जबलपुर। एक डॉक्टर की छोटी सी लापरवाही किसी की पूरी जिंदगी बर्बाद कर सकती है, जबलपुर की 20 साल की सखी जैन इसका जीता जागता उदाहरण हैं. सखी देख नहीं सकती, ऐसा नहीं है कि सखी जन्म से ही आंखों से लाचार थी, बल्कि सखी की आंखों की रोशनी डॉक्टर डॉ मुकेश खरे की वजह से बर्बाद हुई. सखी का जन्म 2003 में कटनी के शैलेंद्र जैन के घर हुआ था, यह प्रीमेच्योर डिलीवरी थी और साढ़े 7 महीने में ही सखी का जन्म हुआ. जन्म के समय नवजात शिशु का वजन बहुत कम था और सामान्य तौर पर प्रीमेच्योर डिलीवरी के दौरान बच्चों को अस्पताल में भर्ती किया जाता है. शैलेंद्र जैन जो खुद पैसे से ठोक दबाव व्यापारी थे, उन्हें जबलपुर की आयुष्मान अस्पताल और मुकेश खरे की काबिलियत पर पूरा भरोसा था और उन्होंने आयुष्मान अस्पताल में अपनी बेटी को भर्ती करवा दिया. एक महीने भर्ती रहने के बाद शैलेंद्र जैन अपनी बेटी को लेकर कटनी चले गए.
जरुरत से ज्यादा ऑक्सीजन ने ले ली आंखों की रोशनी: एक दिन शैलेंद्र जैन की दादी ने एक अखबार के परिशिष्ट में छपी एक खबर को पढ़ा, जिसमें इस बात का जिक्र था कि प्रीमेच्योर बच्चों को यदि ऑक्सीजन दी जा रही है तो उन्हें एक बार आंख के डॉक्टर को जरूर दिखा देना चाहिए, क्योंकि यदि जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन दे दी जाए तो आंखों की रेटिना के बीच में बबल्स बन जाते हैं और आंखों से दिखाना बंद हो जाता है, लेकिन छोटे बच्चों की यह समस्या तुरंत नजर नहीं आती. दादी से शैलेंद्र को जैसे ही इस खबर की जानकारी लगी तो वे तुरंत डॉक्टर के पास पहुंचे, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी. उन्हें डॉक्टर ने सलाह दी कि गुजरात में बच्चों की आंखों के विशेषज्ञ डॉक्टर हैं, आप उन्हें दिखाएं.
शैलेंद्र जब अपनी लगभग 2 महीने की बेटी को लेकर गुजरात पहुंचे तो डॉक्टर के कंपाउंडर ने ही बता दिया कि बच्ची को ज्यादा ऑक्सीजन दिया गया है. जैसे ही डॉक्टर ने बच्ची का इलाज शुरू किया उन्होंने तभी कह दिया था कि अपने आने में देर कर दी और अब रेटिना के बीच के बबल्स कठोर हो गए हैं, उन्हें हटाया नहीं जा सकता और अब सखी कभी नहीं देख पाएगी. लाचार पिता के पास अब कोई विकल्प नहीं बचा था, शैलेंद्र जैन बताते हैं कि "मैं अपनी बेटी को लेकर भारत के हर उस डॉक्टर के पास गया था, जो आंखों का इलाज अच्छे से करता था. मैंने मद्रास के शंकर नेत्रालय में ऑपरेशन भी करवाया, दिल्ली के एक बड़े अस्पताल से लेकर दूर दराज गांवों के नुस्खे बताने वाले वैद्य तक सब आजमा लिए, लेकिन सखी की आंखों की रोशनी ना लौट सकी."
