सागर। मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 और लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर दोनों प्रमुख दल कांग्रेस और भाजपा दलित वोट बैंक पर फोकस कर रहे हैं. दलितों को रिझाने के लिए दोनों दलों ने बुंदेलखंड को प्रयोगशाला बनाया है और यहां संत रविदास के नाम पर दोनों दल दलितों को रिझाने की होड में लगे हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने रविदास जयंती पर सागर में 100 करोड के संत रविदास मंदिर के निर्माण का एलान किया था. जिसका भूमिपूजन 12 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से करवाया. तो वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने 22 अगस्त को राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे के जरिए सागर में संत रविदास के नाम पर स्टेट यूनिवर्सटी का एलान करवा दिया.
कांग्रेस ने युवाओं को रिझाने खेला दांव: माना जा रहा है कि इस मामले में कांग्रेस ने एक तीर से दो निशाने साध लिए हैं. क्योंकि सागर संभागीय मुख्यालय की हरीसिंग गौर यूनिवर्सटी को केंद्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा मिलने के बाद लंबे समय से स्टेट यूनिवर्सटी की मांग चल रही थी, जिसकी घोषणा शिवराज सिंह कई बार कर चुके हैं, लेकिन ये मांग पूरी नहीं हुई. इस तरह कांग्रेस ने दलितों को रिझाने के साथ-साथ उन युवाओं को रिझाने का दांव खेला है, जो सालों से यूनिवर्सटी की मांग कर रहे हैं.
भाजपा के 100 करोड़ के दाव पर कांग्रेस का पासा: भाजपा और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने 100 करोड़ के रविदास मंदिर का ऐलान और प्रधानमंत्री से भूमिपूजन करवाकर मान लिया था कि कांग्रेस के पास इसका तोड़ नहीं होगा. लेकिन कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से स्थानीय मुद्दों की समझ के साथ अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से ऐसी घोषणा करवायी कि अब भाजपा का 100 करोड़ का दाव कमजोर पड़ता नजर आ रहा है. 22 अगस्त को मल्लिकार्जुन खड़गे ने सागर में ऐलान किया कि संत रविदास के मंदिर देश विदेश और कई जगहों पर हैं, हम उनके नाम पर सागर में विश्वविद्यालय स्थापित करेंगे, जो ज्ञान की रोशनी बिखेरगा. अब इस ऐलान के बाद बहस छिड़ गयी कि मंदिर बेहतर या फिर यूनिवर्सटी बेहतर है. ज्यादातर लोग कांग्रेस की घोषणा को अच्छा और बेहतर मान रहे हैं.
एक तीर से दो निशाने: कांग्रेस ने विश्वविद्यालय का एलान करके एक तीर से दो निशाने साधे हैं. एक तो संत रविदास के नाम पर यूनिवर्सटी बनेगी, जिससे शिक्षा और रोजगार के अवसर बढेंगे. दूसरा सागर के हरीसिंह गौर केंद्रीय विश्वविद्यालय की स्थापना के बाद लंबे समय से चली आ रही स्टेट यूनिवर्सटी की मांग पूरी हो जाएगी. क्योकिं इस मामले में भाजपा और सीएम शिवराज सिंह आरोपों में घिरे हैं. दरअसल जब 2009 में सागर की सबसे पुरानी स्टेट यूनिवर्सटी को सेंट्रल यूनिवर्सटी का दर्जा दिया गया, तो क्षतिपूर्ति में यूपीए सरकार ने मप्र सरकार को 400 करोड़ रूपए दिए और मध्यप्रदेश सरकार ने ऐलान किया कि एक स्टेट यूनिवर्सटी और खोली जाएगी, लेकिन वो सागर में न खोलकर छतरपुर में खोल दी. वहीं, सागर यूनिवर्सटी के सेंट्रल होने के बाद स्थानीय छात्रोंं को एडमीशन में प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा और काॅलेज में पढ़ने मजबूर होना पड़ा. सागर जिले में स्टेट यूनिवर्सटी की मांग कई दिनों से चल रही थी और शिवराज सिंह चौहान अपनी आदत अनुसार कई बार घोषणा कर चुके थे, लेकिन हासिल कुछ नहीं हुआ. ऐसे में कांग्रेस ने यूनिवर्सटी की घोषणा संत रविदास के नाम पर करके दलितों के साथ युवाओं और बेरोजगारों को रिझाने में कोई कसर नहीं छोड़ी.
यूनिवर्सटी से दलित क्यों खुश: दरअसल सागर के कर्रापुर में संत रविदास से जुडा ऐतिहासिक स्थान है, जहां कभी संत रविदास आए थे. लेकिन भाजपा ने कर्रापुर से 15 किलोमीटर दूर बडतूमा में मंदिर और स्मारक के लिए जगह चुनी. जिसका विरोध संत रविदास के अनुयायी ने शुरू से किया और कहा कि संत रविदास का स्थान कर्रापुर है. मंदिर बनाना था, तो वहां बनाना था. संत रविदास आश्रम कर्रापुर के प्रमुख संत पंचमदास ने कहा था कि ''मंदिर को बडतूमा में ही बनना था, अगर वाकई में सरकार दलितों का उत्थान करना चाहती थी, तो इतनी भारी भरकम राशि से संत रविदास के नाम पर विश्वविद्यालय या अस्पताल खोल सकती थी.'' हालांकि प्रशासन ने दबाब बनाकर विरोध की आवाज को दबा दिया था. अब कांग्रेस ने संत रविदास के नाम पर यूनिवर्सटी का ऐलान किया है, जिसे दलित तबका भी मानकर चल रहा है कि मंदिर से बेहतर विश्वविद्यालय है, जो कई लोगों को रोजगार देने के साथ युवाओं को शिक्षित करेगा.
कांग्रेस की घोषणा पर क्या कहना है सागर विधायक का: कांग्रेस की इस घोषणा से दलितों के साथ सागर के युवाओं पर असर पड़ा है. एक बहस छिड़ गयी है कि मंदिर बेहतर या फिर यूनिवर्सटी बेहतर है. ज्यादातर लोग यूनिवर्सटी के पक्ष में है और युवाओं की शिक्षा और रोजगार के लिहाज से बेहतर मान रहे हैं. हालांकि भाजपा के सागर विधायक शैलेन्द्र जैन का कहना है कि ''कांग्रेस ने कई घोषणाएं की हैं, उन घोषणाओं पर कितना अमल हुआ है, मुझे नहीं मालूम है. लेकिन मुख्यमंत्री ने फरवरी में घोषणा की और अगस्त में मंदिर का भूमिपूजन हो गया है.''
क्या कहते हैं दलित समाज के विचारक: दलित समाज से जुड़े मुद्दों को मुकरता से उठाने वाले पत्रकार देवेंद्र कश्यप कहते हैं कि ''भाजपा की राजनीति धर्म और मंदिर के आधार पर हिंदुओं को एकजुट करने की है और यही प्रयोग वह दलित वर्ग पर संत रविदास के मंदिर की घोषणा करके कर रही है. लेकिन दलित वर्ग धीरे-धीरे शिक्षित और जागरूक हो रहा है और चाहता है कि उसे शिक्षा और रोजगार मिले. ऐसे में जब भाजपा के संत रविदास मंदिर के सामने कांग्रेस ने संत रविदास यूनिवर्सिटी की घोषणा की है, वह ज्यादा असरकारक है और दलित समाज कांग्रेस की घोषणा से प्रभावित भी है.''