काम करने गए थे. यहीं उन्हें यह सोना मिला और इसे चुपके से उन्होंने रख लिया. जो सिक्के मिले उस पर जार्ज पंचम की नक्काशी है. पुलिस ने बताया कि जिस मकान में यह खुदाई कर रहे थे, वह गुजरात के नवसारी जिले के बिलिमोरा शहर के भीतर बांदर रोड पर बना है. यह मकान सोएब बलियावाला का है. इस मकान को गिराने के लिए मकान मालिक ने वलसाड़ के ठेकेदार सरफराज कराड़िया को काम दिया है. सरफराज खुदाई के लिए एमपी के आदिवासी जिले झाबुआ और अलीराजपुर से मजदूर लेकर आते हैं." जब मामला गुजरात से जुड़ा तो यहां की पुलिस भी सक्रिए हो गई और आदिवासियों को गुजरात पूछताछ के लिए ले गई.
इंटरनेशनल कीमत 7 करोड़ 20 लाख, अब भारत में यह सिक्के नहीं: पुलिस ने बरामद किए गए सिक्के की प्रमाणिकता जांचने के लिए जौहरी से जांच कराई. जांच के दौरान पता चला कि सिक्का असली सोने का है और इस पर जार्ज पंचम लिखा है. भारत की आजादी से पहले वर्ष 1922 में ब्रिटिश हुकूमत के दौरान इसका चलन था. जौहरी के अनुसार भारत में इन 240 सिक्कों का मूल्य 1.56 करोड़ रुपए और इंटरनेशल मार्केट में इनकी कीमत 7.20 करोड़ रुपए है. फिलहाल पुलिस के पास सिर्फ एक सिक्का है और बाकी सिक्कों की तलाश के लिए चार पुलिसकर्मियों और चार में से दो मजदूरों का पता लगाने के प्रयास जारी है.
सस्पेंड थाना प्रभारी ने कहा कि मुझे जबरन चोर घोषित कर दिया: इस पूरे मामले में जिस थाना प्रभारी विजय देवड़ा को सस्पेंड किया, उन्होंने अपना एक स्टेटमेंट जारी किया है और "इसमें कहा है कि मुझे जबरन चोर बना दिया गया है. यह भी कहा कि 19 जुलाई को बच्चे का बर्थडे था, जिसके लिए 18 को छुट्टी ली थी. 19 जुलाई को रेगुलर आरटी कॉल पर जाइनिंग की थी. मुझे तो शराब रखे होने की सूचना मिली थी. पहले स्टॉफ को भेजा और फिर खुद जांच करने गया. जब मैं वहां से आ गया तो मुझे पता चला कि चार पुलिसकर्मी सिक्के चोरी कर ले गए." इस मामले में एसपी हंसराज सिंह का कहना है कि इस मामले की हम बारीकी से जांच करवा रहे हैं."