सखी को मिलेगा 85 लाख का मुआवजा: कुछ समय बाद शैलेंद्र जैन की मुलाकात आयुष्मान अस्पताल के डॉक्टर मुकेश खरे से हुई और उनकी लापरवाही के बारे में शैलेंद्र ने उन्हें बताया, लेकिन डॉक्टर ने अपनी लापरवाही मानने की वजह शैलेंद्र को ही भला बुरा कह दिया. पीड़ित पिता ने अपनी बच्ची के न्याय के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाने का निर्णय लिया और शैलेंद्र जैन अपनी बच्ची सखी के कागजात लेकर भोपाल के स्टेट कंज्यूमर फोरम पहुंचे और उन्होंने आयुष्मान अस्पताल और डॉक्टर मुकेश खरे को आरोपी बनाते हुए सखी के लिए न्याय मांगा. फिलहाल अब स्टेट फोरम ने सखी को लगभग 20 साल बाद न्याय दिलाया. शैलेंद्र जैन ने 2004 में जो क्लेम किया था उस पर 2023 में फैसला आया और राज्य उपभोक्ता फोरम ने सखी के लिए 40 लाख रुपया मुआवजा और इस पर ब्याज सहित लगभग 85 लाख रुपए सखी को देने के लिए आदेश दिया है.
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60 दिन के अंदर देनी होगी क्षतिपूर्ति राशि: इस मामले में शैलेंद्र जैन के वकील दीपेश जोशी का कहना है कि "यह केस मेरे पास 2004 में आया था, तब मैंने अस्पताल की लापरवाही को लेकर आयोग में शिकायत की थी. प्रीमेच्योर बेबी सखी को डॉक्टर की सलाह पर जबलपुर के आयुष्मान चिल्ड्रन अस्पताल में रखा गया था, लेकिन वहां लापरवाही के कारण उसकी आंखों की रोशनी चली गई. इसी को लेकर हमने तमाम दस्तावेज राज्य उपभोक्ता आयोग में प्रस्तुत किए थे, जिसमें हमने आयोग को जानकारी देते हुए बताया था कि बच्ची को रेटिनोपैथी आफ प्रीमेच्योरिटी है, इसमें इनक्यूबेटर में ऑक्सीजन के ज्यादा देने के कारण यह स्थिति बनी. इस मामले में आयोग ने फैसला सुनाते हुए अस्पताल की लापरवाही मानी और बच्ची व उनके अभिभावकों के पक्ष में फैसला सुनाते हुए अस्पताल को 40 लाख की क्षतिपूर्ति का भुगतान करने को कहा है, यह रकम 60 दिन के अंदर देनी है. इसको लेकर दूसरे पक्ष के लोग राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग के दरवाजे खटखटा सकते हैं."
रोशनी लौट के लिए एक प्रयास और: शैलेंद्र कहते हैं कि "कोर्ट के आदेश के बाद 2 महीने के भीतर हमें मुआवजा दिया जाना है, इस रकम से मैं सखी के इलाज के लिए दुनिया के और बड़े संस्थानों का पता लगाऊंगा और अगर भारत के बाहर भी कहीं सखी का इलाज हो सकेगा तो मैं करवाने ले जाऊंगा. इसके पहले भी मैंने अमेरिका में एक डॉक्टर से संपर्क किया था, लेकिन डॉक्टर ने सखी की मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद आंखों में दोबारा रोशनी लौटने की कोई उम्मीद नहीं जताई थी. फिर भी मेडिकल के क्षेत्र में लगातार रोज नई खोज हो रही हैं, अगर कहीं कोई संभावना बन सकेगी तो मैं एक कोशिश और करूंगा.
आंखों से लाचार सखी गजब की गायिका: अब सखी जैन 20 साल की हो गई हैं और जबलपुर के मानकुवर बाई कॉलेज में ग्रेजुएशन कर रही है, उसने अपनी पूरी पढ़ाई ब्रेल के जरिए की है. सखी एक होनहार बच्ची है और कंपटीशन एग्जाम की तैयारी भी कर रही है, इसी बीच में सखी ने गीत संगीत की शिक्षा भी ली. आज ऐसा लगता है कि ईश्वर ने सखी की आंखों की रोशनी तो चुरा ली, लेकिन उसके कंठ में सरस्वती को विराजित कर दिया.