इंदौर। इंदौर के एमवाय अस्पताल में यह पहला मौका है जब सर्जरी विभाग की टीम ने 65 साल के किसी मरीज के शरीर से जहर बुझे हुए तीरों को निकालकर जान बचाई. मामले के अनुसार दीपावली के अगले दिन बड़वानी निवासी इसमाल (65 वर्षीय) को गंभीर हालत में एमवाय अस्पताल भेजा गया था. उसे जान से मारने के लिए जहर बुझे कई तीर मारे गए थे. ये तीर मरीज के पेट के अलावा जांघ और हाथ में लगे थे. ये तीर शरीर में गहराई तक घुस गए. पेट में लगा तीर काफी गहरा होने के कारण मरीज को बचाना मुश्किल था.
बड़वानी से इंदौर किया रेफर : बड़वानी अस्पताल से घायल को इंदौर रेफर किया गया. जब इंदौर के डॉ.अरविंद घंगोरिया ने मरीज की स्थिति देखी तो उन्होंने तत्काल सर्जरी विभाग की टीम को अलर्ट करके ऑपरेशन करने का निर्णय लिया. इसके बाद डॉ.घंगोरिया और उनकी टीम ने अन्य संसाधनों का इंतजाम करके मरीज का ऑपरेशन किया. मरीज का खून तीर लगने के बाद काफी बह गया था. उन्होंने 4 से 5 घंटे के जटिल ऑपरेशन के बाद पेट में लगा तीर बाहर निकाल दिया. इसके अलावा जांघ पर लगे तीर से कुछ पैरों की नसें भी क्षतिग्रस्त हुई थीं, जिन्हें रिपेयर किया गया.
तीरों में मिला था जहर : ऑपरेशन के दौरान पता चला कि जो तीर शरीर में धंसे हैं, उनमें जहर मिलाया गया था. इसके बाद डॉक्टर ने एंटी वेनम इंजेक्शन आदि की मदद से किसी तरह मरीज की हालत में सुधार किया. ऑपरेशन के बाद धीरे-धीरे तीनों तीर निकाल लिए गए, जिनके कारण मरीज की जान बच सकी. सर्जरी टीम के मुख्य सर्जन डॉ.अरविंद घनघोरिया ने बताया यह संयोग ही है कि यह मरीज एमवाय अस्पताल लाया गया, जहां उसकी सर्जरी में एक भी रुपए खर्च नहीं हुआ. जबकि किसी भी प्राइवेट अस्पताल में इस तरह के ऑपरेशन में खर्च की कोई सीमा नहीं है.
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आदिवासी अंचल में तीरों का उपयोग : मालवा निमाड़ अंचल के कई खेतों में इन दिनों फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों से बचाव के लिए आदिवासी किसान तीर धनुष का उपयोग करते हैं. कई बार विवाद होने पर तीर से ही एक दूसरे पक्ष पर हमला भी होता है. संबंधित मरीज के साथ भी ऐसी ही घटना हुई, जिसे एक साथ कई जहर बुझे हुए तीर मारे गए. जहर बुझे तीरों को लेकर मान्यता है कि इस तरह के तीर लगने के बाद तीर में लगे जहर से मरीज की मौत हो जाती है. लेकिन एमवाय अस्पताल के डॉक्टरों ने जहर के असर को खत्म करके मरीज की जान बचा ली.